पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२७७

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गायवंश २०५ मोर ५८७ ई.जयम कोत्ति वर्मासे पराम्त हुये थे। किया था। दहेजमें उन्हें पुलीगड जिला मिला था। लेकिन एहोल शिन्ना पिसे ज्ञात होता है कि इ०८ ई. कुछ कालके बाद राष्ट्रकूट के राजा रतीय क्शाको अन- में ये हितीय पुनिक गोसे पराजित हुए थे। विनया- मतिमे वृतगर्न चोलवंशक राजा राजादित्यका प्राणनाश दित्यक हरिहरन्तम्भमे माल म पड़ता है ये पाश्चमीय । किया, क्योंकि राजादित्य उस समय टतोय कृष्णका चालुक्य राजा ना के प-पगगत भृत्य थ। इमो चालुक्य कट्टर शत्रु हो गया था। इस पुरस्कारमें कृष्णने बूतगको वंशम प्रथम कोत्त वर्मा पुनिकेशी तथा विनयादित्य चार और जिले प्रदान किये। इस ममय बूतगने अपनी राजा हुए थे। परन्तु यह निशय है कि प्राचीन समय उपाधि 'महाराजाधिराज' को रकवी । बूतगको अमोघवर्ष- भारत के पश्चिम माग गङ्गव के राजा राजत्व करत को लड़कोमे एक पुत्र हुआ जिसका नाम रगङ्ग रखा थे। उनमम प्रधान प्रधान राजाक नाम ओर राजत्वकाल गया । व तगको 'कन्नकमी' दूमरी स्त्रोमें भी मत्यवाक्य इम तरह --हरि वर्मा २.४८ ईम', पिणुगोत्र ३५१० कांगुनोवम नामक एक पुत्र था। गङ्गवंगमें ये बहुत प्रभाव में, अविनत बांगना ४५४मे ४६६ ई०तक, दुर्खिनोत गालो राजा हो गये थे। ये ८६४ ई० में राजगद्दो पर कोगनो में ७७: तक। आरूढ़ हुए थे। इन्हें परमश्वर और महाराजाधिराजको महिसक तनकाड़, मिवार और शिवरपन शिला-! उपाधि मिली थी। लिपियाम जान पड़ता ह कि गगवश प्रथम राजा श्री. इनक ममयमें गङ्गगजा बहुत दूर तक फैल गया पुरुष पृथ्वोकजागा वह। लेकिन ये किम कालमें गजा था। दूम ममय चालुक्य राजाका भी प्रताप बहुत चद हुए थ, मका युग पुरा हाल पता नहीं लगता है। बढ़ गया था। इन्हों ने राष्ट्रकूट और गगवंशके राजा मापुरुषर्क वाट इम में मवमार नामक एक और पर आक्रमण किया। इस बार इन्होंने मफलता प्राप्त राजा हो गये हैं। इन्हीं दोनों राजाओंके ममयमे गग- नहीं को, फिर दूसरी बार ८७३ ईमें चतुर्थ इन्द्र कथा- वंशका विवरण प्रारम्भ हुअा है। इन दोनों में से एक के पोतन उन पर धावा किया और गष्ट्रकटके राजा हितीय कक्कको पगजय किया। गगवंशके राजा सत्य- गष्ट्रकूटक गजा ध्र वमे पराजित हो कर ७८३ ईमें वन्दी वाक्यवर्मन चालुक्य राजा के माथ घसमान युद्ध कर उन्हें हुए थे। ध्र वक मर जाने पर भी उनके लड़के टतोय हरा दिया पार राष्ट्रकूटके राजार्क बहुतमे राजा भाग गोविन्दन उन्ह हुन दिनां तक कारागारहीमें रखा था। अधिकार कर स्वतन्त्र हो गये। सत्यवाक्यवर्म को चामुंगड- जब ये छोड़ दिये गये तब पूर्वी चालुक्य राजा नरेन्द्रमृग- गय नामक एक प्रधान मंत्री थे जिन्हों ने 'चामुगडराय- राजने गगवगर्क राजाओंके माथ बारह वर्ष घनघोर पुराण' निवा है और जिनकी प्रार्थनामे जैमिहांतका लडाई को, अन्तमें चालुक्य राजाको जीत हुई। महि प्रसिद्ध ग्रन्थ गोम्मटमार श्रीमदाचार्य नेमीचन्द्र सिद्धांत सुरकी हगलो शिन्नान्निपिसे जाना जाता है कि सत्य- चक्रवर्तीन लिया। वाक्य कांगनीवम गंगवंशमें एक और राजा हो गया महिसरक वेलर शिलालेखमे पता लगता है कि गंग- धा। इरिया नामवं एक कोई प्रमिड राजा उस समयमें वंशक अन्तिम राजा गगापरमर्दी थ। ये १०२२ ई में राजत्व करते थे । नत्यवाक्यमे इरियाको बहुत काल राजत्व करते रहें । इनके ममयमें चोन्न राजनि पुन: पाक तक लड़ना पड़ा था। इरियाक बाद उनका लड़का मण कर गगराजाको इम बार पूर्णरूपम पराजित किया राचमन उत्तराधिकारी हा। महिसुरके आतकुर-शिला और उनके बहुतमे देश अपने राजामें मिला लिये। लेखसे पता लगता है कि८४० ई०म मत्यवाक्य को गु- क्रमश: इस वंशको आभा तथा स्वाधीनता सदाकै लिये नीवर्मान राचमन पर चढ़ाई की और उसे मार डाला था। जाती रही। धारवार जलेका हवाल शिलालिपिसे ज्ञात होता बलगांवक अन्तर्गत कलभावि ग्रामको खोदित लिपि है । तग नामक एक ओर राजा गङ्गवशमें हो गये थे। देख करके प्रत्नतत्वविद् फिटमाहब अनुमान करते कि इन्होंने राष्ट्रकूटके राजा अमोघवर्ष की लड़कोमे विवाह वह खष्टीय ११वीं शताब्दीकी लिखी हुई है । सुतरां