पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४१९

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गुरवक-गुरु ४१७ ये स्वगोत्र में विवाह नहीं करते। देखनमें ये कमा। लगा, राजा उपाधि छिन गया और अङ्गारेजी रन्तजाम डियों जैसे लगते हैं। ये मद्य, माम आदि कुछ भी नहीं बन्धा। फिर १८८८ और १८०२ ई०को प्रिवो कौंसिल खात फसलक ममय ये लोग खेतसे अनाज मांग लात । के फैसले पर उबारो माफी बहाल हुई। गुरमराय हैं। इनमें कोई शव और कोई हनुमान के मन्दिर में पोगे नगरको आचादो कोई ४३०४ है। हित्य करते हैं। कोई तो दैवत है और कोई ब्राह्मण गुरमल (हि. पु०) गिलगिलिया, मिरोही, किलहंटी। आदिक विवाहम बाजा बजाने का काम करते हैं। कोई गुरमी (हि. ) गरम' देखो। खेतो-बारी कर अपनी जीविका चलाते हैं। गुरसन ( हि पु० ) मोनागको एक तरहको छनो। माती, सरस्वती. राम श्वर, शिव, विष्णु और रावन्न- गुरहा ( हि पु० ) १ नौका नीचे दोनों मिरों पर जड़ा नाथ इनके उपास्य देवता हैं। विवाह वा अन्यान्य हुवा तखता। २ एक विलम्त लम्ब आकारको एक मामाजिक संस्कार सुनार जातिकै ममान हैं। ये लोग तरहको मकली। यह युक्त प्रान्त, बङ्गाल और आमामको अपनी जातिके मिवा अन्य किमी भी जातिका कुआ नदियोंमें पाई जाती है। हुआ अब नहीं खाते। गुगई (हिं ) ॥राई देव । बलगांवों में विधवाविवाह प्रचलित है। ये दशवें गुगब (हिं पु० ) १ एक तरह की गाड़ी जिम पर तोप दिन मरे हुए व्यक्तिको पिगड़ देते तथा ग्यारहवें दिन थाड लादी जाती है। २ एक मस्त लवाली बड़ो नाव । और बारहवें दिन जातिभोज करते हैं। इनमें प्रायः गुगव (हिं० पु० ) १ चौपायोंको खिलानका चारा । मभी लोग कनाड़ी भाषा बोलते हैं । २ चारा काटनेका हथियार, गड़ामा । गुग्वक ( मं० पु. ) गरुड़शानि । गुग्दि ( फा. पु० ) गदा। गुरवपिम्पो-गुजरात अहमदनगर जिलेके अन्तगत एक गुरिटल (हि पु० ) १ जलाशयोंक निकट रहनेवाला ग्राम । यह करजात नामक स्थानमे ७ मोल दूरी पर किलकिलाको जातिका एक पक्षी, यह मछलो ही खाकर अवस्थित है। यहां हमड़पन्थियांका पिम् श्वर महादं वका रहती है । २ कचनारका पड़ । एक प्राचीन मन्दिर और राम श्वर मन्दिरका खगडहर गुग्यिा ( हिं, बी० ) १ किमी माना या लड़ोके एक देखनमें आता है। पिम्मेश्वर मन्दिरके आमपामक दलाना अंशका दाना, मनका या गांठ । २ कटा हुआ गोल छोटा पर नो गुम्बजे हैं। मन्दिरको लिङ्गम एक गड़हमें टकड़ा । ३ दगे बुननेक करघको बड़ी लकड़ी । ४ हेंगेमें स्थापित है। इस मन्दिरकै प्रवेशद्वारमें और भीतर एक लगी हुई रम्मो। इमका एक मिरा हैंगरे और दमरे जए- पृथक् स्तम्भ पर शिलालेख खुदा हुआ है। के बीच में बधा रहता है। गुरवार (हिं.) गुरुवार देखो। गुरिल्ला (हिं) गोरिया देखा। गुरवी (हि. वि.) अहकारी, घमगडी। गुरु-( म० पु० ) गुणाति उपदिशति धर्म गिरत्यज्ञान गुरमराय-युक्तप्रदेशके झांसी जिले का राज्य। इसका वा ग-कु उच्च । क गरुन । उ"_१।२५ । यहा गीर्य ते म्त यते क्षेत्रफल १५५ वर्ग मोल है। गवर्नमेण्टको २००००, देवगन्धर्वादिभिः ग कु उच्च । १ वरम्पति, देवोंके गुरु मालगुजारी और ५५००) रु० शेष देना पड़ता है । गजा वा प्राचाय । ( माघ २ म०) जमीन्दारोंमे ५४०००० घसून करते हैं। वह महा. २ प्रभाकर नामक एक सुप्रमिच मीमामकका ट्रमरा गष्ट्र ब्राह्मण हैं, १७२७ ई०के लगभग आ करकं बम थे । नाम । प्रभाकर बचपनमें ही शब्दशास्त्रका अध्ययन कर इसी वशके एक व्यक्ति पेयवाके अधीन जामीन और दूमरे विशेष व्य त्पन्न हो गये थे। पीछे उन्हें नि किमी एक प्रान्तक मृदा के बुनक्केमें, मरकारको साहाय्य करने प्रधान मीमांसकके पाम मीमांसादर्शन पढ़ना शुरू किया। पर राजा सादुर" उपाधि का दूसरा पुरस्कार मिला। एक दिन इनके गुरु किसी एक छात्रको उम ममयमें किन्तु १५५ ई०को पूरी मालगुजारी देनेका जो झगड़ा | प्रचलित मीमांसा ग्रन्थ पढ़ा रहे थे । उस ग्रन्थमें “अत्र ततु. VI. Vol. 105