पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/११८

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गया और चलने में अग्रपदके स्थान पर पथात् पद डालनेवाला झते हैं। वाद्य लक्षण बारह हैं। यथा हस्तगत, पदमा- हस्ती राष्ट्रहा कहलाता है। जो राजा अपनी बीवधि | थित विषापस्थ, शिरस्थ, नयनगत, कर्णाश्रित, कण्ठमा, चाहे, इस हाथीको अपने राज्यसे मार भगाये। राष्ट्रहा गास्थित, चरणस्थित, ग्रपराङ्गास्थित, कान्तिस्थ और सत्व हाथी जिस राज्य वा प्रदेशमें वास करता अल्प दिनमे हो स्थित । फिर इन लक्षणोंको क्षेत्र भी कहा जाता है। भद्र मिटता है। जातीय हस्तीका पूर्ण : १२०, मन्द्रजातीयका ४० जिस हाथोके कई पट परसपर असमान, दोनों दन्त | वत्सर और मिश्रजातीयका आयु: अनियत है । पूर्वको जो विषम पञ्चरोंमें एक, दो या ममस्त ही भग्न, जिसका हादश लक्षण उल्लिखित हुए, उनके रहनमे हाथीका दन्तहय मुक पड़ता या नहीं चलता और जिमका कुम्भ पूर्णायु हुआ करता और हीनतामें उसकी न्य नता पाती हय खेतवर्ण लगता, मुषली नाम पड़ता है । यह राजाके है। हस्तगत लक्षणीक अभावमें १० वत्सर आयु: घट पास रहनसे गज्य, दुर्ग, सैन्य और अमात्यल्का विनाश जाता है। इसी प्रकार कोई दो लक्षण न मिलनमे आयुः होता है । इस प्रकारका बदजात हाथी एक बारगी हो | २० वर्ष, तीनसे ३० और चारसे ४० वर्ष कमो पड़ती है। दूर रखना चाहिये। ऐसे ही एक एक लक्षणके अभावम दश दश वर्ष आयुः कपालका चर्म अतिशय कर्कश जैसा लगनेमे हाथीको घटता है । यह लक्षण हाथोक दुष्ट लक्षणोंका दोष भी भाली कहा जाता है। यह स्वामीका कुन्न और धनक्षय दूर किया करते हैं। पदलक्षण रहनसे दन्तदोष विनष्ट करता है। होता है। इसी प्रकारस दन्तलक्षण वाहित्यदोष, वाहित्य निःसत्व हाथीका शरीर पुष्ट तथा विशाल, दन्तव्य लक्षण नेत्रदोष, नेत्रलक्षणा तालुदोष और तालुलक्षण सुन्दर, वोर, रणमन्नासे सज्जित और बाहक क क उत्सा स्कन्धदोषको नष्ट करते हैं। ऐसे ही अन्यान्य स्थानों के हित तथा परिचालित होते भी युद्ध करनेका साहस नहीं लक्षण भी अपरापर दोष निवारण करते हैं। करता। हस्तियों के जितने दोष उल्लिखित हुए हैं, उनमें | स्थान, देश, आहार और वातपित्त भेदसे सस्तीके शरी- यह दोष सर्वापेक्षा प्रधान है। रका विभिन्न वर्ण हुआ करता है । उसमें सिन्दूर, शक, ___ राजापोंको दुष्ट हस्तीका कभी अवलोकन करना न | वैदूर्य, विद्य त, सुवर्ण वा इन्द्रनोल वर्ण का हाथी ही चाहिये । उनको पर राज्यमें पहुंचाते वा नगरसे वहि अच्छा होता है। पतिशय खेतवर्ण, रक्तवर्ण वा शुक कत रखते प्रथवा शुख बायण वा विशुहगणकको प्रदान तथा मयूरसदृश वर्ण विशिष्ट हस्ती सर्वापेक्षा श्रेष्ठ है। करते हैं। यदि किमी समय दुष्ट हाथी राजाको देख पड़े ऐसा हाथी प्रायः देख नहीं पड़ता, प्राच्य वनमें कभी सो प्राणको शत गोदान और नगरी अपने पाप वा पुत्र कभी वैसे दो एक हाथी दिखलायो देते हैं। शृङ्गार, को नौराजित करना चाहिये। देवसूक्त मन्त्र द्वारा १० अङ्गार, भस्म, पस्त्रि, पक्ष, मनिष्ठा वा आम्रपुष्य तुल्य सहन होम वा तत्प्रतीकारके निमित्त अम्निमें सिलहोम वर्ण का हस्ती भभ है। उससे नाना प्रकार उत्पात किया जाता है। ब्राह्मण आदि जाति भेदसे जो चार होनेको सम्भावना है। प्रकारके होते, ब्राह्मण प्रभृति चार जातियों के पक्षम वाहन मनुथोंको जो व्याधि लगता, हाथियोंको भी इ.मा कार्यको यथाक्रम शुभप्रद हैं। करता है। इनको चिकित्सा भी मनुष्यकी भांति ही मनुष्यका पायुः निर्णय करनेको जैसे नानाविध कर्तव्य है । गरुडपुराणके मतमें मनुष्यको जिस मात्रामें लक्षण रहते, हाथीका आयुः ठहरानके भी भारतीय औषध खिलाते, हाथोको उससे चौगुना पहुचाते हैं। चिकित्सक कई लक्षण स्थिर करते हैं। यह लक्षण वनमें हस्तो वा हस्तिनी पीड़ित होनेसे संस्कार वश वह वाद्य और पाभ्यन्तर दो भागोंमें बंटे हैं। पाभ्यन्तर पपने पाप औषध अन्वेषण करके खा लेते हैं। हाथोके सक्षण योगी एक मात्र योगवलसे ही अवलोकन करते है। उदरमे प्रायः कमि रहते और वह समझते हैं कि इस स्थल पर हम उन्हें उल्लेख करना निष्प्रयोजन सम- कोडोंकी दवा कीचड़ है । कमि होने पर वह कर्दमके