पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४२४

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४२२ गुरुगोविन्दसिंह-गुरुराटक विशेष, जिसमें गुरुका स्तव, गुरुको ब्रह्मरूप वर्णना, गुरु ' ये लोग मुदको गाड़ देते हैं। इस जातिक उरुण्डा के प्रति शिषाका कर्तव्याकर्तव्य एवं प्रात्मतत्त्व उपदेश थरके लोग पर्वत पर मुर्देको जलाते और उसकी राखको भली भांति वणित हैं। यह रुद्रयामलका एक अंश है। शून्यमें उडा देते हैं। मुर्देको गाडते समय लेहलामा गुरुगोविन्दसिंह-सिखोंक दशवें गुरु, तेजबहादुरका पुत्र। घरका कोई आदमी पा कर उसकी आत्माके प्रीतिक इनका जन्म १६६२ ई०को हुआ था। इन्होंने सिख धर्म लिये मन्त्र पाठ पूर्वक पहले थोडीसी मिट्टी गड़हमें डाल में अनेक परिवर्तन और खानमा प्रथाको प्रचलन किया देता है। इसके बाद जो क्रियाएं होती हैं, वे सभी सुनु- था। ये मिखोंमें सिंदीक्षाके प्रवत्त क थे । गुरुमुग्वी वार जातिके ममान हैं। ये लोग गाय सूअर आदिका भाषामे उनका बनाया हुआ ग्रन्थ-साहब है जो मिरवीको । मांस नहीं खाते, किन्तु भैस, मुरगी आदिका खाते हैं। यथेष्ट भक्तिकी चीज समझी जातो है। ये ४८ वर्षको इनमें छत्री वा खस, गुरुङ्गा, मगर और सुनुवार ये चार अवस्थामें १७०८ ई०को गोदावरीके तोर नन्देर नामक जाति-विभाग हैं, जिनमें गुरुङ्ग लोग ही मुख्य गिने जाते स्थान पर दो पठानोंसे मारे गये थे। उक्त स्थान पर हैं। ये लोग दूमरो जातिसे व्याह शादी नहीं करते उनके स्मरणार्थ बना हुआ शिख-मन्दिर आजतक विद्यमान यदि कोई लड़कीको ले कर भाग जाय, तो उम है। उनके मतानुवर्ती मिखगण “गोविन्दशाही" नामसे लड़कीके व्याहमें रुपये देने पड़ते हैं। विवाहके बाद भी मशहूर हैं। मामक चौर मिव देखी। वह कन्या अपने पतिका भोजन नहीं बना मकती। गुरुन ( सं० पु०) गुरु हन्ति हन ठक् । १ गौरमर्ष प, इनमें यदि कोई दमरा किमीकी स्त्रीको भगा लावे, तो उजला मरषो। (वि.)२ गुरुनाशक, गुरुको मारडो- समीम जतात मला जातो . सई लनवाला। भी उम माताका छुपा हा अब जल नहीं खाता । गुरुघ्न ( गुरुङ्गा )-नेपाल देशमें रहनेवाली एक जाति । किरान्तो श्रेणीको कन्याके माथ विवाह करने मे, उससे ये लोग बड़े माहमी और युद्धमें निपुण होते हैं । इनम उत्पन्न हई सन्तान गुरुङ्ग कहाय गो । खम वा मगरा दसा गुरुङ्ग और वारहा गुरुङ्ग ये दो थोक और प्रायः ५८ पिता और गुरुङ्ग माताके गर्भ से उत्पन्न हुई सन्तान खस घर या श्रेणी विभाग हैं। इनमें कन्याओंका विवाह बड़ी कहाती है, किन्तु वास्तवमें देखा जाय तो वह भी उममें होता है। विवाह बंन तोड़नेके लिए इनमें कन्या- गुरुङ्ग हैं। की माताको रुपये देने पड़ते हैं। वह स्वो फिरसे समारोह ये निम्न व गोके विय हैं। इनका चेहरा कुछ कुछ के साथ विवाह कर सकती है, किन्तु विधवाओं के लिए तातार जातिक समान और स्वभाव चञ्चल है। ऐसा नियम नहीं है। विधवाए सिर्फ अपने देवरको गुरुच (हिं स्त्री. ) गुरुची देखो। ही स्वामीरूपसे ग्रहण कर सकती हैं। इम विवाहमें गुरुचखाप (हि. पु.) लकड़ी गोल करनेका बढ़इयोंका कोई संस्कार नहीं होता। एक यन्त्र जोरदाकी तरह होता है। यह जाति किमी ममय बौद्ध धर्मावलम्बी थी, पर गरुचांटो (हि. वि. ) गुरु और चन्द्रमाक्वति, जो गुरु अब सब हिन्द हो गये हैं, पागड के २य पुत्र भीमसेन और चन्द्रमाके योगसे होता है। गुरुचान्द्रीय । होइनके उपास्य देवता हैं। ये लोग गृह मम्बन्धी ज्योतिष अनमार कर्कराशिमं वृहस्पति और चन्द्र- विपत्तियोंमे मुक होने तथा बीमारोमे छुटकारा पानेके माको स्थितिको गुरुचान्द्री योग करते हैं। जिसको लिय पर्वत और नदी आदिको पुष्प और ग्वाद्य पदार्थों- जन्म कुण्डली के लग्न या दशम स्थानमें यह योग पड़ता से उनकी पूजा करते हैं। ब्राह्मण ही इनका पौरोहित्य है, वह भाग्यवान और दीघ जोवो समझा जाता है। करते हैं, किन्तु उनके प्रभावमें गुाबुड़ी घरका कोई उनक अभावम गुषाबुड़ा घरका कोई गुरुजन (सं० पु०) आदरणीय मनुष्य माता, पिता आचार्य भी व्यक्ति जन्म, मृत्य और विवाह आदि संस्कार करा प्रभृति । सकता है। गुरुराटक (म. पु०) गुरुकराटक पृषोदरादिवत मध्य-