पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५५७

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गोदावरी स्वभावतः नदीको गति दक्षिण पूर्ववाहिनी है । यहन्ने । तुल्या, मात्र यो ओर भारद्वाजो नामको तोन शाग्वाय', नामिक जिला अतिक्रम कर ग्रहमदनगर और निजाम दक्षिण भागमे वृद्धगौतमी एवं वशिष्ठाके वाम तोरसे राज्यके मोमारुपमं प्रवाहित हो. मिरोचा नामक स्थान कोशिको नामको शाखा प्रवाहित हो मागरमें मिली है। त्रा प्राणहिता नदीक साथ मिली है। तदन्तर वा, पेन ये ममशाग्वायें मतगोदावरी नामसे ख्यात हैं। जहाँ ये गङ्गा र वेणगङ्गा ये मब नदियां पा इमक जल में मिल मनगाग्वाय मिन्नी हैं वहां उनका नाम मागदावगे गई है। मिरोजामि जिस स्थान पर यह पूर्व घाट पवन मागरमझम पड़ा है। भागोग्यीका मागर मङ्गम जमा अतिक्रम करती है वहां इमकी मध्यवर्ती नदीक दक्षिण महापुण्य तीय माना गया है वमा हो दाक्षिणात्यमें कूल पर निजाम राज्यभुक्त तथा उत्तर तौर पर मतगोदावरी मागरसङ्गम महापण्य प्रदके जमा विख्यात है। गोदावरी जिना मोमारूपमें परिणत है। गोदावरी गौतमौमाहात्मा में प्रत्येक भागकामाहात्मा इस तरह दक्षिण कूल्न पर प्राचीन तनङ्गगज्यके ध्व'मावशेष आज लिम्का है . भी देख जति है। ध्वमलेश्वर ग्राम के निकट नदी में एक तुन्यभागा-चन्द्रमा रोहिणीको हो अधिक चाहते थे डल्ला है यहां ममोपवता बांध दाग जल खेतों में पद इमलिए दूरी स्त्रियों की उतं जनामे दत्त कर्तक अभ. चाया जाता है। गोदावरीकै मनमुवामें मे गौतमी गोदावरी शहा हो व क्षयरोगको प्राधहए। पापमुक्तिक लिए उन्होंन सोभनमे बटो है, हमके कल पर फरामोमो अधिकार विष्णुको तपस्या की। विणुन मन्तष्ट हो उन्ह तल्या भक्त यनान नगर अवस्थित है। ममुद्र कन्न पर इम शाग्वाका मङ्गममे स्नान करने का आदेश किया। चन्द्र भी यथाविधि पर कोग्डि बन्दर है। नमरपुर के निकट वशिष्ठ गोगा। तुल्यामङ्गममें स्नान कर शापमुक्त हुए । माघ मामको वरीको बैनतम् गोदावरी नामको शावा निगत ह! मोमवार अमावश्याको तुन्यामङ्गममें मान कर मामश्वर- ममट्रमें गिरी है। की पूजा करनमे कोटिगुण फल होत है। इस स्थान पर इम नदीक वाम भाग पर भट्राचन्नम् नगर और इममे तर्पण और पिगडदान करनमे अश्वमेधका फल बार महस १०० मोन उत्तरमें गजमहन्द्रो नगर है। गजमहन्द्री। जन्मक पायर होते हैं। (गा। 10) नगर या कोटिफनी ग्राम गौतमी गाग्वार्क ऊपर अव आत्र यो- पात्र य ऋषि गतिमीम जिम नदीको स्थित है। लाये थे वही पात्रं यो नःममे ख्यात है। तुम तोर पर भिषशास्त्र मतमे इममा जलका गुण-पश तथा ऋषिन इन्द्रत्व लाभ के लिए महायज किया था। इस पित्तात्ति, रक्तात्ति , वायु, पाप, कुष्ठादि दुष्टरोग और स्थान पर मारीच कुरंगरूपम महादेवको तपस्या किया वृषणानाशक है। ( राजनि.) | करता था। गोदावरी मात भागोंमें विभक्त हो बङ्गोमागरमें भारहाजी-पूर्व कानमें भरद्वाज ऋषिन गौतमोक मिन्नो हैं, इन मात भागों के नाम तुल्या, पात्र यो, भारहाजी पूर्व तोरम ऋषिकुल्याको लाकर उमक तोर पर तपस्या गौतमी. वृद्धगोतमो, कौशिकी और वशिष्ठा हैं। काक को थो, इमोमे दमका नाम भारद्वाजी हुआ है । इमका नाड़ामे २ मोनको दूरी पर चोलङ्गी ग्राम के निकट तुल्या दूसरा नाम ग्वतोमङ्गम भी है। भारद्वाज ग्वता नामक वर्तमान है। यहां चीन रेश्वर महादेवको मूर्त स्थापितक अतिकुत्मिता भगिनी ( बहिन ) थो वयम्था हनि हैं। कोरिङ बन्द के निकट गोदावरीके उत्तर तीर पर पर भी कोई उसे विवाह करना नहीं चाहता था। एक आत्र योसङ्गम है । धवलेश्वर के दूमरे वगल विजयेश्वर दिन भरद्वाज ऋषि अपने आश्रममं बैठरवतो विवाह ग्राममें विजयेश्वर शिवलिङ्ग हैं। धवलेश्वर और विजये के विषय में मोच रही. इमी ममय कठ नामक एक बरसे गोदावरी दो भागोंमें विभक्त हो मागराभिमुखको खुबमरत ब्राह्मण कुमारने आश्रममें आ उनका शिष्य गई है। उसके उत्तर भागके श्रोतका नाम गौतमो और मोनके लिये प्रार्थना की। ऋषिन उसे शिषा रूपमें ग्रहण दक्षिणका वशिष्ठा है । गोतमोके उत्तर भागमें यथाक्रमसे पर ममस्त विद्या निखा दीं। इसके अनन्तर कठन गुरु