पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१४८

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१४६ गाका. अपांतोय समझाना चाहिये । धर्मशास्त्रकार कश्यप किया अथवा अध्ययन करने पर भी व्य त्यत्ति लाभ नहीं कहते हैं कि भ्र गहन्ता, कुटिलाङ्ग और नक्षत्रसूचक | की, वे ही नक्षत्रसूची हैं। ये हार हार घूमते और ब्राह्मणों को ममस्त कार्याम ही परित्याग करना चाहिये । किमोसे जिनामा नहीं किये जाने पर नन नोंकी गणना दूसरे दूसरे धर्म शास्त्रमें भी गगकक' ग्वब निन्दा को कर गृहस्थीका शुभाशुभ फन्न कहा करते हैं। इसी गई है । किन्तु संग्रहकारगणका मत है कि जो | कारण शास्त्रकारोंने इन्हें नक्षत्रसूचो नाममे उल्लेख ज्योतिष शा का अध्ययन वा व्यवसाय करते व पतित | किया है। ये यथार्थमें ज्योतिषो नहीं हैं। ये हो पतित, वा निन्दनीय नहीं हैं क्योंकि ज्योतिषशास्त्र वेदका एक अपात य और निन्दनीय हैं। पहले जो मब प्रमागा लिखे अङ्ग है। वेद और धर्म शास्त्रमें ब्राह्मण ज्योतिषशास्त्र गये हैं, वे भी टूमरे बचनोंके माथ मिला कर हमी तरहमे 'अध्ययन कर मकते हैं, ऐमा विधान है। यदि अध्ययन याख्या करनी होगी एवं विक व पारगम" इत्यादि वमिष्ठ करनेमे ही पतित वा निन्दनीय कहा जाय तो धर्म शास्त्र वचन हारा स्पष्टरूपमे ही नक्षत्रसूचोकी निन्दा की गई का विधान मिथ्या होता है। है। इसके अतिरिक्त ट्रमरे दमरे शास्त्रांम भो नक्षत्र इसके अतिरिक्त कई एक शास्त्रमें ज्योतिष की बहुत सूचीको निन्दा देवो जाती है। जो प्रकत प्रस्तावसे प्रशसा भी लिख है- ज्योति:शास्त्र अध्ययन करते, वे निनदनीय या अपांत य "विस्कन्धपार म एव मा: चार सदा भूसुरान्दमध्ये । नहो । नवयमची खलु पापहपी हेयः सदा सर्वसुधमकत्ये ॥" (वसिह) | पुष्टत्महितामें लिखा है कि जो महशजात, प्रिय- जिन्होंने ज्योति:शास्त्रके स्कन्धत्रय अच्छी तरह अध्ययम दर्शन, विनीतवेश, मत्यवादी, जिनका पक्षपात निन्द- कर व्य त्पत्ति लाभ का है, वे थाइम मब ब्राह्मणोंके नोय हो, जिनकी शरीरमंधि मविभक्त और उपचित हो. मध्य पूजनीय हैं, किन्तु जो नक्षत्रसूच। अर्थात् ज्योति:- जिनके हाथ, पैर, नख, नेत्र, चिवुक, दांत, कान, ललाट शास्त्रानभिज ता भी नक्षत्रादि गणना कर जीविका | और मस्तक प्रभृति चारुतामम्पन्न हों, जो स्थ लारीर, 'निर्वा करते व हो पतित और निन्दनीय हैं। गम्भीर और मिष्टभाषी हो, जो देश और कामाका तत्त्व "यन्यतया तव बनानाति या रिजः । जानते हों, जो शास्त्रीय तक में ममा जाकर कभी भी भयभुक स भवेच पूलित: पकिपावनः । भीत नहीं होते ही, जो निपुण, अवामनो, ग्रहगणित नासावत्सरिक देशे वस्तवा म तिमिकता ॥ (वराह) जाननेके लिये कौतूहलो हो, देवपूजा, व्रत और उपवास जो ब्राह्मण ज्योतिष के समस्त ग्रन्थ अध्ययन कर उस करनी जिनकी प्रवल इच्छा हो, वे ही ज्योति:शास्त्र का प्रक्लत भाव समझ सकते वे थाइमें अग्रभुक, पूजित अध्ययन करनेमें उपयुक्त हैं । ग्रहगणित अर्थात् पोलिश, और पंत्रिपावन है। जिम देशमें ज्योतिषी नहीं हैं, रोमक, माशिष्ठ, मोर और पैतामह इन पांच मिद्धान्त- जो अपना कल्यान चाहते हो, उन्हें उम देशमें रहना शाखामें जो युग, वर्ष, अयन, 'ऋतु, माम, पक्ष, अहो. महीं चाहिये। इसके अलावा सूर्यसिद्धान्त और रात्र, याम, मेहत, नाड़ो, विनाड़ो, प्राण, व टि प्रभृति सिद्धान्तशिरोमणिम ज्योतिषोको प्रशंमा अच्छो तरहकी काल और नेत्र निर्णोत हुए हैं, उनके सम्यक् वेत्ता तथा मोर, मावन, नाक्षत्र ओर चान्द्र ये चार तरहके मास, शास्त्र में दोनों तरह की बातें लिखो गई हैं। एकमें पधिमास घोर प्रबम प्रभृतिके कारमाभिन्न, षष्टि संवत्सर, गणकको प्रशंसा और दूसरे में निन्दा को गई है। यदि युग, वर्ष, मास, दिन ओर होरा प्रभृतिक अधिपति निणय- प्रकत प्रस्तावमे इमको मीमांसा न की गई तो शास्त्रमें में तथा सौरादि परिमाणमें अभिज, ग्रहों के शोघ ममद 'विरोध हो मकता है। इसी कारण मंग्रहकारीका कथन | याम्य उत्तर और नीच उच्च प्रभृतिके कारण निर्णयमें है कि शास्त्रमें गणक विषयमें दोनों तरहसे लिखे गये पट, इनके अतिरिक्त जो दूसरे दूमरे ज्योतिर्मण्डलके है। जिसने यथार्थमें ज्योतिषशास्त्रका अध्ययन नहीं' दुरूह विषयों को अच्छी तरह मौर्मासा. कर दूर ।