पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५५४

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५५२ गोदनो-गादानका फल भी बाजारके मनुष्य उनकी कब्रकी देखते और भक्ति गोमती मन्त्र यथा- प्रदर्शन करते है। "गाव सुरभया नित्य गावो गुग्णन गौधिका:। गोदनी ( हि स्त्री०) गोदना गोदने गावः प्रतिष्ठा भतामा गावं स्वन्त्य में महत् ॥ अनमैव परगावो देवानां विरुत्तमम्। गोदन्त ( म.ली.) गोदन्त इवावयवीस्य । १ हरिताल पानं सव भूतामा रणन्ति च वन्ति च । २ गोका दांत। ३ दानवविशष । विषा मन्वपून तप्यन्त्यमराम् दिवि । गोदन्ता ( म० स्त्रो० ) दारुमोचद. एक स्थावर विषका ऋषागामनिहीत गोगावा होमप्रतिष्ठिकाः । नाम । मवषामेव भ मां गाव: शरणमुत्तमम् । गोदरी (म० पु० ) इन्द्र। गाव: परिव परमं गावी मङ्गलमुत्तमम् ॥ गाव: मवस्य (कम्य गाव। धन्या: सुखावहाः । गोदा ( म त्रि. ) गां स्वर्गददाात दा-कटाप ।१ गोदा- नमा गापः शौमतः मौरभयोभ्य एव च। वरी नदी। २ गायत्रीस्वरूपा महादेवी। (त्रि.) गां नमा अध्न सुताभाय पविवाभ्यो नमो नमः ॥ ददाति गोदा किप । ३ गोदाता, गीदान करनेवाला। ब्रहणायव गाव कस्न मेक विधानम् । गोदागारी---बङ्गालके राजशाही जिले में मदर मवडिविजन एकव मन्त्र तिष्ठन्त हावरे व निठान ।" (श्रम) का गॉव । यह अक्षा० २४.२८ उ० ओर देशा० ८८ महाभारतमें दूमरी तरहका गोमतीमन्त्र लिखा है। १८ पृ० में महानन्दा और पद्मा नदी मङ्गमस्थलके निकट ___ति धन द ग्वा । अवस्थित है। जनसंख्या प्राय: १२३५ है। यहां नदीको गोदानका फल---कृष्ण वर्ण गी पट्टवस्त्रसे आच्छादित तरह युक्त प्रदेश तक व्यवमाय चलता है। तथा सुवर्णालङ्कार हारा अलङ्कत कर दान करनमे उस गोदान (सं० ली. ) गावः कंश लोमानि वा दीयन्त व्यक्तिका यमलोक जाना नहीं पड़ता तथा प्रायः, आरोग्य. खगडयन्ते यत्र आधार ल्य ट । १ विजातिका एक संस्कार, एश्वयद्धि और मनोभीष्ट पूर्ण होते हैं। रत्नालङ्कार, द्विजातियोंकी एक क्रिया, डमका ट्रमग नाम केशान्त घण्टामाला और पुष्प द्वारा परिशोभित गोकै मुग्वमें हत मंस्कार भी है। केशान हो । गवि पृथिव्यां दीयत निधीयत दे शृङ्ग सुवर्णमय और चार खुर रीप्यमय निर्मागा कर दा कर्मणि लय ट । २ दक्षिणकर्णका ममीपवर्ती स्थान । पट्टवस्त्र द्वारा आच्छादन करं । इम प्रकार व तवर्ण गो- गोर्दानं, ६-तत्। ३ गाय या बैन्नका दान । अपना मत्व दान करनम उमर्क तथा उमके वंशजक पाप विनष्ट होते परित्याग कर दूमरेको गोदान करनकी क्रिया । हमाद्रिके हैं। इस तरह गोरवण गाय दान कर तो वह हजार दानवगडम गोदानप्रणाली इम तरह निखी है-विश्वामित्र. करोड़ वर्ष पर्यन्त स्वर्गवास करता, नोनवणे गा दान करे के मतानमार वत्सयुक्त गोको पूर्वमुखो कर रखना चाहिए। मोना तो हजार करोड़ वर्ष वरुणलोकमै बमत हैं एवं उसके दाता भान और शिवा बन्धन कर गौके पुच्छकी ओर पूर्व पुरुष नरकमे मुक्ति नाम करते हैं । ( वगिट ) उपवेशन करें। जिम ब्राह्मणको गोदान करना हो उसे उत्तरमुग्वी धार बैठाव । तदनन्तर दाता एक घृतपूर्ण पात्र- कपिलवण वत्सयुक्त और दुग्धवती धनु दान करनसे में कुछ सुवर्ण लेकर उममें गोपच्छ धारणा कर । ब्राह्मण- ब्रह्मलोक प्राप्त होता है। इस प्रकार वत्सयुक्त टुग्धवती के हाथमें तिन्न दे पूर्व मुखो कर रखें। इसके बाद तिल रोहिणी धेनुदानसे इन्द्रलोक, विचित्रवर्ण धनुदान करन- और कुशादि ले तथानियममे एमा कहना पड़ता है- से चन्द्रलोक, कणवर्ण धेनुटानसे अग्निलोक, वातरेणके “यसमाधनभूता या विश्वस्याच मागिनी । विश्वरूप: यशाव: प्रौयतामनया गया । जैसा वर्गयुक्त धनुदानसे वायुलोक धुम्रवर्ण धनुदानसे यह मन्त्र पढ़ ब्राह्मण के हाथमें जल अर्पण करना चाहिए | यमलोक, सुवर्णवर्ण धेनुदानसे वरुणलोक, पिङ्गलवर्ण ब्राह्मण के गौ ले जाने के समय उन्हें भी गौका अनुगमन । चक्षुयुक्त हिरण्यवर्ण धनुदानसे कुवेरलोक, गौरवर्ण धनु- करते हुए गोमती मन्त्र जपना पड़ता है। दानसे वसुलोक एवं पड़िकम्बलवर्ण धनुदान करनेसे ( विश्वामिव ) । गन्धर्व लोकमें वास करता है। जो शुद्धचित्त तथा पवित्र