पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३०४

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३.२ गान्धर्व- गान्धार अवस्थित है । लोकसंख्या लगभग २४० होगी। ग्रामके गान्धार ( म० पु० ) गन्ध एव स्वार्थ अण । १ मिन्दर । पास ही कोयल नामक एक पहाड़ी है। प्रवाद है कि २ देशभेद । एक समय पार्वती और शिवजीमें कुछ विवाद हुआ। गान्धार एक प्राचीन जनपद है। ऋग्वेद (१।१२।६७), इस पर पार्वती कष्ट हो कर इमी पहाड़ पर भाग आई अथववेद ( ५।२२।१४ ) ओर छान्दोग्य उपनिषदमें थों और कोयलका रूप धारण कर रहने लगी। तभीसे (६।१४।१ ) इम जनपदका उल्लेख है । अति प्राचीन उम पहाडका नाम कोयल पड़ा है। कालसे यहां हिन्दू राजा वाम करते थे, इमका विस्तर गान्धर्व (म. ली. ) गन्धर्व स्यं द गन्धर्व-अण । १ गान। प्रमाण पाया जाता है। मिन्ध नदी के पश्रिम तोरसे वर्त- . "ने गामध दिव्ये मषिकपाविशता" (भारत १।११४६) मान अफगानिस्तानका अधिकांश पूर्व ममयमें गान्धार गन्धर्वो देवतास्य अण । २ गन्धर्व देवतात्मक मन्त्र । नाममे प्रसिद्ध रहा । अाजकल कन्दाहार उम प्राचीन (रघु० ५।६७ ) ( पु० ) गन्धर्व एव प्रजादित्वात् अण । गान्धार नामका परिचय दे रहा है। ३ गमव । ४ भारतवर्षीय उपहोपविशेष । वैदिककालमें यह स्थान लोमपूर्णा और पूर्णावयदा "नागहीपस्तथा मोम्यो गान्धर्व स्त थ वारुणः।" (विषण पुराण) मषोंक लिये प्रसिद्ध था। (सक २१२६०७/ ब्रह्मागड पुराण के ५ आठ प्रकारक विवाहों में एक विवाह। अपनी मतमे गान्धार देशमें उत्कष्ट घोड़े मिन्नते हैं । महा- अपनी इच्छामे वर और कन्याके परस्पर मिलनको भारतमें लिखा है कि महाराज धृतराष्ट्रने गान्धातपति गान्धर्व विवाह कहते हैं। यह विवाह क्षत्रियों में धर्मा- सुवलको कन्या गान्धारोमे विवाह किया था। भारत नुगत है। इसमें परम्पर मिलनक बाद अग्निमाक्षिक युद्धके ममय अवलकं पुत्र शनि गान्धारक गजा रहे । मन्त्रपाठ करना कर्तव्य है। कर्णपर्व में लिखा है कि आरट्ट देशक जेमा गान्धार "गानधर्वो चमय व धमाँ चवस्य काम सौ। ( मन ३२८) देशमं भी नितान्त कुमित व्यवहार प्रचलित है। गन्धर्व स्वार्थे अण । ६ अश्व, घोड़ा । ७ मामवे दका (वन५० ४५ १०) भारद शब्दमें विन त तिanu देवो । उपवेदविशेष । स्कन्दपुराणकै प्रभासवण्डके मतम गान्धार देशमें "गान्धर्व भ मिष्ठतया समानता । ( माघ ) क्षोभनादित्य नामके देवता विद्यमान हैं (त्रि०) तस्येदं अण । ८ गन्धर्व मम्बन्धीय । बौड़गणके धर्म शास्त्र में तथा जैनांक अरिष्टनमिपुरा- ट गन्धर्व देशोत्पन्न । ( भारत २०१०) (स्त्री० णान्तगत हरिवशक मतमें गान्धार एक पुण्यस्थान कहा " यौ' गागौच गान्धवा।" (हरिवंश १७८०) गया है । पाथात्य प्राचीन पुराविद ष्ट्रावान इम स्थानको ११ वाक्, वाचन । गान्दारिटीम ( Gundarites ) नामसे तथा हेरोदो - माग्न गान्धयों पथ्यामतम्य ।" (ऋग वेद १०८०1८) तम, हक यम और टलेमिने यहाँक अधिवासियांको ‘पनि गानधयों- वार नाम सत। (मायण) "गान्दारी" (Gandarii or Gandaral) नामसे उल्लख गान्धर्व-युक्तप्रदेशीय जातिभेद। यह लोग गात बजात किया है। ऋग्वं दम भी यहां रहनेवाले गान्धारी और प्रयाग, वाराणमो तथा गाजीपुर जिलों में अल्प कहलाते हैं। चौनपरिव्राजक फाहियन कि-एन तो वेगू' संख्यक पाये जाते हैं । कहते हैं कि पूर्व कालको गान्धर्व और युएनचुयाङ्ग, “कि-एन तो लो" से गाना सामवेदको श्रुतियोंका गान करते थे। राज्यको वर्ग ना कर गये हैं। चौपारव्राजक बने गान्धर्ववेद ( स० पु० ) मङ्गोत सम्बन्धीय वद। लिखा है -गान्धारका, ) रा प्राचाम नाम ये पो-. है। गाम्मद शास्त्र (स लो० ) मङ्गोतशास्त्र। चीनपरिव्राजक युएन्के वोहक वर्ण नसे मालूम पड़ता है गान्धविक ( म० त्रि.) गन्धर्व' कुशलः ठक । सङ्गात- कि चीनपरिमविक्रय हर राज्य पूर्व प श्चममें १००० शास्त्रकुशल, जो अच्छी तरह सङ्गीतशास्त्र जानता हो। लि, एवं उमें बात ८०० लि, तक विस्त त रहा। गान्धर्षिक योगः।" (जनसहिता १८०) उनके वर्णना-सार गान्धार राज्यके पश्चिममें लमधन और