पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४८१

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क्षत्रियको ति-मजला, वैश्य को दु-मजला और शूद्रको और उत्तरमें शाला रहनेसे यमसूर्य, उत्तर और पूर्व में एकमजला मकान बनवाना चाहिये । एकमजला मकान शाला रहनेमे दगड, पूर्व और दक्षिण; शाला रहनेसे सबहीके लिए अच्छा है। इसमें किमोका भी अमङ्गल वाल, पूर्व और पथिमकी ओर शाला रहनेमे घरमुखी, नहीं होता। तथा मिर्फ दक्षिण और उत्तरको भोर शाला विशिष्ट - वृहम हिसामें जिम प्रकार प्रत्य कके लिए ग्राहका मजले मकानको काच कहते हैं। मिनाथ वास्तुमें परिमाण लिखा है, वमा विश्वकम प्रकाश और मयशिल्प की प्राशि; यमसूर्य में मालिकको मृत्य , दगडमें टण्ड आदिमें नहीं है। इसके मसमे प्रक्रियार्क अनुमार आय, वध. वातमें कलह और उहग, चलीमें द्रव्यका नाश । व्यय, बार पर नक्षत्र आदि शुद्ध होने पर मकान बनाया काच वास्तु में जातिविरोध उपस्थित होता है। जा मकता है। एमके मिवाय किमके लिए कैसा मकान (वनस० ५१-१) अच्छा होता है, इमका संक्षिप्त वर्णन भी लिखा है। विश्वकर्मप्रकाशक मतमे--दक्षिणम टुमुख ओर-पूर्व- वृहत्संहितामें लिखा है कि-जिम वास्तुका आंगन प्रद. में खर नामक वास्तु बनवानसे, उस दुमजले मकानको क्षिण क्रमसे दरवाजेके नोचे तक विस्तृत है, उमका 'वात' कहते हैं। ऐसे घर वाम करनेसे वातरे की नाम वईमान है। उसका दरवाजा दक्षिण दिशामें नहीं वृद्धि होती है। दक्षिणमं दुर्मुख और पश्चिममें न्य होना चाहिय । वर्डमान नामका मकान मबके लिए नामक मकान बनवानमे उसका नाम होगा यमसूर्य । इसमें मृत्य को भय है। पूर्व में खर पोर उत्तरमें धाग्य जिस मकानके पथिमका एक और पूर्व का दो अॉगन नामके घर बनवानम उमको दगड मंज्ञा होगी। इसमें आखीरतक विस्तीर्ण होते है, और बाकी के दो दिशा- दण्डका भय रहेगा । दक्षिणमें दुमुख और उत्तरमें नय प्रॉक ऑगन उत्थित तथा शेष पर्यंत विस्टत होते हैं, नामक घर बनवानमे उसको नाम बीची होगा। इसमें उसे स्वस्तिक कहते हैं। वन्धका विनाश और धनका तय है। जिसके पूर्व में खर जिम मकानंके पूर्व और पश्चिमके आंगन शेष मीमा नामक घर और पथिममें धान्य संज्ञक घर है, उसका नाम तक विस्तृत हैं तथा उत्तर और दक्षिण ऑगन उनको चुलो है । फल-धन धानाका नाश है । दक्षिगामें पसंद मीमाको अवधिमे मिल गये हैं, उम वास्तुका नाम रुचक और पश्चिममें धनद-घर बनवानसे, उस दुमजले मकाम- है। इमका द्वार उत्तर दिशाम करनेसे अमल होता है। का इक्षु नाम होगा। इसमें पशु और धनकी वृधिोती जिस बास्तुके आगन प्रदक्षिणक्रमसे नीचे तक विस्तृत हैं है। जिमके दक्षिणमें विपक्ष और पश्चिममें क्रूर नामक उसका नाम गन्धावत है । इम मकानमें पश्चिमके सिवाय घर रहे, तो उमका नाम शोभन समझना चाहिये दस- और तीन दिशाओमे दरवाजे बनवाने चाहिये । गन्धावत का फल-धन और धान्यकी वृद्धि है। जिम सबानमें और बडेमान नामके वास्तु सबहोके लिए प्रशस्त वा उत्तम दक्षिणको ओर विजय और पथिमको सरफ भी विजय हैं, स्वस्तिक और रुचिक मध्यम तथा इसके अलावा नामक घर रहेगा उसका नाम कुम्भ होगा। इसमें रहने दूसरे वास्तु राजाके वास्त शुभ होते हैं। वाले पुत्र और कलत्रीकी वृद्धि होगा। जिसके पूर्व धान्य जिम मकानमें उत्तरको तरफ शाला नहीं रहतो, उसे और पथिममं भी धान्य मंज्ञक घर रहेगा, उमका माम हिरण्य नाम, पूर्व में शाला न होनेमे सुनेत्र, दक्षिणका नन्द है, फल-धन और शोभावधि। किसी भी दो दिमा. तरफ शाला न रहनेसे चुलीत्रिशालक और पश्चिममें शाला में विजय नामके दो घर बनवानसे उमका नाम जोनस पक्षघ्न कहते हैं। इनमें पहलेके दो शुभ है। होगा। दमका शुभ फल है। वास्तको नी भागों में विभक्त शासनमें धननाश और पक्षघ्नमें पुत्रनाश तथा करके, उमके शुभाशुभको चिन्ता करनी चाहिये। शतमा है। जिममा अश्चिम और दक्षिणमें . पर विवरण वास्त पाहि दी । दो ही नए रहती हैं, उसका रियं, सिर्फ पश्चिम जिन वृक्षों में सूध या गोंद पैदा होता है, उसकी