पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३०३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गानिग-गान्धवो इनमें 'सज्जन' और 'कारीकुल' दो श्रेणियां हैं। | गान्दिक ( सं० त्रि. )गन्दिकायां भव: सिन्धादित्वात् अण्ण । विधवाविवाह करनेवाले कारोकुल और उससे अलग गन्दिका नदीजात, गन्दिका नदोमे उत्पन्न । रहनेवाले सज्जन कहलाते हैं। कारोकुल्न गानिगांको गान्दिनी ( मं० स्त्री०) गां धनु ददाति प्रतिदिन गोदा काला होनमे ही मम्भवत: उम नामसे पुकारा जाता | णिनि पृषोदरात् साधुः । १ अक्र रकी माता। ये काशी- है। परन्तु इनके वृद्ध लोग बतलात कि खरहल शब्दके राजको कन्या और वफल्कको भार्या थी । हरिवंशके परिवतमें करिकुल नाम लगाते हैं। कोलहार आर बाघल मतम.. इनका नाम निरुक्ति था। ये प्रति दिन विप्रोको कोट जिन्नामें इनको रहायश ज्यादा है ! वंशवाचक धनुदान करती थी, इम लिये इनका नाम गान्दिनी पड़ कोई नाम नहीं होता, स्थानीय या बोलनके नाम हो गया। ये मातार्क गर्भ में बहुत वर्ष तक रही थी, इस- एकमात्र परिचय मिलता है। यह बलष्ठ, कृष्णवर्ण, में इनके पितान कहा-"पुत्री : तुम शोघहो जन्म लो, नम्व चौड़ और सुन्दर मुग्वाक्कतिवि शष्ट हैं। घरों तुम्हारा मङ्गल हो, इतने दिनों तक तुम कयों उदरमें रह कनाड़ी भाषा बोन्नत, परन्तु कुछ न कुछ मभो मराठी और रहो हो?" उत्तरमें कन्यान कहा-“यदि प्रतिदिम गो- हिन्दी समझते हैं। यह मब निगमिषाशी हैं, मद्यमांम दान कर सकू, तो जन्म लेती है।" पितान दम बातको नहीं कृत। आमन पर बैठ करकं खानमे पहले लिङ्ग खोकार कर उनका मनोरथ पूर्ण किया। इन्ही गान्दिनी- उपामना करते हैं। यह आतिथय, मत्यवादो, शान्त खभाव, के गर्भ और शफल्कक औरसमे अकर नामक एक पुत्र धीर, कर्मठ और चतुर हैं। इनमें बहतमे धनी अपने पैदा हुआ । पोछे इनके गर्भ से उपमहु, मद्गु, मुदर, को लिङ्गायतका समकक्ष जैमा ममझते हैं। बाल अरिमेजय, अविक्षिप, उपक्ष, शत्रन, अग्मिन, धर्म- विवाह और विधवाविवाह प्रचलित है। परन्तु सज्जन दृग, यातधर्मा, गृध्रभाजान्तक, आवाह और प्रतिवाह गानिग विधवाविवाह नहीं करते। ये तरह पुत्र और सुन्दरी नामक एक रूपवती कन्या हुई धारवाडमें गानिगों की ५ थेगियां हैं। वहां इन | थी। कोई कोई गान्धिनी भी पढ़ते हैं। किन्तु निरुक्ति को 'गानिगाड़' कहा जाता है। विभिन्न थगियों के | नाम पर विवेचना करनसे गान्दिनी पाठही उपयुक्त जान गानिग एकत्र बैठ करकं आहारादि करत, परन्तु परस्परमें | पड़ता है। गां भूमि दायति शोधयति दे णिनि पृषो. वैवाहिक दानग्रहणमे विरत रहते हैं। ब्राह्मणों के प्रति | दगत् माधुः। २ गङ्गा । (विकागड• ) इनको विशेष भक्ति है। मोमवार पवित्र दिन माना जाता, गान्दिनीसुत (म० पु. ) गादिन्याः सुतः, ६-तत् । कोई काम काज नहीं चलाता। यदि कोई स्त्री केशों- १ भीष्म । २ कार्तिकय । ३ अक्र गदि । मान्दिनी देखा। को आलुलायित रखक तल लेने आती, सूरवा उत्तर पाती | गान्दी ( म० स्त्री० ) गां ददाति, दा-क-डोप । है। इनमें वाल्यविवाह, बहुविवाह और विधवाविवाह | माता गान्दिनो। चलता है। सभी कनाड़ी बोलते हैं। "म्यमन्त की प्राना गान्दिपको महायशाः। (हरिव ४०.) गानिन् ( मं० त्रि.) गान-इन। १ गतियुक्त । २ गीति- गान्धपिङ्गलेय ( म० पु० स्त्री०) गन्धपिङ्गामाया अपत्यम बुक्त। ३ स्तुतियुक्त। ढक । भादिभाव। पा ४११.१२३। गन्धपिङ्गलका अपत्य, स्मानी ( मं गानिन् खियां डोप । वाक्, बोलो । | गन्धपिङ्गालको मन्तान । मामलम्'त्रि. गच्छीत गम-तुन, वृद्धिश्च । १ गन्ता, गान्धलो ... खान्देश अन्तगत एक छोटा ग्राम। यह जामीनला। २. पथिक, मुसा कि। ३ गाथक, श्लोक- अमलनरमे ६ मोल उत्तरपूर्वमें बमा है । लोकमख्या का गान करनेवाला । तवर्ष प्रायः १०५३ है। पिगडारियों के नायक घोदजी भोसला- गान्त्र ( सं० क्ली० ) गम-ष्टन् ।, पकायो प्रारी। ने यह ग्राम कई बार लूटा था। गान्त्रो ( सं० स्त्री० ) गन्त्रो एव त्रादिक्रमांडीप। वृष- गान्धवा--कम्भालिया महालक अन्तर्गत कल्याणपुर उप- वाघ शकट, बैलकी गाड़ी। विभागका एक ग्राम। यह वरतू नदीके उत्तरी तौर पर ___Vol. VI. 76 प । अक्र रकी