पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४९४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४८२ गरना-मोहरा गरना ( फा• कि. ) १ गिराना । २ डालना। ३ डालना, | बहुत अच्छा लगता है। नदोके दक्षिण किनारे बांसका पारोप करना। एक पुल है। गेरवां (फा० पु. ) गेरांव, पएके गन्लेमें लपेटनेका वंधन, गर्राई फा० स्त्री० ) गेरांव । गरदनी। गेरॉव (का.पु.) मेरमा देखो। गैरसप्पा-बम्बई प्रान्सके उत्तर कनाड़ा जिलेमे होनावाड़ गेरुपा (हिं० वि०) १ गेहके रङ्गका, मटम लापन लिए तालुकका एक गांव। यह अक्षा० १४. १४ उ. और लाल रङ्गका । २ गेरुमें रक्षा हुआ, गरिक, जोगिया । देशा० ७४० ३८ पू०में शरावती नदी पर पड़ता है । इस (पु.) १ गेरुके रङ्गका एक कोट। माघ मासके नामका झरना कोई १८ मील दूर है। नारियल के पेड़ | वर्षाकालमें इस तरहके कोटकी उत्पत्ति होती है। पत्र- बहुत है। यहांसे कोई १॥ मोल पूर्व नगरवस्तिकर के खेतोंमें इसके लग जानेसे पेड़ पीले रङ्गके हो जोते हैं। नामक गैरमप्पा जैनों की राजधानीका ध्वमावशेष है। २ गेहू फसलका एक रोग। इस रोगमें गेह के पेड़ कम कहते हैं, किसी समय वहां १००००० घर और ८४ मंदिर बढ़ते और क्रमशः कमजोर होते जाते हैं, जिसके कारण थे। एक जैनमन्दिरमें भाज भी ४ हार लग और ४ मूर्तियां रखी हैं। दूसरे पांच टूटे फूटे मन्दिरों में भी कुछ और कुकुही भी कहते हैं। मूर्तियां और शिलालिपियां हैं। वईमानके मन्दिरमें २४वें | गेरुई ( हि स्त्री० ) गरुषा देखी। जनतीर्थ र महावीरस्वामीकी एक काले रङ्गकी मूर्ति है। गेरू ( हि स्त्रो० ) गवेरूकखानोंसे निकलनेवालो एक कहते हैं, विजयनगरके राजामौन ( १३३६-१५६५ / तरहको लाल कठिन मिट्टी। इसके दो रूप हैं एक जो ई० ) गरमप्पार्क किसी जैन वंशको कनाड़ामें शक्तिशाली कड़ी नहीं रहती वरन् भुर भुरी होती है वह कच्ची गेरू बनवाया था। १४०८ ई.को मोके पास वुचामनमें कहलाती है दूसरी जो कड़ी होती है पको गेरू कह गुणवन्ती मन्दिरके लिये गैरसप्पा अधिपति इतचय्या लाती। इस तरहको मिट्टी बहुतसे काममें लायी जाती वोडेयार प्रितानीके भूमिको उत्सर्ग किया। कहा जाता है, सोनार सोनेके आभूषणों पर इसके द्वारा रंग देते हैं, है वहां बहुत दिनों तक स्त्रियोंका राब रहा। ई० १७वौं। रंगरेज भी इस सिकार भी रंगरेज भी इसके संयोगसे कई तरह के रंग प्रस्त.त करते शताब्दीमें बदनरके वाटप्पा नायकमे भैर देवीको हराया है। औषधमें भी इसका व्यवहार होता है, इसका था। इटलौके परिव्राजक डेलावालेने लिखा है कि पर्याय-लालमिट्टी, गिरमटो, गिरिमृत, सुरंगधातु, गवे. १४२३०को गैरसप्पा एक प्रसिद्ध राजधानी था, यह रुक, गे रिक, तामवर्ण क और कठिन है। देश मिर्च के लिये मगहर है। गर्दै ( फा• पु०) घेरा, गिर्द। गैरसप्पा-बम्बई महिनुर भीमाको एक जलप्रपात । यह | गेन्स ( सं० पु. ) विशिष्ठ संख्या, खास पर। पक्षा• १४. १४७० और देशा•७४४८ पू.में पवस्थित | गेला ( अनु० पु. ) शपखाने में बड़ी गेसी । है। जो गांव पास रहने से उसको जोग झरना लोग कहते | गेली (पं० स्त्री०) शपेखानको शिकसो किलो जो धातु या '। यह शरावती नदो पर गिरता है। दिसम्बर महीने | काष्ठकी बनी होती है और जिसपर टाइप रखकर प्रथम झरना देखनेकी बहार है ।१० मील ऊंची सड़क जङ्गल- वार वह कागज शपा नाता जो पीछे संशोधित किया के बीच गैरसप्या गावसे पावशारको गयो है । भारतमें | जाता है। एसा कोई भी दूसरा झरना नहीं और ऊंचाई, लम्बाई | गेलहा ( देव ) नेसीके तेल रखनका चमड़े का कुप्या। चौड़ाई मथा सुधराईमें दुनियामें दूसरी जगह भी इसको गेवर ( देव ) एक पेड़। गगवा है सो। मिसाल कम मिलती है । सन्ध्याको सूर्यास्त समय झरनमें | गेवराई-हैदराबाद गज्यके भीड़ जिलेका उत्तर तालुक। एक सुन्दर इन्द्रधनुः बनता पौर रातको चन्द्रमा भी उस इसका क्षेत्रफल ५०६ वर्गमील, लोकसंख्या प्रायः ५८३६॥ को शोभा बढ़ाया करता है। महिसर तटसे देखने में वह | और मालगुजारी सगभग २ लाख ३० हजार है। उत्तर 11