पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२९९

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गाथा २०० मा शिरि गाथाको कविता यथायथ उडत कर दी । ससा पद्मामि पदुमानि इत्यादि करनेका कारण यह था कि उम समयको लोगों पर लिङ्ग, वचन, कारक और क्रियाको बहुतमी अशडियां बहुत आदरणीय रही। गद्यरचनाके पीछे “सत्रेदमुची लिख करके पद्यको उडत किया है। मोक्समूलर और तावपि तानपि बवर माहबने उक्त मित्र महोदयका मत समर्थन किया आसनात् आमनिना है । लासेन बरन फ फर भी उसकी पोषकता करते है। त्रिलोकी तिनोक डाकर म्योर कहते कि पीछेको गाथाको भाषा कोई मम, मत्तः लिखित भाषा थी। बेनफी माहबने राजेन्द्र लालजी तव, वा तुभ्य पोषकता करके लिखा है कि पेशेदार गानेवालोका कुत्र, केन कहिं निम्रय णोक लोग जैमा मान लेन पर उनका मत ठोक ददाम देमि वा ददम समझा जा सकता है। राजेन्द्रलालने उसका खण्डन भव म भोमि कर कहा है- यद्यपि बौद्ध धर्म में जातिभेद कम रहा भविष्यमि भोष्य इत्यादि तथापि यह क मे भम्भव हो सकता कि ब्राह्मण क्षभिय वाक्यादि रचना पर मस्कृत भाषामें जिम स्थानको जातीय रचयिता अपने आपको उच्च थणीस्थ जैसा-न जो रखनका नयम है, गाथाको भाषामें अनुमरण करते ममझते । । वह कविताको नोचजातिरचित होने पर हैं। परन्तु ममाम और मधमें यह नियम नहीं लगता। उद्ध,त करनमे मदा विरत ही रहते । गाथाए जबानी फरासीमो विद्वान् मोशिये बग्नफ माहबका कहना है. बननमे उनको शुद्धि अशुद्धिकी ओर उतना मनोयोग पुसतक पढ़नसे उसका कोई कारण अनुभूत नहीं। नहीं किया गया । अनेक समयको शुद्ध हो वा अशा होता । शाक्यमुनिक पोछे और पालि भाषा बननेमे पहले कोई मग्न कथा चित्तको जितना आकर्षगा करतो अके क्या उसी भाषाको सृष्टि हुई ? लोग मस्कृत न जानते । शुद्ध मंस्थत उच्च अङ्गको भाषा नहीं कर मकती। भारत- थ, परन्तु उममें लिखनको इच्छा होनसे उन्होंन एमा कर | वर्षक भाठ तथा कुलज्ज मूर्ख नहीं होते, परन्तु उनको संसात लिया, मम्भवतः वह अश भारतकं बाहर अर्थात् पश्चिम भाषा ग्राम्य अशुद्धता आदि नाना दोषास लिप्त है। फिर प्रान्त वा काश्मीरमें लिखा जाता होगा। भारत मधा भी सभास्थलमें उनकी वक्त ताका विशेष प्रादर है। जैसी वहां मस्कृतको चर्चा न थो । परन्तु साहबकी गाथाके बारम भो यहो कहा जा सकता है। मेखकी बातमे समझ पड़ता है कि उन्होंने गाथाको भाषा पढ़ने में त्रुटि की। इसमें बड़ा गुणीपन और पण्डिताई है। न्याय संस्कृतक सुपण्डित रहे। श्रोताधोंक मनोरञ्जनको पण्डि- शास्त्र और मनोविज्ञानके जटिल विषय अतिपरिष्क त | तोकी अपेक्षा भाट लोगों को ही पूज्जत ज्यादी थी। और सुललित भाषा आर्या और त्रोटक छन्दोंमें लिपि बौद्धों के महामङ्ग समयको गाथाका बड़ा आदर होता बद्ध हुए हैं। क से कहगे-संस्कृत भाषा पर जिनका रहा । गद्यक मधा उसके प्रवेश लाभका यहो कारण उतना अधिकार रहा, उसे ही लिखने में भूल गये। था। अच्छी तरह अनुमित होता कि बौद्धोंके प्रथम महा- पञ्जाब आदि देशोंमें रचित हुअा होनेसे सस्कृत व्याक महमें शुद्ध गाथा ही कही गयी। फिर पण्डित लोगों में रणके अनुसार गद्यांश विशुद्ध और पद्यांश प्रशुद्ध कैसे बुद्धदेवका विवरण विशुद्ध संस्कृत भाषामें लिखना निकला। राजा राजेन्द्रलाल मित्रने बतलाया है कि अपना कर्तव्य ममझ करके उमको पोषकताके लिये शाक्यमुनिके समय या अव्यवहित पीछे भाट लोग उसको गाथाको उद्धत किया। माते घूमते थे । ललितविस्तर प्रति ग्रन्योंके रचयिता गाथाके पद २ भागामें विभक्त जैसे ठहराये जा सकती पौने गयाग लिख करके उसकी पोषकता करनेके पीछे है। इसके कई पदीका प्राति अंश संसात; केव Vol. VI. 75