पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५१०

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गोंडरी-गदरौ गाडरी ( हि स्त्री० ) कोई गोलाकार पदार्थ । । चन्द्रसिंह, दियाल सिंह, कंवल, मरण, बन्दी, गोराइया, गोड ला ( हिं० पु० ) परिधि लकीरका गोल घेरा। कमलाजी और नृमानकी पूजा करते हैं। केलाबाबा गोंडा (हि' पु०) १ बाड़ा, गहुश्री स्थान ।२ ग्राम, गांव. को ये लोग गङ्गाजी का बेलदार बतलाते हैं। बाराहो- मोहला, पुरा, बम्ती। ३ खेतों का उतना धेग जितना पूजामें ये लोग ब्राह्मण पुरोहितको बिना बुलाये हो एक किमानका हो और एक ही जगह पर हो। ४ बड़ी एक शूकरका बच्चा चढ़ा देते हैं। जयसिंह गौडी चौड़ी महक . ५ अांगन, चौक । ६ परछन । जातिके थे और वे उज्जयिनीमें रहते थे। किसी समय- गोंडा--देहरादून, अबध, गोरखपुर, बुदै लख'ड, बङ्गाल्न में सुन्दरबनके राजाकै साथ एक लकड़ी के पीछे इनको और मध्यभारतकै जङ्गलों में उत्पन्न होने वाली एक तरह की | झगडा चला था, उममें राजाने मात मौ गांडियोको नता । थोई हो वर्षों में यह बहुत फैल जाती है । ममय कंद किया था। जयसिंहन राजाको मार कर इनका ममय पर यह काटी नहीं जानमे जगालो को बहुत हानि उद्धार किया था। तब होसे ये लोग जयसिंहकी पूजा पहुंचाती है । इसके पत्तं बहुत लम्बे चौड़े होते जो चार करते हैं। ये लोग मुर्दे को जलाते हैं। तेरहवें दिन के काममें आते हैं। ग्रोम कालमें इसकी टहनियों के शीर्ष | इन लोगांमं श्राद्ध हुआ करता है। पर मुकेके पुष्प लगते हैं। मछली मारना और नाव चलाना हो इनकी उपजी- गौड़ी-विहारको मत्मा और कृषिजीवो एक जाति । इन्ह विका है। परन्तु अब बहुतों ने यह काम छोड़ दिया है, गुड., मजाट, मछा, आदि भी कहते हैं। गौडियोका ओर वे खेती करने लगे हैं। वे लोग शराब, मछन्नो, चहे, कहना है कि "जिन निषादने श्रीरामचन्ट्रको नदी पार कछुए और शूकर खाना पसन्द करते हैं। हां, इनमें जो कगया था, हम लोग उन्हीक वंशक हैं।" निषाद दे । भगत हैं वे मद्य, मांस कुछ भी नहीं खाते। बिहारक इनकी प्राक्कति अनायोंमे कक कक मिलती है। इनकी उच्च गोंक ब्राह्मण इनके हातका पानी नहीं पाते । वहां उपाधियां ये हैं,-चौधरी, जथमन, मन्दर, मुखियार, ये कुम्हारों से भी नोच समझ जाते हैं । ये लोग केवल, नाखुदा और महनो। इनमें कुरिन, खुनौत, कोल, चाव धानुक आदि नोच जातिकं हाथका पानो और मिठाई या चावो, पहाडी कुरिन और बनपर भा'द कई एक आदि भी खाते हैं। विहार-बहान भरमें ६ लाखके करीब श्रेणियां हैं। उक्त श्रेणियाममे कोल और करिन पापम- गोडी रहते हैं। में गेटी-बैटीका व्यवहार रखते हैं, परन्तु इतर थेणियां गोंद (हि. पु०) चिप चिपा या लमादार पमेव जी पड़ोंकि के लोग दूसरी श्रेणी के साथ बेटी व्यवहार नहीं करना सनसे निकलता है। यह शुष्क होने पर कठिन और चम- कोला हो जाता है। चाहते। वालिकाविवाह ही इन लोगों में प्रचलित है: | गोदनी (हिं स्त्री० । गोदोका पंडोखो परन्तु ऋतुमती होने के बाद भी लडकियोंका व्याह होता पोदपजरो ( हि स्त्री०) प्रसूता स्त्रीको खिलानको है, इमे ये लोग निन्दनीय नहीं ममझते। पहिली स्त्री गोद मिश्रित पंजीरी। के वधवा या चिररुग्न होने पर हो ये लोग दूमरा विवाय गोटयाग (वि. पु.) गोंद और चोनौके संयोगसे बनी काते, अन्यथा नहीं। इनकी विधवायें अपनी | हई एक तरहको मिठाई, पपड़ी। इच्छानुसार दूसरी बार विवाह कर मकतो हैं। पापमम गोंदमखाना (हि. पु०) गोंद मिश्रित भूना कुछ खट पट या और कोई कारणसे विष हो जाय तो | मखाना । ये लोग पञ्चायतको आज्ञा लेकर विवाह-वन्धनको तोड गोंदरा (हिं पु०) १ मोलायम घास या पोपालका बना डालते हैं। गोंडियों में अधिकांश वषाव हो मिन्नेगे; हुआ एक प्रकारका बैठनका आसन । २ गोनरा घास । और कुछ थोडे से सौर भी देखनमें पाते हैं। निम्र गोदरी (Eि स्त्री० ) जलमें उत्पन्न होनेवाली एक तर. श्रेणीके मैथिल ब्राह्मण लोग इनके पुरोहित हैं। ये हरी घास जो बहुत लम्बी और गर्म होती है । २ इसी लोग पाँचपोर, कैलाबाबा, बाराही, जयसिंह, अमरसिंह तृणकी बनी हुई चटाई । ३ खड़की चटाई। तकि