पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४३१

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गुरुवला-गुरुत्तम "४९ कहते हैं। इस वर्ष मिर्फ लताजातीय शस्यको वृद्धि पद्धत भी दूसरो तरहकी है । ये अन्यान्य बैष्णकि माथ होती है, और कोई अनाज बिल्कुल ही नहीं होता। एक पक्तिमें बैठ कर भोजन नहीं करते। । कहीं कहीं भयङ्कर दुर्भिक्ष पड़ जाता है। गुरुवौज ( मं० पु० ) मसूर।। रेवती, अश्विनी और भरणी इनमेमे किमो एक नक्षत्र- गुरुवृत्ति (मं० स्त्री० ) गुरुषु हत्तिय वहारः, ७-तत्। गुरु- में वहस्पतिका उदय हो, तो वह वर्ष आश्विन कहलाता के प्रति शिषाका कत्तव्य व्यवहार । गिषा । है। इस वर्ष में अतान्त वर्षा, प्रजाको हर्ष और सम्म गण गुरुशिशपा (सं० स्त्री० ) नित्यकर्मधा० । शिशपावृक्ष, प्राणियोंको मुख होता है। कहीं भी अन्न कष्ट नहीं शोममका पेड़ रहता । (राहतस८१०) म पनि चार द वो गुरुशुश्रुषा (म० स्त्री०) गुरोः शुश्रुषा, ६-तत् । गुरुसेवा। गुरुवला (सं० स्त्री० ) मंकीर्गः रागका एक भेद। गुरुर्थष्ठ ( म० क्ली० ) धातुविशेष, रॉगा। गुरुवायङ्करी-दक्षिणा कनाड़ा जिलेके उप्पिनङ्गड़ी गुरुस ( म० पु. ) गरुड़शाली, किमी किम्मका धान । न एक ग्राम । यह वेल्लतङ्गरीक पास गुरुमारा (म० स्त्री०) गुरु: गुरुत्ववान मागे यम्य,बहुव्री। से १२ मोल उत्तरपूर्व में अवस्थित शिशपा, शीसमका वृत्त। (त्रि.) २ महाभारयुक्त वस्तु, है। यहां एक जैन मन्दिर है । फर्गुमनने उक्त मन्दिरको बहुत भारी चोज। 'गुरशङ्करो' बतलाया है। उक्त मन्दिरके मण्डपको छत गुरुमिह ( म० पु० ) एक पर्व त्योहार । जव लहस्पति पांच स्तम्भों पर डटो हई है, ओर भित्तिकै पाम चारी मिह राशि पर आता है तो यह पर्व लगता है। इस तरफ पत्थर को मप मूत्ति यां खुदो हई हैं। लोगोंका त्याहारमं नामिक क्षेत्रको यात्रा और गोदावरी नदीका विश्वाम है कि, यह मन्दिर बहुत प्राचीन कालका है। सान पुण्य माना गया है। धुरुवायुर-मन्द्राज के मन्तवार जिलेक अन्तगत पोमानी गुरुमेवा ( म० स्त्री० ) गुगः मेवा, ६-तत्। गुरुको तालुकका एक ग्राम । यह अक्षा० १०.३५ उ० और ७६ शुश्रूषा। पर अवस्थित है । लोकसंख्या प्रायः ३६८.३ गुरुम्कन्ध ( म० पु० ) गुरुस्कन्धोऽस्य, बहुव्री०। १ एक है । यहां नंबुरि ब्राह्मण, नायर और उच्च श्रेणोक हिन्दुः पर्वत । २ सीरिकीकृत, ग्विग्नीका पेड़ । आंका वाम अधिक है। यह पोनानासे १६ मोलको दूरी गुरुम्बद (म० पु.) अश्वका व दविशेष, घोडेका पसीना । पर वसा है, यहाँके प्राचीन कृष्णमन्दिर तथा नगरके गुरुह (म त्रि. ) ग.४ ग्वा । प्रवे शहारक गोपुरका शिल्पकार्य अतान्त सुन्दर है। गुरुहन् ( म० पु० ) गुरु गुरुपाकं हन्ति गुरु-सन्-क्लिप । १७८४ ईमें टोपू सुलतानने यहांके बहुतसे मन्दिरोंको १ उजन्ला मरषों । (त्रि०) गुरु प्राचार्यादिकं हन्ति नष्ट भ्रष्टकर दिया था । १७८४ ई में' कालिकटके विप। २ गुरुहन्ता। सामरिराजने कई एक जोमा मन्दिरीका संस्कार किया गुरू ( वि. पु. ) गरु देखा। गुरुघंटान्न (हिं० वि०)१ अत्यन्त चतुर, चुमतचालाक । गुरुवार ( सं• पु०) वृहस्पतिका दिन, वृहस्पतिजी देव २ चालबाज, धुत्त । ताओंके गुरु थे हमे गुरु शब्दसे वृहस्पतिका ग्रहण गुरूत्तम ( स० त्रि. ) गुरुष गुरूणां वा उत्तमः । १ पूज्य तम, मबसे अधिक पूजा । ( पु० ) २ परमेश्वर . गुरुवासो वैष्णव-गह के एक मम्प्रदायका नाम । (पाम. वि. ) ये गृहस्थ जोते हैं। इनमें न्यारे न्यारे मठ और महन्त हैं। पुरुषोत्तम और गुरुत्तम आदि पदोंक ममासकै विषय- ये महन्त कार्यकयरी, किसान, मालाकार इत्या दको में वैयाकरणोंका मतभेद है। किसी किसी वयाकरण- मन्त्र दे कर अपना शिषा बनाते और उनमें खेती-बारी के मतसे गुरूत्तम आदिक स्थान पर गुरुषु उत्तमः इस करा कर अपनी जोविका निर्वाह करते हैं। इनकी प्रकारका मातमी तत्य रुष समासही होता है, षष्ठी समास Vol VI. 108