पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१२३

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रस्मो काट डालनेसे दरवाजा बन्द हो जाता है। फिर | बुझती। रोशनी जितनी ही सकोण पडतो जातो. हाथियोंका झुण्ड जोर जोरसे चोखता और दरवाजा तोड़ हाथी भी उसोके साथ साथ तन जगहमें जा पहचते करके भागनेकी चेष्टा करता है। शिकारी भी उस समय हैं। जब हाथी धेरैको जगहमें जा करके पहुंचते, बाजा बजाते और आग जलाते हैं। हाथी किकत - घेरेकी एक पोर मोटो लकडोके बेई से एक प्रशस्त विमूढ़ हो करके थोड़ी देर दौड़ धूप कर थक करके स्थान बनाते हैं। इस राहसे एक हाथी बड़े कष्टमें बैठ रहते हैं। फिर हथिनों छोड देते हैं। माई बाहर निकल सकता है। इसी प्रकार मण्डलाकार हथिनीके मोहमें पड करके हाथी अपनी अवस्था भल स्थानको चारों ओर मोटी लकडीके बेड़े से घास फूस जाते हैं। इमी सुयोगमें शिकारो उन्हें पकड़ लेते हैं। लगा ढाक देते हैं। हाथी उसे जङ्गल-जैसा समझते मुगल-मम्राट अकबरकै ममय इन्हीं चार प्रथाओंसे और तो ने फोइनकी चेष्टा नहीं करते। वह जिस हाथी पकड़े जाते थे। कबरके समय और एक नया घरेमें फांम जाते, उसीसे लगा हा प्रायः अर्धाकार कौशल उद्भावित हुआ । जङ्गली हाथियोंको तीन एक दूमरा छोटासा घेरा बनाते हैं। उमको लम्बाई पोरमे महावत घर लेत, एक ओर खुली रख करके ६० हाथ और चालाई १३ हाथसे ज्यादा नहीं होती। बहुतमो हथिनियां इकट्ठी कर देते थे। इन हथिनियां उसके बीच में लगभग ३ हाथ गहरा एक गट्टा खोदत हैं। को चारो ओरसे आ करके जङ्गली हाथो घेर करके खड़े हाथो आगके डरमे घबरा करके बड़े घरमे उसो राह हो जाते थे। हथिनियां फिर किमी निर्दिष्ट स्थानको एक एक करके छोटे घेरेमें घुसते हैं। फिर उनमें हिसने चली जातौं, उनके प्रेममें फम करके हाथी भी यहीं इलनको शक्ति नहीं रहती, इस घेरका दरवाजा रुधा पहुंच रहते थे। फिर उन्हें पकड़ते थे। आजकल होता है। रोशनो जलानेवाले भाग जाते हैं। हाथी भी हाथी पकड़मेके नाना कौशल प्रचलित हैं। भारतके जब डरसे निवल और निष्यन्द होते, धेरैके पाम जा बहुतसे स्थानोंमें हाथी पकड़े जाते हैं। १८६८ ई०को करके सङ्कोर्ण पथका हार खोल देते और हाथी धीर धीरे मन्द्राज गवर्नमेण्टने हथिनी मंग्रह करना प्रारम्भ किया उसके भीतरकी राह लेते हैं । किसीके भागने लगने था। इस कार्यमें नेपाल मरकारकों बड़ा पाय हुआ। पर शिकारी मुह पर भाला मारते हैं। इस लिये कोई आजकल मिहल और प्रामाम देशमें भी हायी पकडे हाथी पलायन कर नहीं सकता। इसो समय शिकारो जाते हैं। मिहलके हाथी बहुत ही दुर्धर्ष हैं। वह हाथीका पांव बांधते हैं। बड़े के पास दो पाल हाथो अब सब बोये हुए खेतम पहुँच अनाज बिगाड़ डालते बंधे रहते हैं। शिकारो घिरे हाथोक गलेमें रम्मो डाल हैं। इससे सिंहल गवर्नमेंटने हाथी मारनक लिये पालू हाथियों के शरीरमें बांध बे का दरवाजा खोलते पुरस्कारको व्यवस्था की है। हैं। फिर फसा हुआ हाथी पालू हाथियोंमें जा मिलता ____सिलम भाषा पमका कोमल-हाथियोंका झुण्ड | है। धीरे धीरे शिकारी पालू हाथी पर चढ़ जङ्गलोको बड़े मैदान बीच में रहनेसे १०।१५ कोसके धेरैको जकड़ करके बांध लेते हैं। जङ्गली हाथी बंध जाने पर चारों ओर आग जलानी पड़ती है । यह आलोक दो बड़े पड़ोंके बोचमें ले जा करके कस करके बांधा दूरस्म होना उचित नहीं। इसके बीच में हजारों भादमी | जाता है। उसके खानेको पेड़ पत्ता और पोनको पानी रखने पड़ते हैं। २॥ हाथ अंचे खंटे पर यह रोशनी रख देते हैं। पाल हाथियांक पाससे हट जाने पर रहती है। चूंटे एक दूसरेसे १२ हाथ दूर रखे जाते | जङ्गली हाथी मतवाला होता, चोख चोख करके साध्या- हैं। धीरे धीरे यह खंटे आगेको सरकाते चलते हैं। नुसार स्वाधीनता प्राप्त करनको चेष्टा करता, आहार फिर इन्हीं खूटी पर.थोषी गोली मही लगा करकं पत्तियां करनेसे सर्व प्रकार अलग रहता; किन्तु दो सान मास पीछे मला करके रखते हैं। भालोक पर नारियलको पत्तोका भूख प्याससे घबरा करके खाने पीने लगता है। शिकारी ढकन रहता है। पानी बरसने पर रोशनी सहजम नहीं । पालू हाथियों के सहारे धीरे धीरे उसे क्योभूत कर लेते Vol. VI. 31