पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२६९

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गांवा नमें कोई ईमेर वीज तैयार होता है। उमको एक फल जितना ही पकता, उतना ही अरुणवर्ण निकलता धीघे जमोनमें मजमे लगा सकते हैं। खेतमें रोपित होने हैं। उम ममय वह खाली या खोखला कहलाता है। के ४ दिन पीछे ही वोजसे अङ्गुर फटता है। ६० दिन पुजातोय गांजके फल को 'कली' कहते हैं। माह बीतते पीके वही हरी पत्ती जैमा लगने लगता है। या फागुन नगर्त लगते गांजका पेड़ कटता है। जिम जमीनमें मोथा होता, अच्छा वीज निकलता गांजा दो प्रकारका होता है-चपटा और गोल । चपटा की कि ममय वृष्टि पढ़नसे वीज बिगड़ जाता गांजा तैयार करनेको एक घासदार जगह माफ को जाती है। क्षेत्र ग्वले स्थानमें रहना आवश्यक है। उसमें है। सवेरे ८ वजेके ममय गांजको जटा काट लासे घाम ऊगर्नसे उपकार हो है, अपकार कभी नहीं। प्रत्यक अथात् प्रातःकालकी अोससे उमको बनाता जो क्षेत्रमें ४।५ वत्सर वीज प्रस्तुत हो सकता है। वक्ष खुब पूर्णता पात, पहले ला करके घास पर । दो रोपणक्षेत्र में जहां जहां मट्टी ऊचो उठात, अङ्क र बजे तक सुखाये जाते है । फिर फलको और एक लगाते हैं। रोपणक ३.४ मशाहप के अाश्विन अन्त हाथसे कुछ ज्यादा छोड़ करके उसका बाकी हिम्मा काट वा कार्तिक आटिभ पादेको जड को छोड़ करके ऊची डालते हैं। उमाके साथ जिन डालियांमें फल नहीं मटीका दमग अशा निकाल डाला जाता है। फिर पोदे पात, कांटतं चन्ने जाते हैं। फिर उमको माग रात योम की जरमें खली या खलोमें गोचर मिन्ता करके दिया। में रखते हैं। कहीं कहीं जाड को ज्याफतहो जाने पर करते हैं। इसके बाद मट्टी उच्च की जाती है। अग्रहा- कटाई होतो है। दूम दिनको २।३ बजे उनका पडिया यण माम प्रारम्भ में पाक नोवेकी दो एक डालियां बांधी जाती हैं। मोटाईक अनुमार एक एक पडियामें काट या तोड डालन हैं। रामा करनमे वृक्षका तंज कभी तीन चार, कभी ८० कलियां रहती हैं। इस ऊपर चढ़ता है। फिर क्यारीको मध्य स्थित निग्न प्रकार बंध जान पर एक चटाई डाल करके उम पर वही भूमि हलमे जोतनी पड़ती है। पुझिया परेको सूरतमें अर्थात् कलियांका मिग एक दूमरे- अग्रहायण मानको १११२ दिन पोछे या उममे पहले के मामने रख करके जमा देते हैं। एक ऊपर दूसरी हो गांजका परोक्षक पाता, जो पोतदार कहलाता - रख दो जाती है। फिर ४५ आदमी एक मरका उमको दो तीन बार परीक्षा न्नेनी पड़ती है। वह सूर्या कन्धा पकड़ करके पैरोंमे उनको कुचला करते हैं। वार्य दयमे पहले फलोको जांच करता है। जो फल स्त्री पैरमे ष्टांजको दबात ओर दाहनेसे चोट चन्नात हैं । थोड़ी जातीय समझ पड़त, उनकै वृन्त वह तोड़ देता है। पौडे दर एमा करने पर गांजा चपटा पड़ जाता है। फिर कषक जा करके उनको उखाड़ डालता है। इमी प्रकार एक दमरो पुडिया ला उम पर पार रख दंत और वैसे से अगहन में तीन और पृषमें एक मरतबा परीक्षा हुआ हो कुचल लेते हैं। उम पर चटाई ढांक करकं १३ करती है। इसका नाम 'बकाई' है। फिर भी मादा आदमो बैठत हैं। इसमे कन्नो अपने लग हुए दूध जैसे पदा बिलकुल नष्ट नहीं होता, कितने ही पड़ बच प्रति निर्या में लिपट जातो और पत्र तथा वीजको विच्छि- हैं। बाई हो जाने पर किमान अपने आप एक बादर बता दखाती है। फिर कोई ट्रमरी चटाई बिका दोनों पौदे देवन अति ओर जहां जहां पोले पत्त पात, तोड़ हाथमें एक एक पुड़िया ने परम्पर आघात किया करते जाते हैं। फिर धन वृक्षों में कुछ उग्वाड़ करके खाली हैं। इमम चीजों और पत्तियों के भाड़ जान पर जटा जगह पर लगा देते हैं। रोपण कार्य समाप्त होने पर ओंको अन्नग किसी चटाईम गोल गोल जमा कर रख भूमिकी अवस्था देख एक बार मार्गशीर्ष और एक बार छोड़त हैं । इससे जो जटाए पहले ऊपर रहीं, नांचे आ पौष में दो बार मिञ्चन करना पड़ता है। फिर पौषमाम पड़ती हैं । म तरतोबक बाद मड़ाई भार कुटाई होती के शेष वा मावमामक प्रारम्भको पेड़में फ ल आने लगते , है। दो तोन वमा करक जटाओं को अलग रख देते हैं। है। माघमामकै बोचा बोच वह भरपूर हो जाते हैं। फिर वोजों और पत्तियों को प्रचलिमें ले कषक