पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४४२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४४० गुलाब है, और पञ्जाबमें अब भी गुलाबको श बतो हो कहते । जवान, स्त्री और बालक-सब ही गुलकन्द ग्वाना पसन्द हैं। शिवप्रिया, शिववल्लभा आदि शदीमे एमा ज्ञात होता करते हैं। प्रसिद्ध मुसलमान हकीम हबनसिनके सिद्धान्ता है कि, पहिले गुलाबका फल भी शिवका प्रिय था। नुसार-गुलकन्द बल और मैदको बढ़ानवाला होता वास्तवमै शतपत्रों के कहनसे प्रधानतः पाटलवण के गुला है। उन्होंने सिर्फ गुलकन्दको खिला कर यक्ष्मा रोगसे वका और कठगुलावका बोध होता है। इसको अंग्रे. पीड़ित एक स्त्रीको आरोग्य कर दिया था। भारतमें बहु- जीमें Damask rose ( Rosa Damascena) और तसे लोग भाँगके साथ भी गुलकन्द खाया करते हैं । इमी। Hundred.ltavel rore ( Rose Centifolia mus | गुलकन्दमें शहद मिलानसे गुलङ्गबिन बन जाता है। cosa ) कहते हैं। पुराने पारमी ग्रन्थों में गुलाबको उसके गुण भी गुलकन्द जैसे हैं। विशेष प्रशमा लिखी है। गलाव या गुलाब जल-गाजोपुरमें गुलाबसे इस प्रकार अग्वी और पारमो ग्रन्थों में न एल् हमक (अर्थात् अतर बनाया जाता है। जिसमें एक मन पानी आ जाव बाहर पोला ओर भोतरमें लाल गुलाब ' दालिक एमा एक नामका पात्र (डेगची) होता है, जिसका मह ( Dog rose ) आदि पाँच तरह के गुलाब फलांका सुराई मरीखा लम्बा होता है। उसक ऊपर तमन्ना सरीखा वण न पाया जाता है। एक तांबका पात्र रहता है, उमके एक बगल में एक कोटा प्रमिद पदार्थतत्त्ववित् निनिने १२ प्रकारकै गुन्नाव | छेद रहता है। उस छेदके मुह पर एक वांमको और उममे ३२ प्रकारको आषध बनने का वर्णन किया है। नलो लगा कर, उसका नीचलो हिम्मा भवका नामक हम देशमें इम समय नाना प्रकारक गुलाब देखनमें पात्रसे जोड़ दिया जाता है। नलीमे भाफ निकलने न आत हैं। गुलाब की पखुड़ियां बालकोंक लिए मृटुवि- पावे, इस लिये नलीको रम्मीमे अच्छी तरह बाँध कर रंचक (माधारण दस्तावर ) औषध रूपमै व्यवहत होतो । उस पर मंदा थोप दी जाती है। भवकाके भीतर ज्यादा गरम होनकी मम्भावना है इस लिये वह पात्र पानी- हकीमी किताबों में गुलाबमे बननेवाली कुछ उपा- में डुबा कर रखा जाता है। इस प्रकार जब वकयन्त्र देय वस्तु प्रोंका उल्लेख मिलता है, उनके नाम ये हैं, -- (एक खास तरहका वाष्पयन्त्र ) तयार को जाय, तब दुइनो वरद-ए-खाम, दुइनो वरद-ए-मतबुख, गुलकन्द, उस डंगचीमें पानी और गुलाबके पत छोड़ कर उसे गुम्लङ्गबिन, गुलाब-जल और गुलाबका अतर । चूल है पर चढ़ा देना चाहिये। अग्निकै उत्तापम पानी उवलता रहता है और उसको भाफ जिसमें कि सुगन्धि- गुलाबके पत्तोंको चन्दनके तेल में डालकर उसे घामम के परमाणु रहते हैं, वांसकी नलोके द्वारा उस भवका सुखा कर चुधानसे जो खुशबूदार तेल निकलता है उम तलको दुइनो-बरद एखाम कहते हैं । इमी प्रकारसे नामक पात्र में पहुचती है। उस पात्रमें भाफ पहुंचते हो जल रूपमें परिणत हो जाती है, क्योंकि, वह पात्र जो मट्टी पर चढ़ाकर चुाया जाता है , उसे इहनो. ठगई पानामें डूबा हुआ रहता है। इसोको हम लोग वरद-ए- मतबख कहते हैं। हकीमोंके मतानुसार इन गुलाब या गुलाबजल कहते हैं। एक हजार गुलाबके दोनों तेलोंके गुण ये हैं-यह मृदुविरेचक, सङ्कोचक और फ लोंसे एक सेर गुलाब जल जो बनता है, वही मबसे लोद (मवाद ) का नाशक है। एमा क्षार जिममें कि | श्रेष्ठ है। इससे भी उत्कष्ट गुलाब जल बनाना हो तो प्राण बचनेका मंशय हो शरीर में प्रविष्ट होनेसे इसका दस हजार गुलाबोंम यथेष्ट जल मिला कर आध मन सेवन करना चाहिये। यह बहुत फायदा पहुंचता है। गुलाब-जल बनाना चाहिये, फिर आठ हजार गुलाबके गुलाबकी सूखी पखुड़ियां और मिश्री-दोनों को आधी फलोंमें प्राध मन गुलावजल मिला कर १८ अठारह मेर माधी मिला कर पीसनेसे गुलकन्द बन जाता है। भार गुलाब-जल चुाना चाहिये । चुगाए जाने के बाद २०, तमें नाना स्थानों में हिन्दू और मुसलमान, बूढ़े और २५ दिन धूपमें रखना चाहिये, क्योंकि ऐसा करनेसे