पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३०७

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गान्धिना-गाबिलगढ़ ३०५ गान्धिनी ( में स्त्री० ) गान्टिनो में रखा। गाफिल (अ.वि.) १ बेसुध, बेखबर। २ असावधान, गान्धी । म स्त्री० ) गध एव स्वार्थ प्रज्ञादित्वात् अगा।| बेपरवाह । गधोऽस्या अम्तीति अच गोरादित्वात् डोष। १ कोट- गाब-एक पेड़का फल । (Diospyro sembryopteris) विशेष । एक कोडा । २ तृणविशेष, एक घाम । यह देखनमें ठीक नारङ्गीके जैसा होता और अपग्में गाफ-भारतवर्ष के प्रमिड अगरेज सेनापति । ये आयर काना काला दाग रहता है । इसके भीतर पाठ लंड-वामी जार्ज गाफक पुत्र थे। १७७८. ई०को इनका आठियां रहती हैं। इसकी गिरी आटायुक्त और स्वाद जन्म हुआ था, और १७८१ ई.में ये अगरेज मैनिक कषाय है। इस फलसे जो निर्याम बाहर होता है, वह विभागमें प्रविष्ट हण | थोडे वर्षोंके पथात ये अगरेजी उदरामय और अजीर्ण रोगमें विशेष उपकारी है । एक मनाके माथ रह कर अफ्रीका तथा अमेरिकाके नाना पाडगट जलमें दो ड्राम परिमाणका निर्याम मिलाकर पिच स्थानों में लड़ । १८०८. ई०को यगेपके पेनिनसुला-युद्धमें कारी द्वारा इस जलको प्रक्षेप करनसे वतप्रदरगेग ये भयानक रूपमे आहत हुए और १८३७ ई०मे भारतके आरोग्य हो जाता है। एकसे पांच ग्रेन मात्राका निर्याम अंगरजी मेनाविभागमें नियुक्त हो कर मन्द्राज पधारे। दिनमें तीन बार खान के लिये दिया जा सकता है। इम- जहां व महिरक मैनिक विभागमें नियुक्त किये गये। की छालक काथमे बहुत दिनके अजीर्ण, उदरामय और १८४०-४१ ई में जब अंगरजी सेना चीनदेश भेजो गयी, स्वाभाविक दुर्वलताम उत्पन्न रोग नष्ट हो जाते हैं। गाफ माहब भी उम दलकै मेनापति हो कर गये । उम युद्धमें उसके फलसे एक प्रकारका रम नि:मृत होता जो नाव अपनी दक्षता दिखना कर उन्होंने जो मो० वी० और B- पंद तथा जालमें मॉझा देनेके काममें आता है। को उपाधि प्राप्त की और १८४३ ई०के ११ अगम्त-गाबलीन ( फा. स्त्री०) एक प्रकारका यन्त्र जिमक हारा को ये भारतवर्ष प्रधान मेनापतिक पद पर नियुक्त हुए। जहाज पर पाल चढ़ाया जाता है। १८४३ ई०क २: दिमम्बरको महाराजपुरमें महाराष्ट्रांको गाबिलगढ़---१ दाक्षिणात्यक बरार प्रान्तका एक पहाडी १८४५ एवं १८४८ ई० में मुदको, फेरोजमा और सोवाउन जिला। यह अक्षा० २१. १० तथा २१ ० ४६” उ. नामक स्थानमें 'शख लोगोंको इन्होंने पूर्ण रूपसे पराजित और देशा० ७६४० एव ७७५३ पू०के बीच एलिच- किया। विलायतके पार्लियामेंट महामभान इनके वीरत्व पुरमे कोई १५ मील उत्तर-पश्चिम पड़ता है। मेलघाटके से सष्ट हो कर इन्हें लार्डको उपाधि दी। इष्ट इण्डिया निकट 'वैराटशृङ्ग' ३८८७ फुट ऊंचा है। इस जिलेके कम्पनी और पार्लियामेंटने दो दो हजार पोण्ड इन्हें पूर्व मल्हार और पश्चिम दुलघाट तथा विङ्गाका गिरि- पेन्सन रूपम दिया । १८४८ ई०को जब चिलियनवाला | सङ्गट है। एतद्भिव और भी कई नयी राहें हैं। पर्वत- लड़ाईमें गाफक अधोन बहुतमी सेना नष्ट हो गई तो | के निम्रद शमें वन्यजात द्रव्य तथा काष्ठ विक्रय के लिये इंगलैंडसे सर चार्ल म नेपियर भारतवर्ष को उन्हें महा- तङ्ग दुर्गम पार्वतीय पथ निकला है। एलिचपुर जिलेके यता देनक लिये भेजे गये, किन्तु उनके पहले ही गाफ मेलघाट उपविभागमें ताप्ती और पूर्णा नदोके मध्यवर्ती माहबन मम्प ग शिखौको १८४८ ई०को २२वीं फरवरी । पर्वतको उच्च भूमि पर गाबिलगढ़ दुग स्था पत हुआ है। को पंजाव अन्तर्गत गुजरात नामक नगरमें परा. पहले यहा 'गौली' या 'गावली' लोग रहते थे। जित कर दिया था। इम लड़ाईमें नेपियर माहबसे मालम होता है, उन्होंने वह किला बनाया था। सम्भवतः तनिक भो सहायता न लेनी पड़ी थो । थोड़े दिनोंक | गावली जातिके नाम पर ही यह स्थान तथा दुर्ग गाविल- बाद वे देश लौट गये। गढ कहलाया है। इस समय भी यहां उता जातीय बह ____माफ साहब पति माहसी पुरुष रहे । जेनेरल हैव- मंख्यक लोगोंका 'नवाम है। कोई कोई कहता कि लाशा कहना है कि विपद आने पर उन्हें एक तरहका १४२० ई०को महमद शाह बहमानोने यह दुर्ग निर्माण आनन्द मिलता था। किया । काल पा करके यह किला निजाम राज्यमें मिल Vol. VI. 77