पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४७३

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राधयातु-गुभोत . ४०१ ग,ध भोजान्तक (सं० पु०) वफलकके एक पुत्रका नाम। अथवा अग्निको वृद्धि मालूम पड़े तो वम्तिक्रिया द्वारा ग,ध यातु ( सं० पु० ) ग,ध रूपेण याति या तुन् । अथवा चिकित्सा करना उचित है । विरेचन या वमनसे शोधन गधः परिकरभूतैः सह यातयति यात-उण । राक्षस किये बिना वस्तिक्रिया करना निषिद्ध है। विशेष, जो गध रूपधारण कर आकाशमैं परिभ्रमण प्रातःकाल गोमूत्रके माथ थोड़े परिमाणमें रेडीका करता है। तेल एक माम तक सेवन करनेसे गृध्रमी रोग सूर हो गध राज ( स० पु० ) गधाणां पक्षिणां राजा, ६ तत् । जाता है अथवा पाकका रम, जम्बोर नोबृका रस, अम्न- गरुड़के पुत्र जटायु । वेतम (खट्टा साग)का रस और गुड़ बराबर भाग लेकर तेल गृध्वट ( म० पु०) धोपलक्षितो वटोऽत्र बहुव्री०। या त प्रक्षेप कर पान करनेसे गृध्रसी रोगका प्रतिकार तीर्थ विशेष, देवस्थान। इस तीर्थ में वृषवाहन शिव होता है । रेडीकामूल, बेलमूल, वृहतो और कण्टकारी जोको मूर्ति है। इस स्थान पर उपस्थित हो सान करके मर्व ममेत २ तोलाको आधमेर पानी में मिड करें। शधा शरीरमं भस्म लगानेसे ब्राह्मणोंको हादशवार्षिक व्रतानु पाव या दो छटांक पानी रहने पर उतार ल । इसमें थोड़ा ष्ठानके ममान फल होता है, और दूसरे वर्ण के ममस्त मौवर्चल लवण (मोरानमक) डाल कर पान करनेमे ग्रसी. पाप विनष्ट होते हैं। जनित शूल नष्ट होता है। गोमूत्र और एरण्ड सेन्न ४ गृध्व्य ह ( म० पु० ) गिटके ( भारत श८४ १० ) आकारको तोलाके साथ ४ माषा पिप्पली चर्गा मिश्रित कर पान मेनाको रचना। करनेसे पुराना वात और कफसे उत्पन्न धूमी रोग दूर हो जाता है। वासक, दन्ती और मोदाल २ तोम्मा आधा धूमद ( म० त्रि० ) र मोदति ण मोदति गच्छति मेर पानोमें सिद्ध कर प्राधपाव पानी रहने पर उतार लें वा मद्-क्तिप । जो ग्धू पर उपवेशन करता है अथवा और उमे अच्छी तरह छॉन कर थोड़ा एरण्डका तन्न जो गिड पर चढ़ कर भ्रमण करता है। मिला कर पान करनेसे अचल धूमो रोगीको स्तब्धता गृध्रमो ( मं० स्त्री० ) रानमपि स्यति मा क गौरादित्वात् । दर होकर गमनशक्तिका मञ्चार होता है। मात देखो। डीप। वातरोगविशेष। ( Lumbago ) भावप्रकाशमें इनका लक्षणादि यों लिखे है --कुपित वाय नितंबदेशमें राधाकार ( मं० पु० ) भाषपक्षी। प्राय कर स्तब्धता और वेदना उत्पन्न करता. इससे राधाण ( मं० पु.) १ ग्ध के जैसा स्वभाव । २ ग्ध पत्रा नितम्बस्थान बार बार म्पन्दित हुआ करता है। इसोको वृक्ष, तम्बाकका पड़। गृधमी कहते हैं। क्रमसे रोग बढ कर गाढमलमे अरू. धाण ( म० स्त्री० ) राध इवानिति अन अच गौरादि. कटि, पृष्ठ, आनु, जङ्का और पदवयमें पहुंच जाता और त्वात् डोष मंज्ञायां गत्व। धनपत्रावृक्षः तम्बाक का स्थान स्थानमें स्तब्धता, वंदना तथा स्पन्दन उत्पादन करन' पड़। लगता है। ग्धी ( सं० स्त्री० ) कश्यपको स्त्री ताम्राको एक कन्या । __ यह गृध्रसी रोग दो तरह का है-अममृष्ट वायुः । (विश्व५० १॥२११४) जनित तथा कफ सृष्टवायुजनित । असमृष्ट वायुज एभ (मं० पु०) यह हकारस्य भकारः छाम्दमत्वात् । टह, गृध्रसी रोगमें शरीरमें वेदना, तथा जानु, जड्डा और ऊरु- घर। मन्धिमें स्तब्धता और स्फ रण होते हैं। कफ समृष्टवायु- रटभि ( स० पु. ) ग्रह-कि मप्रसारणं छान्दमत्वात् हका- जनित ग्रध्रसी रोगमं शरीरको गुरुता, अग्निमान्य, तन्द्रा रस्य भकारः । पकड़नकी क्रिया, ग्रहण करनेका भाव। ( उजगई ), मुखसे लालम्राव तथा अरुचि होती है। ग मीत (म त्रि०) ग्रह क्त-छान्दमत्वात् हकारस्य भकारः। गृध्रसी रोगाकान्त मनुषाको सबसे पहले वमन द्वारा १ गृहीत, पकड़ा हुआ, ग्रहणयुक्त । २ ग होतयस, जिम- शोधन करना चाहिये। यदि रोगीमें प्रामदोष न रहे । ने यन्त्र ग्रहण किया हो । ( भागवत १०८०१४)