पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५०९

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गांड -गोंडरा कहीं विवाहबन्धनकै समय नाई पाकर वर और कन्या- | उन्होंने गडामगरको ही अपनी राजधानी बनाया था। के ऊपर एक एक गागर पानी ढाल जाता है। विधवाएं ६८८ में यादवरायके वंशधर गोपालशाहोने मण्डला अपने देवरमे विवाह कर सकती हैं। परन्तु एमे विवाह पर दखल जमाया था। संग्रामशाहाने जब १४८० ई में में कोई क्रिया नहीं होती, और तो क्या ब्राह्मण और राज्यारोहण किया था, तब वे मिर्फ एक ही जिलके राजा नाई तकको भी जरूरत नहीं पड़ती। सिर्फ अपनी | थे। पीछे उन्होंने ५२ जिलों पर दखल जमा लिया था। जातिके भाइयोंके सामने वर उस विधवाको एक नई | १५३० ईमें ये मर गये। साड़ो ओर चूड़ी देता है, तथा “इस विधवाका भरगा- | फिरिस्ताके पढनसे माल म हो मकता है कि, १५६३ पोषणका भार मेरे ऊपर रहा" ऐसा अङ्गीकार करने पर ई में प्रासफ खान जब गड़ा पर आक्रमण किया था, उपस्थित जातिभाइयोंको अनुमति लेकर विवाह कर तब वहकि राजा वीरनारायण थे। इस यड में इनकी दिया जाता है। मृत्य हुई थी। फिर १६१० ई० में हृदयेश्वर वहांके राजा विहार के गौड़ क्रमस: अपनको कट्टर हिन्दू कह कर हुए थे। इन्होंने रामनगरमें मोतीमहल नामका एक अपना परिचय देने लगे हैं। ये लोग हिन्दुओंके बहुत प्रामाद बनाया था । उम मोतीमहलके १०० फीट दक्षिण- मे देव-देवियोंकी पूजा करते हैं। इसके अतिरिक्त बूड़ा पश्चिममें उनकी पत्नी रानोसुन्दरोका बनाया हुआ एक देव और दुल्हादेवकी भो पूजा किया करते हैं। देवः विष्णुमन्दिर है । उम मन्दिरमें विषण , शिव, गणेश, पूजा और विवाह आदिके कामों में निम्न श्रेणीके ब्राह्मण | दुर्गा अर सूर्य देवका मूर्तियों प्रतिष्ठित हैं मन्दिरको ही पौरोहित्य का काम करते हैं। ये लोग मृतदेहको | लम्बाई चोड़ाई कुल ५६ फुट है। इमर्क भोतरमें २८. दाग देते हैं। पातक तीन दिनका मानते हैं। ये लोग | फीट चतुरस्र एक घर है, उमको छत पर गुम्बज है। दाढ़ी-मूछ और सिर मुड़ा कर स्नान करके शुद्ध होते हैं, | यह मन्दिरको बनावट मुमलमानोंको ममजिद जमा है। और मृत आत्माके लिए दूध रोटी चढ़ाते हैं। बङ्गाल के लोग इसे पश्चरत्न मन्दिर कहते हैं: १७४२ ई०- ___पहले लिखा जा चुका है कि, गोण्डवानाकै अन्तर्गत | में शिवराजशाहीने राज्यभार ग्रहण किया था. महा- भूमि पर प्राचोन गौड़राज्य था और उन राजाओंके समय- राष्ट्रीय मर्दार बालाजी बाजोरावके साथ इनका युद्ध में उक्त प्रर्द शमें गड़ा ओर मण्डला नामकी दो राज | हुआ था। धानियों थीं। इन दो स्थानों के प्राचीन व मावशेषों और सातपूरा पर्वतके दक्षिणको तरफ छिन्दवाड़ाके अन्त ओंके समयके शिलालेखोसे पहिले की समृद्धि गत देवगढ में और बैतूलके अन्तर्मत खेरला ग्राममें को काफी प्रमाण मिलते हैं। अब वैसी समृद्धि नहीं | दूसरे गोड राजा राज्य करते थे। १४३३ ईमें खेरलाके रही, गड़ा और मण्डला ये दोनों नगर अपना पूर्व परि राजा नरसिंहराय मालवराज हुसङ्ग घोरीके युद्धमें परा- चय मात्र दे रहे हैं । पहले जो गौड़ वा गौड़ राजगण | जित हो कर मारे गये। औरङ्गजेबके राजत्वकालमें गड़मण्डलमें राज्य करते थे, वे अपनेको हिन्दू और क्षत्रिय शिवलीगढ में एक पार्वतीय राजा स्वाधीनभावमे राज्य बताते हैं। गहमाल आम देखा। करता था । महाराष्ट्रो ने ई० म० १७६० से ७५के भीतर प्राचीन समयमें मालवके राजपूत राजाओं के साथ भीतर रमको स्वाधीनता नष्ट कर दी थी। पर्वा नदीक इन गौड राजाओंका ममय ममयपर युद्ध होता था, इस पाम चन्दानगर है, इममें भी गोंडव के लोग रहते हैं। लिए सम्भव है कि, उस समयमे ही दोनों जातियों में | गोउकिरी (हिं. स्त्री० ) एक रामिणी जो गोंड रागका विवाह सम्बन्ध प्रचलित हुया हो। उनके वंशके लोग | एक भेट ममझी जाती है। अब भी राजपूत या राजपूतगोंड़के नामसे अपना परिचय | गोंडरा ( हि पु० ) १ मोटके मख पर बाँध जानको एक देते हैं। गाके राजा नागदेवके मर जाने पर उनके गोल लकड़ी वा लोहे की छड़ । २ कुण्डलके आकारको -दामाद यादवराय उस राज्य उत्तराधिकारी हुए थे और कोई चीज । परिधि, लकीरकागोजघरा।