पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५१७

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गौमा राम यहां कादम्ब मद्य पान कर आनन्दसे उत्फुल्ल हुए थे। मारत अवतरण कालमें यह भूभाग विजापुरके श्रादिल- कृष्णको विनाश करनक लिये मद्र, चेकितान, वालिक, शाहो वशके अधीन हमा। १५१० ई०को १७वों फरवरी काश्मोरराज गोनर्द, करुषाधिपति द्रुम, किम्पुरुष, पुरु- को आन फान्मो डि पाल्व कार्कन २० जहाज और वशीय वण्डदारि,विदभांधिपति मोमक, रुक्मा, भोजराज, १२०० मना साथ ले गोत्रा पर आक्रमण किया। इसक सूर्याक्ष, मालव, पञ्चालाधिपति द्रुपद, विंद अनुविन्द, दंत पहले किमी एक योगान कहा था कि बहुतसे विदेशी वक्र,छागलो, पुरुमित्र,विरा, कौशाम्व्य, शतधन्वा, विदूरथ, मनुष्य आ गोआम राजत्व करगा । पोत गोजक आक्रमण भूरिश्रवा, त्रिगत, वाण, पञ्चनद, उल्नक, कैतवेध, एकलव्य, काल गोपाक रहनवा न योगोका बात पर विश्वाम कर दृढ़ाक्ष, जयद्रथ, उत्तमोजा, शाख, केरल देशीय कौशिक, देश छोड़ भागने लगे थे, सुतरां गोश्रा अधिकार करने में वदिश वामदव, सुकतु, दरद और चेदिराजको मङ्ग ले आल्व काक को यर्थष्ट परिथम न करना पड़ा। राज्यक जरासन्ध उपस्थित हए । कृष्ण पर आक्रमण करन लिये प्रधान प्रधान मनुथान अवनशिरमे अा अाल्व काक की सबने मिल कर गोमन्तको अवरोध किया। किन्तु बहुत प्रवेशद्वारममूहकी चाभी ददो। पोत गोजन बहुत धम दिन गोमन्त घर रहने पर भी जब जरामन्ध कुछ न कर धामम गोत्रा नगरीमें प्रवेश कर पोत गोज जयपताका सका तब गोमन्तको चारों ओर इन्होंन आग लगा दो। उडाई। नगरक रनवालोन स्वण तथा राप्यका पुष्प इम भयानक अग्निप्रभावसे गोमन्तक पादपराजिसे पशु वर्ष ण कर विजेताको मम्वध ना को थी । उक्त वर्षकं १२ पक्षिगण मम भदो आर्तनाद करने लगे। यह देख राम- अगस्तको वीजापुर के राजा युमफ आदिलशाहन बहुतमी कृषा मनमें अत्यन्त कष्ट हुआ । गामन्तकी रक्षा करने । मैन्य ले गोआको अपने दखन्नमें लिया । घटनाक्रमम पोत्त- लिए दोनों भाई विपक्ष सेना समुद्र में कूद पड़े । दोशन गन्नमें एक सुशिक्षित मैन्य दल आ पहुचा । पाल्वुकान युद्ध के बाद जगमन्ध पगम्त भार निरस्त हो गए। म उनकी महायताम २५ नवम्वरको फिर भी गोत्रा नगर समय महारथगण धार धोर भागने लगे। जरासन्ध भी पर आक्रमण किया था । इस लड़ाई में प्रायः दो महम्र रणक्षत्रको परित्याग कर ना दो ग्यारह हो गए । रामसष्णन मुमन्नमान शत्र क हाथमे मारे गये थे। उस समय अधिः पितृस्वम्पति चेदिराजक अनुरोधसे उनके रथ पर चढ़ | वासियोंको जमा कष्ट भोलना पड़ा वह अकथनीय है। कर वीरपुरको प्रस्थान किया । ( शि५-८६५.) पोर्तगोजराजन लूटका पञ्चमांश प्रायः दो नाग्व रुपये पाये प्राचीन शिलालिपिक पढ़नम मालुम होता है कि रहे। पाल्वकार्कने टग भंस्कार और नगर सदृढ करन- यहां पहले पहल कदम्ब-राजगण राजत्व करत छ । की व्यवस्था की । इम समयमे एमियास्थ पोतंगोजके अधीन १२४७ ई०को षष्ठदेवक गोपकपुरमें राज्य करत देखे गये | दमरे स्थानीको अपेक्षा गाया हो प्रधान हो उठा। मार्टिन हैं। इसम अनुमान किया जाता है कि उस समय बाद पाल फन्मो पहले पहल गोयाक शामनकर्ता हो कर आये भी कदम्बराजगण थोड़ काल गोपकर (गोपा) में थे, उनके माथ मेगट जेवियर भी थ। उनक शाममकालमें राजत्व करत थ । १३१२ ई०को मालिक तुकलन नामक १५४३ ई०को इवा हम आदिल शारक अधीनस्थ माल- एक मुसलमानन गोआको अपन अधिकारमे कर लिया।। मिट और वारदेश नामक महान पोत गोजांक अ धकार इसके बाद १३७० ई०को विजयनगरराज हरिहरक भुक्त हुए । भविषात्म महमा ममलमानक अाक्रमण पानमत्री सुप्रसिद्ध वंदभाष्यकार माधवाचाय से मुसल निवारण के लिये गोपार्क पथिमांशमें एक दृढ प्राचौर 'के हाथम यह नगर उद्दार किया गया । तत्पश्चात् निर्माण किया गया । १५७० ई०को आलि आदिलशाहन धरोनि प्रायः मा वष यही राज्य शासन किया। लगभग लक्षाधिक मैन्ध ले गोआ नगर अवगध किया ई०को वाह्मणीक राजा २य मुहम्मदक सनापति था, किन्तु इम ममय पीतगोजक राजप्रतिनिधि उनलाई तीक्षा, गोपा जीत वाहमनी राज्यमें मिला लिया था । | दि-आठिन अल्पसंख्यकमन्य ले अति विचक्षगरूपसे पित्तहडिजात्रोंक अध:पतन और भास्को-डि-गामा | नगर रक्षा को थो। दश माम घरे रहनके बाद मुसलमान मा