पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५०७

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गांड पनमें से बहुतमे मध्यभारतके खानदेशी और उडिषाके राजवडेन वा देशाद भी कहते हैं। ढोली लोग ढोलक अधित्यकामें तथा नर्मदा, तामी, वर्धा, वेणगङ्गा आदि वमाते हैं । नागारची या छेरक्या नामसे इनमें एक नोत्री नदीप्रवाहित स्थानों में तथा वैतूल, छिन्दवाड़ा, मिवनी अणो भी है। इस श्रेणोके मर्द लोग बकरियों को चराते और मगडला इत्यादि जिलों में भी वाम करते हैं। है और इनकी स्त्रियां दाईका काम करती हैं। प्रोमि- इस जातिका किमीने गोगड और किमी किमोन याल लोग मजीरा बजात हए गाते फिरत हैं। ढो लयाल गगड़ नाम उल्लेख किया है। हिस्नोप माहबका अनु. लोग शोतला देवोंक उपासक होते हैं। चेचक फलनेके मान है कि, सम्भवतः सेलगू कोण्ड ( पहाड़ ) शब्दमे समय ये लोग उमको उपशम करनके लिए घर घर जा मुसलमान ऐतिहामिकोंने “पहाड़ी जाति' एमे अथक कर शीतला देवोक गीत गाया करते हैं। इमोलिए कहीं अपभ्रशमें गोगड लिखा है। भू-वेत्ता टल मी भी इन कहीं इनको मातिपाल, ठाकर और पगडा बडिया भी नोगांको “गोण्डलोद" (Gondaloi) नामसे उल्लेख कर कहते हैं। गये हैं। मुमन्नमान इतिहाममें इनकी वामभूम "गांड. कलाभूताल लोग भो मड़को पर गाते फिरते हैं। कैलास वन" लिखी है। गोठवन देखो। पहिले उक्त स्थानमें । इनकी लड़कियां भी नत्त कोका काम करतो हैं । के- ममृद्धिशाली गोंडराज्य था। ७८० दे०से ले कर ८०८ कोपाल वा गोड़गोपाल लोग ग्वान्नां का काम करते हैं। ई. तक राष्ट्रकूटराज गौड़ने मरुद श पर आक्र मादियान गांड मबमे ज्यादा प्रमभ्य और जङ्गली होते मण किया था · मरुद शाधिपति वत्मराज गौड़गजके हैं। वैलादिला पवत पर ये लोग कुन्हाड़ो हाथमें लेकर धनप्त ही धनी थे। ८१२ ई० में लाटेश्वरराज कर्क राष्ट्र मर्वथा नङ्ग घुमा करते हैं। इनको स्त्रियाँ भी कपड़ा कटने गौड़राजके हाथमे मालवराजको बचाया था। पहरना नहीं जानतीं । मिर्फ कुछ पत्तों को लेकर कमर के १०४२ ई में गौडराज्य चेदिराज कर्णदेवक गज्यमें मिला अागे पीके बांध लेती हैं। बम्तारके लोग इनको जोधिया हुआ था। उक्त प्रमाणमि माल म होता है कि, पहिल कहते हैं। ये लोग अपरिचित व्यक्ति को देखते ही डरमे एक गोडदश ही चेदि, मालव, राष्ट्रकूट और बरारराज्य भाग जाते हैं। वास्तारकै राजाको ये लोग कई तरहमे का सीमान्तवर्ती था। सम्भव है कि, वह गौड़द श कर देते हैं। कर बसूल करते समय तहसीलदार पञ्च गौडमिमे एक हो। गांड देखो । गौड़देशवामी होन- गांव के बाहर आकर ढोल बजवा कर कहीं छिप जाता के कारण एम जातिका नाम गांड पडा हो,एमा भी संभव । है, पौके ये लोग उस स्थान पर जाकर अपनी इच्छानुमार हो सकता है। कर रख कर भाग जाते हैं। वर्डा नदोके दक्षिण पिण्डो गांड लोगों में राजगोंड़, रघु वल, दादाव, कतुल्या, पहाड़ पर कोलाम श्रेणोका वाम है। ये लोग अपनी पाड़ाल, ढोली, ओफियान, ठोटियाल, कलाभूतान, जातिके माथ बैठ कर ग्वात पोते हैं. पर ब्याह शादी नहीं के कोपाल, कोलाम, मादियाल और नीचपाडाल इतनो करते । ये लोग भीमसेनकी पूजा करते हैं। श्रेणीयाँ भी पाई जाती हैं। राजगोंड, रघु वल भार इसके अलावा छिन्दवाड़ा और महादेव पर्वतके दादाब गोके गोड खेती करते हैं, इन लोगोंमें रोटीका बीचमें रहनेवाले मादि या गांड हिन्दीको भाषा और व्यवहार तो है; पर बेटीका व्यवहार चाल नहीं है । इन धार्मिक क्रियाकलापोका बद्दतमा अनुकरण करते हैं । लोगोंने हिन्दुओंको क्रियायोंका बहुतमा अनुकरण किया वस्तार, भगडारा, और गयपुर जिलेके हलवा गोंड़ है और धीरे धीरे हिन्दयों में मिलने का प्रयास भी करते वतार राज-प्रदत्त यज्ञोपवीत धारण कर. अपनको उच्च हैं। खाजरादादक गौडराज अपने को हिन्द्र कह कर अंगोका मानते हैं। वम्तााके गीत वा के तोर और परिचय दते हैं। ये लोग दरिद्र राजपूत कन्याओंका माड़िया नोगीको उपजोविका प्रधानतः खेती पर हो पाणिग्रहण करते हैं । पाड़ाल श्रेणोक लोग धर्मोप- निभ र है । वण गङ्गाके मिलाने के नै कडॉन हिन्दी जैसा देशकका काम करते हैं। कहीं कहीं इनको पाथाडो या अपना वेष बना लिया ये लोग शिकार करके अपना Vol. VI. 127