पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२११

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· गयाशिखर-गवास-उद-दीन .२.४ तलक देती Resid:कुल चन्दनादिमे पूजा करने के बाद | बड़ी भारत मिवतके माथ कहा-जहाँपनाह ! मैं ब्राह्मणीको दक्षिणा देकर बिदा करत आपसे कुछ कहना चाहती है, परन्तु हिम्मत नहीं _ विवाह के बाद कन्या श्वशुरको गोद पर बैठाई जाती पड़ती; कह से आपका दिल दुखेगा और गुम्सा बढ़ेगा। और उसके मोमन्तमें सिन्दू र दिया जाता है। तत्पश्चात् | सुलतान उत्स क हो करके कहने लगे-कहो, मैं बुरा वाक प्रात्मीयगणको नवीन वस्त्रादि दिये जाते हैं। नहीं मानेगा, तुम अपनी बात कह डालो। इस पर चार दिन बाट "चौथारि" या 'चतुर्थी होती है और बेगम बोल उठी--पहले आप कस्म खायें, किमोसे वह नवदम्पती स्वजन महित रुक्मिणीकुण्डके तौर पर उप बात न बतायेगे । सुलतानन वही किया था फिर बेगम स्थित होते हैं। यहां दिनके ममय उन लोगों के सामने कहने लगो'-'इम वक्त मुझे बडो आफत है। आपने एक छोटा नाटिकाभिनय खेला जाता है। इस समय जब कहनको हका दिया है, मेरा जी न चाहते भो मम कन्या प्रामीय व्यक्ति कन्याक जपर थोड़ा चावल कहना ही पड़ेगा । बात यह है कि गयाम उद-दीन और कोड़ी रखते और कन्या इमको धोरे धीर फेकतो मेरे लड़कीका बर्बाद करने के लिये माजिश कर रहे हैं। जाती एवं कृत्रिम क्रोध देखाती है। इस पर वर | सिर्फ यही नहीं-आपको भी मार डालनकी बात वर उमका सान्त्वना देता है । इस प्रकारक अभिनयके कहा करते हैं। मेरी तरह आपकी भलाई कोई नहीं ममाप्त होने पर व नृत्यगीत और भोजनादि शष करके चाहता । मेरा ममझमें उन्हें या तो कैदखानमें गल मन्धमाक ममय घर लौट आतो हैं। दीजिये या उनकी दोनों आंखे निकलवा ऐसी माजिश यात्रियांमे प्रचुर धन उपाजन करके ये सम्पत्तिशाली | करनेमे नाकाम बनाइये । मिकन्दर शाह इस बात पर हो गय हैं। इनमें मामान्य मनुष्यको भी पटकी चिन्ता एक बारगो हो बिगड़ कर बोले थे-'बदमाश : परम - करनी नहीं पड़ती है। धनक गौरवसे य अब स्वयं श्वरने तुम इतने लड़के बाले दिये हैं, जो अब पादमी यात्रियांका पौरोहित्य नहीं करते लेकिन अधीनस्थ बन गये हैं। इसके लिये परमेश्वरका शुक्रया अदा न दमरे ब्राह्मण को इस काममें नियुक्त करते हैं। जब कर तन क्या अपनी मोलके एकलौते बेटेको बर्बाद धात्रियों की तीथ यात्रा ममाम हो जाती तो यं उन्हीम करने पर कमर कमो है ! दूर हो, में अब तेरी बात अपना लभ्य यथष्ट रूपयो वसूल करते हैं। गया देखो। सुमना नहीं चाहता।' मुलतानने यह बातें गयाम-उद- गया शिखर (मं० क्लो. ) गयाशिम देखो। दोनको नहीं बतलायो । परन्तु यह रंग ढंग देख करके गयाशीर्ष ( म० की. ) गया निकटस्थ पर्वतविशेष, शिकारके बहाने सुवर्ण ग्राम भाग गये और वहां फौज गयाक समोपका एक पहाड । इकट्ठी करके और बलवाई हो पांडयाको तर्फ चल पड़े। गयाश्वत्थ । मं० पु० ) अश्वस्थवृत्त, पपड़का पड़ । ग्वालपाड़े पहुंचने पर सिकन्दर फौजके माथ बलवा गयास-उद दोन बङ्गाल के एक सुलतान । यह सुलतान | दबानको वहाँ गये थे । लड़ाई होने लगी। इन्दौन अपने मिकन्दर शाहके लड़के थे। मिकन्दर शाहके दो बीबियां सिपाहियों को समझा दिया था कि उनके बापक जिस्म में रहों। पहलीक पेटमे १७ लड़के हुए। दृमरीके एक हथियारकी चोट लगने न पाती। परन्तु लडाईमें फरमां लोतं बेटे गयाम उन-टोन रहे। ये अपने माटेपनसे | बरदारो नहीं चलती। सिकंदरक जखमी होनको खबर और कई इलम पढ़ करके दूसरे भाईयोंकी बनिस्वत पा करके यह रोते रोते उनके पास गये और उनका मर बहुत बड़े बन गये । उसोसे सिकन्दर शाह इनको बहत अपनी गोदमें रख कर माफी मांगने लगे। उम वक्र चाहते थे । परन्तु इससे मौतेली मांकी जलन धीरे धीरे सिकन्दरन कहा था-मेरा काम तमाम हो गया है, बढ़ने लगी । वह तरह तरहको तदबीरें लड़ाती थी तुम मजेमें सलतनत करो। यही बात कहते कहते वह सुलतान उनसे कैसे बिगड़ते ओर मुहल्यत न करते ।। मर गये । १३६७ ई०को यह तपतनशीन हुए। फिर किसी दिन सुलतानको अकेला देख इनकी सौतेली माने न्होंने मौतेली मांक लडकीको अांखें निकाल उसीके Vol. VI. 53