पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/११७

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गज ११५ कष्ट पड़ता, जो दूमरे हाथोको देखते ही रागसे फूल | ओंके मध्य यह अतिशय निलष्ट है। जो राजा अपनी उठते और जो पानीसे भरे काले बादल-जैसे विद्याड़ा श्रीकृति पोर शरीरका प्रारोग्य अभिलाष करे, इस हाथी करते, राजाओंके लिये सुखकर होते हैं। को देवनसे भो दूर रहे। . दुष्ट हाथी बीस भागोंमें विभक्त हैं-१ दीन, जिस हस्तोका शमन्देश अर्थात् ललाटस्थ अस्थिफलकदय २ क्षीण, ३ विषम, ४ विरूप, ५ विकल, बखर. ७ भग्न और स्कन्धदेश अतिशय उच्च पड़ता, काक ठहरता विमद, ८धनापक, ८ काक, १० धूम ११ जटिल, | है। यह प्रभुका मृत्य कारक है। १२ अजिनो, १३ मण्डली, १४ खित्री, १५ इतावर्त, दन्तद्दय विषम लम्लाटास्थिगत शुण्डविरोधी, स्वयं भित्र १६ महाभय, १७ राष्ट्रहा, १८ मुषलो, १८ भाली और वा विदीर्ण एवं शून्यान्तर रहनेसे गजको धूम कहा २० मिःमत्व । जाता है । इमका फल काकहम्तोक ही समान है। जिम हाथीका देह बह त क्षीण और प्रभाशून्य और हाथीको मस्तककै केश कर्कश, रुक्ष और जटा जैसे दन्त क्षुद्र क्षुद्र तथा अत्यन्त क्षोगा रहते, उमे दोन कहते आकारधारी होने पर जटिल नामसे अभिहित करते हैं। हैं। इस हाथोऊ घरमै रहनसे राजा दरिद्र हो जाता है। यह धनक्षय करता है। क्षोण नामक कुञ्जरका शुण्ड खव, पुच्छ बहत् और अजिनी गजका स्कन्ध वा गात्रचर्म भूमिलग्न जैसा निश्वामवेग क्षोण होता है। यह धरमें रहनसे धन मालूम पड़ता है। इसके द्वारा राजाका भूमिक्षय और सम्पत्ति नष्ट होतो है धनक्षय होता है। श्रीवृद्धिके अभिलाषीको इस जासीय कुम्भ, दन्त, चक्षु, कर्ण वा दोनों पार्श्व परम्पर अस हस्तीका स्पर्श वा दर्शन करना मना है। मान होनेसे गजको विषय कहा जाता है। यह सप जिस हस्तीके देहमें एक, दो या बहुतसे मण्डल जैसा क्षयकारक है। रहते और वह मण्डल विरूप वा उन्नत लगते, मगडली विरूप हम्तो स्कन्धदेशसे मस्तक पर्यन्त क्षीण और कहते हैं। यह कुलनाशक होता है। पथाभागमें स्थू ल होता है । इसके तबलेमें रहनसे राज्य ____ उक्त मण्डल ( भौंरी) खेतवर्ण लगनेसे हस्तीको छूटता और बल घटता है। खित्री कहा जाता है। यह एहमें रहनेसे धननाश अनेक भागोंमे भी जिसका मद क्षरण देखा नहीं होता है। जाता और युद्धके समय जो बल नहीं लगाता, विकल हृदय, उदर, त्रिकदेश, पुच्छमूल, गुदेश, लिङ्ग वा कहलाता है। ऐसे हाथोको छोड़ देना चाहिये। पदके पावर्त नष्ट हो जानेसे हस्तीको इतावर्त कहते है। शरीरमें खरता स्वाभाविक जैसो लगने और दन्त तथा यह राजाको लक्ष्मी विनाश करता और उसे योगी, शुण्ड अपेक्षाकृत छोटो माल म पड़नेमे हाथीको खर प्रवासी वा उपद्रत कर डालता है। कहते हैं । इसको घरमें रखनेसे कुलक्षय होता है। जिस हस्तीकै गमनकालको गुलफहयका मुहुम पर जिम हाथीको एक बारगी ही मदस्राव नहीं | स्पर सङ्घर्ष ग हुआ करता, महाभय नाम पड़ता है। यह होता या होता भी है तो अकालमें और जो देखने में | हस्ती लक्षणयुक्त और गुणशालो होते भी परित्याग कर नितान्त कुत्सित तथा अवश लगता, विमद ठहरता है। देना चाहिये । महाभय हस्ती गृहमें रहने पर राज्य, धन, इसको परित्याग ही कर देना चाहिये। कुम्ल, सैन्य, मित्र, पत्नी और प्रजा दृष्टि मात्रसे हो नष्ट हो ___ध्यापक हाथी हलका. सारे पक्षीण, शण्ड शिरा | जाती है। यह जहां टिकता, स्लोग भी दिन दिन मिटमें तथा उदर अपेक्षाकृत छोटा, व्यग्रभावसे अविश्वान्त | लगते और उस स्थानमें वचभय व्याधिभय तथा पम्निभय निश्वास छोड़नेवाला, चक्षु अनवरत मलसे पाच्छव, | ा उपस्थित होता है। कटि और पुच्छके अग्रभागमें आवर्त वा मण्डलयुक्त और अत्यन्त साड़ित होने पर भी गमन करनेकी इच्छा बलिङ्ग निश्चेष्ट रहते भी सर्वदा वहिर्गत होता है। हस्थि-| न रखनेवाला, पृष्ठमे उदर पर्यन्त गोलाकार रेखायुक्त