पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५४१

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गागड़ा अपना ग्वाधानताको रक्षा को थी और पत्रिक राज्य के केदारनाथ, बलरामपुरकी विनेश्वरी देवी पार बङ्ग गोगड़ा, पहाड़पुर, दिगमार, महादेव और नबाबगञ्ज इन परक पचरानाथ व पृथ्वीनाथका मन्दिर ये हो महाक पांच परगनाओंका स्वतन्त्रतापूर्वक शासन किया था। हिन्दुओंक महापुण्यक स्थान हैं। अन्तमें गजा इन्दपसिंहको मृत्यु होने पर पाँडे ब्राह्मणी १ तराई में धान बहुत होता है, परन्तु आवमा को महायनासे गुमामिहने गोगडागज्य पर आधिपत्य अच्छी नहीं और बाढ़ आनका भी डर रहता है। भग जमाया था, बनगमपुर और तुलमोपुरके सारोंने बहुत जमोन चिकनी है। गेह और चावलको खेतो चना युद्ध करके अपना स्वाधीनताको रक्षा को थो । परन्तु और अरहर मिला करके ज्यादाको जाती है। गांवांव माणिकपर और भवनिपाईक मर्दार नाजिमको कर दया पाम ईख तथा पोस्त और तालाबोंक करीब जड हन करते थे। गागड़ा ओर उतराना गज्य अधःपतनक बोत हैं। समयमै नाजिमन महजम कर बसून्न होने के लिए कक स्थानिक पशु अच्छे नहीं होते। भंड और बकर ग्रामोम जमोदार नियुक्त किये थे। उतरौला और गोगड़ा बहुत हैं। तालाबों और झोलाम अाब पागो होता है। पदच्य त गजाग्रीन उक्त जमोदारोक पानक लिए प्रयाम २ उक्त प्रान्त के गांड़ा जिन्न का मदर तहमाल । धन किया था। उनगेन्नाके राजाने कई वष बाद जमादारी अक्षा० २७१ तथा २७ २६ उ. पार देशा०१३ पाई श्री और गांगड़ाके विशनगज विश्वम्भपुरको जमीदारो एवं८२१८ पू० मध्य अवस्थित है। क्षेत्रफल १४ पाकर उसका उपभोग करने लगे थे । नाजिमके कर्मचागे वग मोल पार लोकमव्या प्रायः ३८४०२१ है। वहां बन्नपूर्वक कर वमल करते थे। इमलिए वहांको प्रजा ७८४ गांव और ३ शहर बसे हए हैं। मानगजागे कोई बहुत ही नाराज थी। पीछे अयोध्या जव अंग्रजों के हाथ- ४८१०००, और मेम प्राय: ५००००, रु. है । गमा में आई तब ये मत्र अत्याचार दूर हो गये। मिपाही- सुभीता बहुत कम गावांमें दं ग्व पड़ेगा। १६२ वर्ग मोल विद्रोहक ममय गोगडाकै राजा पहले अंग्रेजोको पक्षमें सुरक्षित जङ्गल है। इसमें मालाना कोई ५००००, रु. घ। पोर्क किर विद्रोही हो कर लखनऊमें जाकर अयोध्या को आमदनी होती है। ग्वानमे कवल कर निकलता को ब गम माथ मिल गये थे। बलरामपुरके राजा बरा- जो सड़क पर बिछान और चना बनानमें लगता है। बर राजभक्त थ । इन्होंन गोण्डा और बराइच कमिशनर मिवा खेती के डम जिन्न में दूमरा काम काज थोडा विङ्गफिल्ड तथा अन्यान्य अंग्रेज कम चारियोंको अपन है। कई जगह स्थानिक व्यवहारक लिए मोटा सूतो किल में पायथ दिया था। गोगडाराजने मेना महत कपड़ा बुना जाता है परन्तु बारीक मून तयार नहीं जाकर चमनाईक तौरवर्ती लम्पतो नगरोमें तम्ब गाड़े होता। मट्टोके खुशनुमा वर्तन भी बनाते हैं। चावन्न, थे। थोडामा बुद्ध करके ये अपनी मेना महित नपानकी मटर, ज्वग, अफोम और लकड़ीको वाम कर तरफ भाग गये थे। जमोदागैनि इम राजद्रोहके लिए रफ्तनी होती है। नपान के माय भी थोड़ा फारचार नमा मांगो श्री। परन्तु गोण्डाराज और तुलमीपुरको किया जाता है। रेल पार मडकको कोई कमी नहीं। रानी के तमा नहीं मांगनिमे, उनका गज्य कोन लिया यहाँ बङ्गाल और नार्थ वेष्टर्न रेलवको प्रधान लाइन गया था। फिर गवर्मे गटन वह राज्य बलरामपुरके दाड़ती है। ६०६ मील मड़कमें ११० मील तक की महागज दिग्विजयसिंहको ओर शाहगन के महागज मर है। अपराध मामान्य प्रकारका होता है। मानसिंहको बाट दिया था। १८१० ई में एम जिल्ने के उत्तरपूर्व बहतमो जमीन इम जिन्नम गोण्डा, बलरामपुर, कर्णानगञ्ज, नबाब- अङ्गारेजोको सुपर्द की गयो थी, परन्तु १८१३ ई० में उन्हनि गंज, उतराला, कातरा, और खजपुर आदि नगर हैं। यह अवध नवाबको वापम दी। १८५६ ई० को अब देवीपाटन ग्राममें पाटेवरोदेवीका मन्दिर, कापियाका गोंडा अगरेजो राज्य भुक्त हश्रा, मालगुजारी। ठाकुरहार महादेव परगणाके विलेखरनाथ, मछलीगांध. लाख ७० हजार रही । १८७६ ई०को दूमरा बन्दोबस्त