पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२५१

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गलगण्ड-गलगलि २४९ रिक यन्त्र सकल ( फेंफड़ा, वासनाली, यक्वत्, प्लीहा दिया जाता है। होमिओपाथिक मतमें दिनमें और रात- और वृक्तक) आक्रान्त होता है। अतिमामान्य कारणसे को पहले ३ दिन तक एक एक बूंद म्पनजिया और मात पहले गले में या मत्थ पर क्षत हो करके फिर गर्दनको दिन पीछे फिर एक एक बूंद वहो सेवन कराना चाहिये। गाउँ फल उठती हैं। इममे फायदा न पहुंचने पर सवेरे प्रति दिन १ बूंद पूर्वकालको युरोपमें गण्डमाला रोगको चिकित्सा प्रायोडाइन सात दिन व्यवहार करके फिर मात दिन निराले उपायसे होती थी । बाईबिल पढ़नेसे समझ पड़ता तक खाल्ली जाने देते हैं। इसमे भी लाभ न होने पर है कि याजक लोग सिर्फ छ करके ही उस रोगको । रातको एक बंद काला हाइड्डि देना चाहिये । गलगगह- आरोग्य करते थे । प्लिनि, टासीटाम, मिउटोनिया आदिक, में चर्णखगड निकलनसे इस गेगको असाध्य समझना ग्रन्थों में भी मपर्श हाग गगडमाला आरोग्यको बात । ... लिखी है । २०० वर्ष पहलेक स्कन्दनाभ तथा जमन गलगनाथ---बम्बई प्रदेश अन्तर्गत धाग्वार जिलेका एक भाषा दसरे बहतम ग्रन्थों में राजाम इस रागर्क ग्राम। यह करजगिमे १० कोम उत्तरपूर्व तुगभद्रा नदो- अक्क हो जानका कथा दृष्ट होती है। उसीमे चलतो के वामपाव पर अवस्थित है। यहां गर्ग श्वर और हनु- अंगरेजोमें इमको गजरोग ( King'- evil ) कहते हैं। मानक मन्दिर है। ग्रामकै उत्तर बदी और तुगभद्रा शिशुको गगडमाला होने पर यदि माता वा पिताका नदो मंगमस्थान पर गर्गेश्वरदेवका मन्दिर अवस्थित है रोग हो तो धात्री रख करके उसका स्तन्यपान कराना मन्दिर लगाव ग्रेणाइट पत्थरमे निर्मित है। इसको। चाहिये । बच्च के लिये १५।२० बूद काडलिवर प्रायन्न लम्बाई ५३ हाथ और चोड़ाई प्रायः २० हाथकी है और इमको छत चार बड़े बड़े खंभोंक ऊपर रक्षित है। थोड़ामा आयोडाइन लगाया जा मकता है और उसमे दीवार, नाना प्रकार की मूर्तियां खुदी हुई हैं। विशेष फल भी मिलता है। किन्तु उमक लगाने बाद गन्नगल (हिं० पु.) एक प्रकारका पक्षो। यह मना यदि मत्रमें मागडशुक्ल देख पड़, तो फिर व्यवहार जातिका है। यह सर्वो लिये काले रंगका होता है। करना न चाहिये । औषध खानमें आयोडाइड अव इमर्क गर्दन पर दोनों ओर लालधारियां होती हैं और पोटासियम, १ ग्रेन मिरप फेरी आयोडाइड, १० बूद, पूछ पूर्व त वर्गको होती है, गलगलिया। २ एक प्रकार- सिरप जिञ्जब रिम २० बूद और अनमूल या मानसा का बहुत बड़ा नीबू। पकन पर इमका रङ्ग वसन्ती रंग- का काढ़ा २ ड्राम मिला करके ४मे ६ ड्राम तकको सा हो जाता है इसका स्वाद बहुत अम्ल होता है। मात्रामें दिनमें २।३ बार ग्रहण करना चाहिये । हम रोग- ३ चोंकी वत्तीका एक खड। यह जहाजमें समुद्रको के रोगोको सर्वदा माफ सुथरा रहना, विशुद्ध वायु गहराई नापनवाले पौजारमें सीमेको एक नलीसे लगा सेवन करना और हलका तथा बनकर पथ्य खाना एकांत रहता है। ४ एक प्रकारका ममाला जो अलमो और कर्तव्य है। चनक तेलको मिलाकर बनाया जाता है। यह किसी गलग्रन्थिका एक वा उभय सूक्ष्मभाग ( lobes ) | पदार्थ का जोड़ने वा छेद बन्द करनके काममें आता है। फल करके स्थायी हो जानेसे गलगण्डरोग कहलाता है। ! गलगला (हिं. वि. ) आद्र, भोंगा हुआ। उनके मतमें पहाड़ी और सर्द जगहमें यह रोग अधिक गलगलाना (हि.क्रि. ) गोला होना । तर हाना, भीगना। उठता है। पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में यह रोग कुछ अधिक गलगलि-बम्बई प्रदेशक वीजापुर जिलान्तर्गत एक गगड देख पड़ता है। रोतिके अनुसार ऋतु न होनमे अनक | ग्राम । यह कलाङ्गिसे ६ कास उत्तर कृष्णानदो के तौर पर समय सियोको यह रोग लग जाया करता है। डाकर अवस्थित है। पहले यह प्राचीम दण्डकारण्यके अन्तर्गत पहले उस पर आयोडाइन लगानका कहते हैं। उमसे : था। गालव ऋषि इम स्थान पर रहते थे। इसलिये यह कोई फल न मिलने पर अत्रचिकित्सा करने का परामर्श गालवक्षत्रसे मशहूर है । गलगलि ग्रामसे पडकीम दक्षिण 'Vol. VI. 63