पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१८१

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गन्धकारी-मन्धतम्माव १७४ गन्धकारी ( स० स्त्री. ) शल्लकोवृक्ष, शलईका पेड़। गोमयप्रिय, गधटण, सुगधभूतवण, सुरस, सुरभि, सुगन्धि गन्धकालिका (स. स्त्री०) गधकालो कन्-टाप् । व्याम | और मखवाम है। यह तिक, रसायन, स्रिग्ध, मधुर, देवको माता. सत्यवतो। शीतल, कफ, पित्त और श्रमनाशक एवं सुगधि होता गन्धकाली ( म स्त्रो०) गंध: प्रशस्तग'धस्तस्म अम्लति | है। ( राजनि०) पर्याप्रोति अल-अच गौरादित्वात् डोष् । १ व्यासदेवको गन्धगज (म पु० ) हाथियोंमें श्रेष्ठ । माता, उनका दूसरा नाम सत्यवता था। गन्धगर्भ ( म पु०) विल्ववृक्ष, बेलका पेड़। यवसमा भाग यशखिमोम ।" (हरिवं. २०५०) [ गन्धरहा ( E .भी. स्त्री० ) गन्धवाविशेष । ... ... मत्यवतो देखा। गन्धग्राही ( म स्त्रो० ) नामिको, नाक । २ कुन्तोसो मूर्ति धारिणो शापभ्रष्टा एक अप्सरा गन्धघ्राण (म. ली. ) गन्धको बाम । इन्होंने हनुमानक हाथमे निहत हो कर मुक्ति पाई थी। गन्धलिका ( म० स्त्री० ) गन्ध चलति गच्छति चना (रामायण) ___गवल-टाप् । कम्त री, मृगनाभि । गन्धकाष्ठ (म. ली.) गंधयुक्त काष्ठमस्य, बहुवा। गन्धजटिला ( म स्त्री०) गन्धन जटिला, ३.तत् । वच, १ अगुरुचन्दन, अगरको लकड़ो। २ शम्बर चन्दन। हेमवतोका पेड़। (रामान०) गन्धजन्न ( म. ली। गन्धाभ्यद्रवावामित जल मध्य गन्धको ( मं० स्त्री०) शल्लकी, शलई । पदलो । सुगन्धि कुसुमादि वासित जल, सुगन्धित जन, गन्धकी (हि.वि.) गधक रंगका हलका पोला। गन्धकुटी । म स्त्रो० ) गधस्य कुटोव आधारः । १ म रा| ... "मका गधजले का फन्नपचासत ( भागत। ।।१।१५) नामक गधट्रय। २ किमी मन्दिरके भीतरको वह गन्धजात ( म. ली.) गन्धो वाञ्जनादी जातो यस्मात, कोठरी जिसमें बहतमी देवमूर्तियः रखो हो। ३ जैनियों- बहवो । तेजपत्र, तेजपात । गन्धानां जात ममूहः, के कैलियाको कुट । तार्थकि लिए इन्द्रादिदेव ६-तत् । २ गन्धसमूह समवशरण की रचना करते हैं। परन्तु साधारण केवली | गन्धना (स. स्त्री०) गन्ध जानाति ना कतरि क-टाप । भगवान के लिये गधकुटोको रचना होती है । जमे-- | नामिका, नाक। रामचन्द्र केवली और गौतमकेवलोकी गधकुटी। गन्धतण्डल (म. ली.) गन्ध प्रधान तगडु लमसा, गम्भकुसुमा (म. स्त्री० ) गधयुक्त कुसुम यस्याः, बहुव्रो। बह वो० । सुगन्धि शालिविशेष, वासफुल्ल चावल । गणिकारी पुष्पवृक्ष, गनियारका पड़। गन्धतन्मात्र ( सं० क्लो०) गन्धस्य तम्मान, ६-तत्। स ख्य- गन्धकूटौ। स स्त्रो०) वाइविहारस्थ आराम स्थान । मतसिह सूक्ष्म द्रवा इमको हम लोग देख नहीं मकत, यावत् भागवता ग धकूटat legमार पादानः । एमो लिये हमारा यह भोग्य नहीं है। योगी और देवतागण (दिव्यावदाममें पूर्ण नदान) इसका भोग करते हैं। मन पृथ्वीको गन्ध जिमका हम गन्धकलिका (म० स्त्रो०) गंध कैलति मचारय त । कस्त री, एकसुग'धित द्रवा, मृगनाभि । लोग अनुभव करते हैं, वह शान्त, घोर या मूढ़ अर्थात् गन्धकोकिला । म स्त्रा.) गधप्रधाना कोकिला इव।। सुखकर, दुःखकर या मोहजनक है। किन्तु गन्धतन्मात्र ग'ध ट्रवाविशेष, सुगध कोकिल । इसका गुण-तीक्ष्ण, | में जो गन्ध है वह शान्त और घोर या मूढ़ नहीं है। उष्ण, कफनाशक, तिक्त और सुगधि है। (-149414) वेदान्तकगण दूम तन्मात्रको ही अपञ्चकतभूत नाम गन्धकोनिका ( म. स्त्री०) गधमालतीके ममान गंध- कहा करते हैं । नैयायिक और वशेषिकगण सम्मान द्रवाविशेष । स्वीकार नहीं करते हैं, उनके मतमे परमाणु ( पृथ्वीका गन्धखेड ( म.की.) गंधसा खेला यत्र बहुव्री० । सुग. अत्यन्त मूक्ष्मांश, जिसको और भाग कर नहीं मवाते ) वही न्धित धाम, गधवेण । इसका पर्याय भूतण, रोहिष, । चरम अवयव है। मांख्यभाष्यकार विज्ञानाभान म