पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२९१

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गाड़ा-माढापुरी २८ उन सभी राज्योंकी शस्य के बदले गुड़, नमक और शक्कर- यह शेष नाम ही युक्तिसंगत जैसा समझ पड़ता है। की रफ तनी होती है। महाराष्ट्र अभ्य दयके समय गाढापुगे होप अक्षा १८ ५७ उ० और देशा० ७३ किमो गोड़ राजपूतने गादवाड़े में एक छोटा किला पू०में बम्बई शहरसे ६ मोल दूर भारतोपकूल के बाहर बमाया था। उक्त दुर्ग का भग्नावशेष अभी विद्यमान अवस्थित है । यह थाना जिलेके पनवेल उप-विभाग, है। १८७४१०तक उसमें सरकारी दफ तर लगता रहा, लगता है । इसका परिधि चारमे माढ़े ४ मोलके बोच उसके बाद किसी दूसरी जगहको उठ गया। मराठौक है। दो लम्बो पर्वत श्रेणियां यहां विद्यमान है। उनके समय यत्र नगर अपने जिनेको राजधानो थो। इसकी मधामें मोगा उपत्यका है। रम होपका परिमाण आबादी लगभग ८१८८ है। १८६७ ई०को यहां म्यु नि भाटेके ममय छह और जुबारके चढ़त ४ वर्ग मौस सपालिटो बनायो गयो। यहास घी और अनाज बाहर रहता है। बहुत जाता है। पोत गोज जब दम दीपक दक्षिगा भागर्म उपस्थित गाड़ा -- युक्त प्रदेश ५ कृषक जातिविशेष । इनमें कुछ हये, अपने प्रथम अवतरगाके स्थान पर ही पत्थरके हाथी मुसलमान भी है। कहते हैं कि वास्तविक गाड़े चन्द्र को एक बड़ो मूर्ति देखो। उसीमे इम होपका नाम बंशीय क्षत्रिय हैं। इनका आदिनिवाम दिल्ली के पास उन्होंने हस्तिद्वीप ( Elephanta ) रख दिया है। हस्ती पास था। मूर्ति १३ फुट २ रञ्च लम्बी और ७ फुट ४ इश्च ऊँची गाड़ी ( हि • स्रो०) एक जगहसे दूसरी जगह पर माल थो। १८१४ ई०को मत्था और फिर चारो पर टूट असबाब या मनुथो को पहचानका यत्न । यान, शकट, जानसे १८६४ १०को उमको उठा करके बम्बई मगरके गाड़ी कई प्रकारको होती है। यथा--रथ, बदली रका, विकोरिया उद्यानमें रखा गया । सिवा इसके उक्त दोनों ताँगा, वग घो, जोड़ो, फिटन, टमटम आदि । पर्वतमालाये जहां मिल-ज सो गयो हैं, घोड़े को एक गाडीखाना ( जि. पु० ) गाड़ियोंक रखनका स्थान। मूर्ति रही। मि० प्रोविङ्गटन १६८८. ई. में इसको देख गाडीवान ( म० पु.) जो गाड़ी चलाता है, कोचवान। लिख गये हैं कि वह बधुत ही स्वाभाविक मादृश्यविशिष्ट गाढ़ (सं० क्लो.) गाह-त । १ अतिशय, दृढ़रूप । थो, थोड़ी दूरसे सब लोग उसको जीवित प्राणी जमा 'भातु परयो गाढ़ मध।" ( गमा० २ ३११) ममझते थे । अव इमका कार्ड चिक्र भी नहीं मिलता। (त्रि.) २ घना, गाढ़ा। ३ गभीर, गहरा, अथार १७१२ ई०को कपतान पायकन यह घोटकमूर्ति देखो ४ विकट, कठिन, दुरूह, दुर्गम । ५ मेवित । थी, परन्तु तत्परवर्ती दर्शकोंके लिखित विवरणमें इमका "नबिगाढा सममा प्राय। ( १००१) कोई उल्लेख नहीं। गाढ़लवण ( म० क्ली० ) सम्बर नमक । होपर्क उत्तर पूर्व और पूर्व भागको छोड़ करके गाढ़मुष्टि (मं• पु०) गाढ़ा दृढ़ा मुष्टिरत्र १ खग। (त्रि. दूमर सब पहाड़ लताओं और झाड़ियों से भरे है । पहाड़ २ कपण, कंजम। के बीचको जमोनमें पाम, इमलो और करो दा खूब गाढ़ा ( म० त्रि. ) जो जलके महान हो। होता है । पर्वतके ऊपर तालहक्ष और नीचे धान्यक्षेत्र गाढ़ापुरी-बम्ब बन्दरके पामका एक चुद्र होप । अंगरेज है। समुद्र का किनारा बालू और कीचड़मे भरा हुआ इसको Elephanta I-land अर्थात् हस्तिहीप कहते हैं। है । उस पर कोई पेड़ पत्ता नहीं। जमोन्का रंग प्राचीन दर्शकोंमें कोई कोई गाढ़ापुरीको 'गाड़ीपुरी', काला है। इसमें प्रामक बाग लगे हुए हैं। 'गालीपौरी' और 'घारापुरी' भी लिख गया है। डा. ई. श्य शताब्दीसे दशवीं तक सम्भवतः इस दीपमें विलसनने 'धारापुरोका' अर्थ पुण्यदायक पर्वत लगाया एक समृद्धिमम्पन्न नगर रहा, जो देवालयादिके लिये था । किन्तु डा. टिव न्स बसम्लाते कि उसका नाम प्रसिद्ध था। कई एक पुरातत्वचित् बतलाते कि उसी 'गाढ़ापुरी' अर्थात् गुहामन्दिरपूर्ण नगरी ठहराते हैं। स्थान पर मौर्य राजाभोंको 'चरी' गरी रही । १५७८ Vol. VI. 73