पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२२७

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गर्ग-विराब-गर्गादि "चतुःषयामददत कला जाम' ममावभुतम् । "मबर-गगरक-चन्द्रक-महामोन-रात्रोव प्रभातयः सद्रः।" मरस्वत्यासटे मष्टो मनोयन पायव ॥ (भारत १२।१८।३८) (सत्र त, सवस्थान ...) "वहन गर्गादौमा मन ब" ( इता २११५) | गर्गरी (सं० स्त्रो०) गर्ग जाती ङीष् । १ दधिमन्यनपात्र, इन्होंने अश्वायुर्व द, केरलप्रश्न, केरलपाशावलो, गर वह बर्तन जिसमें दही मथा जाता है। माठ, दहड़ी। मंहिता नामक ज्योतिष और गर्ग-मनोरमा नामक उसकी २ मन्यनो। ३ गगरी, कलसी। टोका, प्रशमनोरमा, प्रविद्या, षोड़शप्रश्न, ज्योतिगग, मेषादी गवा देया वारिपूर्ण ग तिथि त्व) पनीमरट-विधान, कात्यायनथौतमत्रभाष्या तथा गगगग वंशी- राजपूत जातको एक श्रगी। ये पाजमगढ़ पद्धति प्रभृति ग्रन्थ प्रणयन किये हैं। ( पु० स्त्री० ) गग और गोरखपुरमें रहते हैं । अपत्ये घञ् । २ गगक गोत्रापत्य, गर्ग के वंशज । “गाः | गर्गशिरम् ( सं० पु० ) दैत्यविशेष, एक राक्षसका नाम । गत भोलानाम्। ( महामाय) ३ म निविशेष। ये कुणिगर्ग गर्गशिरा यश्च ।' (करिव ५) नाममे ख्यात है। (1) किमो मतसे एन्हांनै गर्ग-गग मंहिता (मं० को०) गगंण लता मंहिता. मध्यपटलो.। स्मृति रचना को है। माधवाचार्य, हेमाद्रि, कमन्ना- कानमानार्थ गर्ग कृत संहिता, ज्योतिषग्रन्थविशेष, गगका बनाया हुआ एक ज्योतिष ग्रन्थ इसमे कालका ज्ञान कर प्रभृति स्मातान गर्ग स्मृति उद्धृत की है। ४ ब्रह्माकं | होता है। एक मानमपुत्रका नाम। इनकी मृष्टि गया यजक लिये हुई थी। गर्ग स्रोतम् (मं० लो०) गर्ग'ण आथितमुषित वा स्रोतः । कोशिकागलो।" (वायुपुगप में ग माहात्मा २१०) १ तीर्थ विशेष । गर्ग मुनिक नामानुमार इमका माम- ५ मंगोतमें एक ताल । इममें चार द्रत ओर अन्न में करण हुआ है। यह तीर्थ मरस्वतोतीथैमें अवस्थित एक खाली या विराम होता है। (सौतदामोदर ) ६ बैल, । है। (भारत १८.) गाट ( म०प०) गर्ग इति शब्देन पटति पट-पच शक- मोड़ । ७ एक कोड़ा जो पृथ्वी में घुमा रहता है, गगोरो। ८थिक, बिच्छ । ८ किञ्च लक, केंचुआ। १० एक जैन- वादित्वात् अलोपः । मत्स्यविशेष, एक प्रकारको मकुली। इसका दूसरा नाम योगनाविक है। ग्रन्थकार । इन्होंने मागधी भाषामें कम्मविपाक प्रणयन गर्गादि ( म० पु० ) पाणिनीय गणविशेष । गर्गादि गय किया है। ११ एक पर्वतका नाम । १२ नन्दके एक पुरो- यथा-वत्स, संस्कृति, अज, व्याघ्रपाद, विदभृत, प्राचोन- हितका नाम । १३ एक प्राचीन कवि। योग, भगस्ति, पुलम्ति, चमम, रेभ, अग्निवेश, शश, घट, गर्ग त्रिरात्र ( मं० पु० ) कात्यायनयौतसूत्रक अनुसार एक प्रकारका योग जो तीन दिनों में होता है। शक, एकट धम, अवट, मनम, धनञ्जय, वृक्ष, विश्वावस, (कान्यायनश्चीतम व ११ ) जरमाया, लोषित, मंशित, वभ, मण्ड, गण्ड, या, गर्गभूमि ( मं० पु. ) एक राजकुमार। लिगु, ग्राहलु, मन्तु, मुलु, अलिगु, जिगीषु, मनु, सन्तु, गर्गर (मं० पु.) गर्ग इति शब्दं राति रा-क। १ मनायो, सूनु, कथक, कन्यक ऋक्ष, सनु, तरुक्ष, सलुन, मत्माविशेष, एक मछम्लो। इसका गुण-मधुर, सिग्ध तगड, वसगड़, कपि, कत, कुरुकत, अनड़ह, कगव, शकल, और पित्तनाशक है। (गजवल्लभ ) उसके पृष्ठ पर बह त गोकक्ष, अगस्ता, कुण्डिनो, यज्ञवल्क, पर्ण वल्क, अभय- रेखायें ओर शल्क रहती हैं । ( गजभिषय) यह पित्तकर, जात, विरोहित, सषगण, बहमन, शण्डिल, चणक, वात, कफनाशक तथा कोपकर है। (भावप्रकाश) २ भवर । चुलक, मुगल, मूमल, जमदग्नि, पराशर, जातू कर्ण, ३ एक प्रकारका प्राचीन बाजा । यह वैदिक काल में | महित, मंत्रित, अश्मरथ, शर्कराक्ष, पूतिमाष, स्य रा, बजाया जाता था । गागर । भररक, एलाक, पिङ्गल, कृष्ण, गोलन्द, उलुक, तितिक्ष, गर्गरक ( मं० पु०) गर्गर स्वार्थ कन् । समुद्रजात गर्गर भिषज, भिषाज, भडित, भगिहत, दल्भ, चेकित, चिकि- मत्स्य, समुद्रमें होनेवालो गर्गर मछली ( Pimelodus | | मित, देवल, इन्ट्रह, एकलू, पिप्पलू, वहदग्नि, मुग्लोहिन, gagora). सुलाभिन्, उक्थ और कुटीगु । Vol. VI. 57