पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५३३

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गोचर "पाता: विमगविगी घरादपारवत: पतितुजनगम ॥" पण करत थ, उमका कोई भी उपाय उन्होंने प्रकाश (किरात ४१०) नहीं किया। मिर्फ फल होता है-इतना ही निरूपण ५ गन्तव्य देश । कर गये हैं। "इन्द्रिया पायानाविषयास पुगोगन।" ( कठोपनिषत् ) केतु, राह, रवि, चन्द्र, मङ्गल और शनि ये मब ग्रह ६ देश। जन्मराशिम हतीय या षठ स्थान पर रह तां शभ फल "नवीन प्रानस्निभत्वा गह) गमगणेवर ॥' (मायण २।८५.५) ममझना चाहिये और जन्मराशिम दशम स्थान हो 'गदर्भ वनं गोचरोजा यम्य म..' तब भी शुभ फल मसझना चाहिये । यदि ये ग्रह जन्म- गावो व्योमगतयो ग्रहाचरन्त्यस्मिन् पूर्ववत् माधु।। राशिम माम, नवम वा पञ्चम म्यानम रहता भी शभ जन्मराशि तक ग्रहाकान्त गशिका नाम । फलित फल देते हैं। मीनात फल देते हैं। वधके जन्मगगि अवस्थित रहनसे और योतिष मतमे यह अपनी गतिक अनुमार जिम राशिमं शुक्र षष्ठ, माम ओर दशमम मिवा अन्य गशिम रहने प्रा . गो. - उपस्थित हो, वह राशि जन्मराशिको अपना जिम मंख्या में श_भ फल होता है। एकादश गशिमं कोई भी ग्रह को गशि होतो है, उम संख्यावालो राशिके शुद्ध होने पर ही वह मनुषाक लिये शुभ हो है। ग्राण वक्र अथवा ग्रह शुभफल देता है और अशुभ होनसे अशुभफल देता अतिचार प्राटि कोई भी अवम्यामें का िन हो. मन हो है। ग्रह के लिए कोई भी राशि अशुद्व या वुरी नहीं दशामें शुभाशुभ फल देनवाले होते हैं। मब हो ग्रह है। परन्तु ज्योतिषशास्त्री जन्मराशि की अपेक्षा किमो वक्रो वा अतिवारी हो कर जिम राशिम ठहरंग, उमो किमी राशिमें ग्रहका ठहरना शुभ माना गया है और गशको शुभाशुभ फल प्राहा हाँग । परन्त बध और वह किमी किमी राशिम अशुभ ऐमा निथित हुआ है। जिम म्यति जिम राशिम वक्री वा अतिचारी हांग, उमा गशि स्थान पर जिम ग्रहकी अवस्थित अश भप्रद है, वही का 'नरूपित फल देते हैं। चन्द्र को गशमं जात ममय ग्रह उम गशिम रहनमे उमे गोचर अश द्धि और जिम यदि नक्षत्र शभ हो, तो मन ही राशिमें चन्द्र शभ फल राशिम रहनमे शुभ फल हो, उम स्थानमें ग्रह के ठहरने देता है और रविक चन्नत ममय चन्द्र के गद्ध रहन पर में गोचर श डि कही जाती है। भो शुभ फल होता है। मङ्गल आदि ग्रहांक मञ्चारकान- वैज्ञानिक मतानुमार-मनुष्य अपने अपने कर्मों के में यदि रवि श द रहे, तो भी शभ फल होता है। वि, अनुमार ममय ममय पर मुग्वो और दुखो हुआ करते हैं। मन और शनिक चलते ममय यदि नाडीनतत हो, तो खगोलके ग्रह उममें कारण नहीं। परंतु ग्रहांके अवस्थान गोचर अत्यन्त प्रशभ फल और कंश देता है। के अनुमार मानव और जन्तुओका भावी मङ्गल या विप. चन्द्र पनि और राहदखा। त्तियोंका अनमान किया जा सकता है। ग्रहकि अनु जन्मराशिम चन्द्र के रहनमे मिष्टान्न भोजन, शुक्रके मार भविषार्म विपत्तिको सम्भावना होने पर, उमको रहन पर आमोद प्रमोद, रवि या मङ्गलक रहनम शत्र- रोकनके लिए शान्तिका अनुष्ठान करनेसे 'फर विपद्ग्रस्त वड, शनिक रहनमे प्राणहानि, बुध रहम बन्धन पार नहीं होना पड़ता। किमी किमी ज्योति षिकका मत वृहस्पतिक रहन ग वन्नको वृद्धि र क ग उत्पन्न है कि दमरे कारणों की भांति ग्रहीका अवस्यान भो मनुषा होता है। के सुख दुःखमें अन्यतम कारण है। कुछ भी हो, यहाँ हितोय स्थानमें यदि रवि रहे तामित्रों में हो, चन्द्र के अवस्थानसे भी मनुषीको शुभाशुभ फली को प्रालि रहे तो लश, शनि है तो वित्तनाग, बुध हो तो लाभ, होतो है, इमे मब हो स्वीकार करेगे; और प्रत्यक्षमें भी मङ्गल हो तो हानि, शक्र हो तो भोग पार गृहम्पति रहे देखनमें आता है। प्राचीन फलत ज्योतिषमें इस विषय तो ज्ञानको वृद्धि होता है। में बहुतसे मताभत हैं। परंतु प्राचीन आर्यगण ग्रहोंके तोय म्थानमें रवि, मङ्गल, शनि और शुक्र के रहनेमे अवस्थानके अनुसार किस तरहसे वैसे फलाफलका निरू. हमेशा के लिए कोई एक स्थानकी प्राभि, चन्द्र और वध के