पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३८४

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३८९ गुण साक्षात् व्याप्य पदार्थ का नाम गुण है। सिवा इसके | ओजः, कान्ति और समाधि । वैदर्भी रीतिमें इन १० मुक्तावलीकारने गुणके और भी कई एक लक्षण लिखे गुणोंका रहना निहायत जरूरी है। हैं। वैशेषिक-मत्रप्रणता कणाद सिर्फ १७ हो गुण १२ श्रावृत्ति, दुहराव । ( म ) १३ उत्कर्ष , बडाई । मानते हैं। यथा-रूप, रम, गन्ध, स.श, सख्या , परि १४ विशेषण, तारीफ। माण, पृथकत्व मयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व बुद्धि, १५ पाणिनि भाष्यक मतानुमार द्रव्यको छोड़ करके मुख, दुःख, इच्छा, ६ष और प्रयत्न। (वाषिक १०७) जो पदार्थ द्रव्य आश्रयमें रहता, कभी कभी उसमे छुट किन्तु उपस्कारप्रणता इस सूत्रक चकारमे मात गुण ओर पड.ता, भिन्न जातोय पदार्थ लगता और नित्यानित्य मिला करक चौबीम बना देते हैं। तदनुमार भाषापरि भदसे दो प्रकार ठहरता, वह गुण है । जैसे घट आदि रूप छेद-प्रगतान भी २४ गुणोंका उल्लेख किया है । नया- और प्राकाश प्रभृतिका परिमाण । ( म 11 ४।।१४४ ) यिक भी डमी पक्षको समर्थन करते पाते हैं। अतएव | १६ देश एय कान्नजत्व आदि च दह धर्म । यथा - नैयायिकी और घशेषिकोंक मतमें गुण चौबीम हैं देश, कालन्जता, दृढ़ता, मर्व क श सहिष्णुता, मर्व विज्ञा. रूप, रस, गन्ध, स्पणे, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, मंयोग,| नता, दक्षता, ओजस्विता, मन्त्रगोपन, असंवादिता, शौर्य, विभाग, परत्व अपरत्व, जान, सुख, दुःख, इच्छा, ६ष, भक्तिनता, कृतज्ञता, शरणागतवात्सल्य, अक्रोधनम्वभाव यत्न, गुरुत्व, द्रवत्व, स्नेह, मस्कार, धर्म, अधर्म और और अचञ्चलता। शास्त्रकारीन इन्हें मो गुण जैमा शब्द। इन्हीं सब गुणों के अनुसार द्रव्यका विभाग होता लिखा है। है। नैयायिक कई ट्रव्योंको मूर्त और कितनी ही को १७ भगवहीताके मतमें सब प्राणियांक प्रति दया, अमूर्त जैसा कहते हैं। इनके मतमें आकाश और आत्मा, क्षमा, अनुसूया, शौच, अनायाम, मङ्गल्न, अकृपणता और को छोड. करके बाको सातो चीजें मूत होती हैं। पूर्व- अस्पृहा आठ धर्म । १८ सूद, व्याज । १८. इन्द्रिय । २. कथित चतुर्विंशति गुणोंम रूप, रस, स्पर्श, गन्ध, त्याग । २१ वटी, गोलो। २२ दोषभिन्न धर्म, भन्लाई । परत्व, अपरत्व, द्रवत्व, गुरुत्व, स्रह ओर वेग (मस्कार २३ मुक्तिसाधनविवेक, वैराग्य और सुश्रुषा प्रभृति। २४ विशेष) कई गुण केवल मूर्त अर्थात् आकाश तथा प्रात्मा अङ्ग प्रधानका निर्वाहक । (मिनिमय) २५वस्तुक साहित्य भित्र और द्रश्यो के धर्म हैं। धर्म, अधम, भावना | प्रभृति धर्म । २७ वर्णोत्पत्तिके अनन्तरजात विवार (एक सस्कार ), शब्द, बुद्धि, ज्ञान, सख, दुःख, इच्छा, | आदि बाह्य प्रयत्न ।। हेष और यत्न गुगा अमूत द्रव्यों में होते हैं। २. सुश्रुतोक्त अष्टविध वार्य । उष्ण, शोत, निग्ध, ___ मांख्याचार्य और वेदान्तिकोंक मतमें वह चौवीम रूक्ष, विगद, पिच्छिन्न, मृदु और तीक्षा आठ प्रकारक गुण द्रव्यमे अलग नहीं। इन्होंने धर्म और अधर्म का वीय का नाम गुण है। यह मब द्रव्यमें रहा करते हैं। अभ द मान करके उनको द्रव्यम्वरूप जमा ठहराया है। २८ गणित । ३० भीमसेन । ३१ तन्तु, डोरा । ३२ १० वैयाकरणकि मतानुसार एक आदेश। इईके व्यञ्जन । ३३ गणितविशेष, जबरा 1 । ३४ त्रित्व स्थानमें एकार, उ ऊको जगह ओकार, ऋ ऋका अर और सख्या, तोनको अदद । ३५ कोई योगीमभक्त राजा। सृ लुसे अल् होनका नाम गुण है। यह पद्माक्ष मुनिकुलजथे। उनके पिताका नाम पद्मरामः- ११ पालङ्कारिक मतमें अगीभूत रसके उत्कर्ष हत | रहा। (सहयादिवश । माधुर्य प्रभृति धर्म गुण कहलाते हैं। रसमें गुणको ३६ जनमतमें गुण उतने हैं जो द्रव्य के पूरे हिस्म - स्थिति बहुत ही आवश्यक है। (काव्यप्रकाश ) में और उसकी प्रत्ये, अवस्था में (सवदा) विद्यमान ___ माहित्यदर्पणमें ३ गुण कई हैं--माधुर्य, ओजः रहे । यह सामान्य पौर विजन दो भेदों में विभक्त पौर प्रसाद । किन्तु दण्डीके मतमें वह दश है। मेष, है। जो सर्व द्रव्यों में व्यापको से सामान्य और जो प्रसाद, समता, माधुर्य, उदारता, अर्थ व्यक्ति, साकुमार्य, | सर्व द्रव्यमें व्यापक नये सम.उसे लियो गुण कहते