पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५६८

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माप आहोर या महिषा ग्वाला, मगल या मागधो और भोगा। लाल ग्वाला विवाहकालम लाल वस्त्र और मादा ग्वाला वारेन्द्र गोपोंके मध्य पखाल, लाहडि, मूलगावां, दागा- मफेद वस्त्र परिधान करते हैं। इन दोनों में सादा गोप निया प्रभृति, तथा भोगा श्रणीके मध्य मादा ग्वाला और अपनेको प्रधान ममझत और लाल ग्बालेसे कन्यादानके लाल ग्वाला है। ममय बहुत कपये लिया करते हैं। बङ्गालक ग्वाल व उत्तरपश्चिममें-देशो, नन्दवंशी, यदवं गोत्र और मातामह गोत्रमें विवाह नहीं करते। इन वालवशी, अहीर प्रभृति श्रेणियां हैं। लोगों में कन्याका बाल्य विवाह हो अादरणीय है; विधवा. विहारम-गोरिया या दहियारा, मजरीत्, सात- । विवाह प्रचलित है। विवाह प्रणाली उच्चश्रेणोके हिन्दू मूलिया या किष्नोत्, कनौजिया, बर्गीवार, धनरोपार, के जैसा है। इन लागौम अधिकांश वैष्णव तथा शाक्त चौमानिया, चौथा, गजियार या गोदागा, गोहन, काँटी- और शव अल्प है। इनके ब्राह्मण पुरोहित भी स्वतन्त्र ताहा, पहोया, मेपारो और बनपूर प्रभृति मूल है। हैं जो हम देशमें निम्नर्थ गोमें गिने जाते हैं। उड़ोमामें-दुमाला, यदुपुरिया, मगधा, मथरा वा विहारकं ग्वालामें गोत्रनियम प्रचलित नहीं है, ये मथु रायगी, गौड़ या गोपपुरिया प्रभृति थणियाँ हैं। मूल लक्षकर विवाहादि सम्बन्ध निणय करते हैं। कोटानागपुरमें-किषनोत्, गोरो, चौथानिया, मझबत्, सममूल और नवमूल छोड़ कर आदान प्रदान किया लारि, भोगता, मवीर और माअोड़ा प्रभृति शाखायें हैं। करते हैं। मामूल वा विष्णौत अपनको कणसे उत्पन्न बङ्गालके ग्वालकि मध्य वारिक, चोमर, ढालि, घोष, बतलात हैं। इन दो श्रेणियोंक गोप दधि प्रस्तुत नहीं जाना, मगडन, परामाणिक प्रभृति पदवियां और अल करते, वे सिर्फ दुग्ध विक्रय किया करते हैं। गोरिया या मासि वा पालम्यान, भरद्वाज, गौतम, काश्यप, मऋषि । दहियारा मलक गोप दुग्धको गरम किये विना उसमे वा मधुकुल्य और शागिडल्य गोत्रादि प्रचलित हैं। दधि तैयार कर लेत इमलिये वै पतित गिर्न जाते हैं। विहारमें--भाँडारी, भीगत, चौधरी, घोरेला, मिराहा, । कॉटिताहा मलका ग्वाला गौके शरीरमें कॉटोमे दाग महतो, मण्डर, माझी, मारिक, पञ्जियारा, राय, रास्त देता इमी कारण इसका एमा नाम रखा गया है। और सिप्रभृति पदवियां देखी जाती हैं। कनौजिया पार वर्गावार उत्तर-पश्चिमसे आ विहारमै बम युक्तप्रदेश, विहार और छोटानागपुर प्रभृति स्थानां गये हैं, ये अपने ही हाथमे नवप्रसूत शिशुको नाडी काटा के ग्वामि मूल वा थणीके अतिरिक्त गॉजिके मदृश और । करते हैं इमीलिये दूम मूनक गोप इन्हें नीच ममझत हैं। कई एक 'थाक' या गोषठ प.चलित हैं। विहारकै गोपाँम वाविवाह प्रचलित है तथा पतिको बङ्गाके पल्लव' या 'वल्लव' थेगोका ख्याल है कि श्री मृत्य पर विधवा टेवरम विवाह कर सकती है। यहाँक कणके पमीनामे घामघोष पैदा हुए, यहो घामघोष ग्वाल विषहरी, गणपत्, गोमावन, कानामॉझो और उन लोगों के आदिपुरुष हैं। किन्तु वागड़ी श्रेणीवाले भूतको विशेष भक्ति श्रद्धा किया करते, तथा वर्ष में एक कहते हैं कि उन लोगों के पूर्वपुरुष उर्जायनोसे पा वागड़ी वार सत्यनागयणको पूजा करते हैं । विहारमै शव और अञ्चलमें रहते थे, इसोलिये वे उजैनिया नामसे भी मश शाक्त अधिक हैं। हर हैं। राढ़ी गोप बैनके शरीर में तमलोह हारा अक्षित उडीसाक गोप अपनको बङ्गः और विहारक गोप- तथा वधिया करते हैं, इमोसे वे दूसरे दूसरी श्रेणियों के जातिको अपेक्षा श्रेष्ठ तथा शुद्ध समझते हैं । उच्चश्रेणीक निकट हय और नोच गिने जाते हैं। गोडगोप बहुत हिन्द्रकी नाई ये शास्त्रक मतमे चलते हैं । इनका प्राचार दिनोंम बङ्गालमें लाठियाल नामसे विख्यात है, ये अपने व्यवहार बहुत कुछ विहारके गोपीसे मिलता जुलता है। को सत्शूद्र के जैसे परिचय देते एवं दूसरे किमी श्रेणीक ये कहते हैं कि यदि विवाहके पूर्व लड़कोऋतुमती हो साथ पादान प्रदानमें आपत्ति नहीं करते हैं। प्रधानतः जाय तो उस कन्याको पहले एक मितान्त वृद्ध मनुष्यसे ढाका जिलामें लाल और सादा ग्वाले वास करते हैं। व्याहना चाहिए और विवाह के बाद वह वृद्ध भी उसे