पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१०४

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१.२ गङ्गाधर कविराव ३३ रामचन्द्रका पुत्र और याजिकनारायणका और पण्डित होगा।" तत्पश्चात् गाधर अपने पिटष्वस्रय भाई। १६०६ ई०से पहले स्तम्भतीर्थमें ये रहत थे । नन्दकुमार सेनके निकट मुग्धबोध व्याकरणके बहुतसे इन्होंने अनेक मंम्क त ग्रन्य बनाये हैं। अंश पाठ करने लगे और अवशिष्ट भाग माणिकचन्द्र विद्यासागरसे समाप्त किया। इसके बाद ये यशोरके ३४ शिवप्रमादका पुत्र, मेतुस ग्रह नामका मुग्ध- वाराईखालो ग्रामनिवासी रामरत्नचूड़ामणिके निकट बोधका टीकाकार। अभिधान, अम्लङ्कार, का य इत्यादि पढ़ने लगे। रिह ३५ एक प्रसिद्ध संस्कृत ग्रन्थकार ये वीरेश्वर वर्षको अवस्थामें ये गजशाही वेलघरिया ग्रामतिमी महाडकर्क पौत्र, मदाशिवर्क पुत्र और अद्दतानन्द यतिके रामकान्त मेनसे आयुर्वेदीय चरकादि ग्रन्थ करते शिष्य थे। इन्होंने बहुतमी मस्कृत पुस्तकें बनाई हैं। थे। वे प्रत्येक दिन १० पृष्ठ पाठ लेते थे और उसे जिनमें कुछ निम्नलिखित हैं -आरामादिप्रतिष्ठापडति, अभ्याम कर मनमें दृढाहित करनेके लियेशा लिपि- गङ्गास्त्रोत्र, तर्कचन्द्रिका, तोथ काशिका, तैत्तिरीय कार्य में पटता सम्पादनके लिये प्रतिदिन मा पष्ठा- सारार्थ चन्द्रिका. ध्यानवल्लरी, नामकोमुदी, नारायण को लिपिवद्ध करते थे। वे रामकान्त अपकके दमरे तत्त्ववाद, प्रपञ्चमारविवेक, भावमारविवेक, मणिकणिका- शिष्योको शाकरण, अभिधान और माचिटिमें पाठ स्तोत्र, मन्त्रवल्लरी, मन्त्रमहोदधिटीका, रामस्तुति, विष्णु - देते थे। इस समथ उन्होंने मुग्धबोध व्यायाको एक सहस्रनाम, शारीरकसूत्रसारार्थ चन्द्रिका। टीका की थी। ३६ हिन्दी भाषाके एक कवि । इन्होंने 'विहारी सत ___ यहां आयुर्वेदका पाठ ममाप्त करके ये नाटो नगरको सई'को एक उपसत्या नाम्रो टोका कुण्डलियों और चले गये उस समय इनका पिता कविराज भवनीप्रसाद दोहोंम लिखो है । यह भजन आदि भी बनाते थे । यथा- राय नाटोर महाराजाके प्रधान चिकिमक थे। माटोर राजधानी में उस वक्त लब्ध नामक प्रमिद्य अध्यापक पाये "रसना क्यों भलो हरिनाम। था देहियाको गर्वन कौन ज्यों वादलको घाम थे। उन्होंने गङ्गाधरको बाल्यावस्थाको लिखित नेता पढ़ कर भवानीप्रमादसे कहा कि आपने यह प्रा । भोजमखट रस स्वाद बताये क्रोधी कपटो काम । टीका कहां पाई ? इस टीकाका तो प्रचार नहीं है । र गंगाधर के पन्नमौ सौध बातम राम ।" सुन कर भवानीप्रसाद कछ मुसकराये। इस पर अध्याप- ३७ देवताचनविधिरचयिता। ३८ इनका दूसरा कको विरक्त होते देख उन्होंने हास्यका प्रवत कारण : नाम लक्ष्मीधर है। ये जम्ब मर नगरवासी दिवाकरके प्रकाश किया। जब अध्यापकने जाना कि वह टीका उनके पौव गोबिन्दके पुत्र और विष्णार्क कनिष्ठचाता थे। इनौने पुत्रका प्रणीत है तो वे अवाक हो गये और गंगाधरको संत ग्रन्थ रचना की है। अनेक पाथीर्वाद देने लगे। गङ्गाधर नाटोरमें अपने पिता- महाधर कविराज--बङ्गदेशके एक असाधारण पण्डित । के पास बहुत थोड़े दिन रहने के बाद कलकत्ता चले रम्होंने १७२० शताब्दके आषाढ़ कृष्ण पक्षीय अष्टमी गये । उम समय कलकत्ता अंगरेजोंके अनुकरणमें संलग्न तिधि यथोर जिलाके मागुरा ग्राममें : जन्मग्रहण किया था और पाश्चात्य डाकरीको भरमार थी। इस लिये वहां था। इनके पिताका नाम भवानीप्रसाद राय था। गङ्गा इन्हें विद्यावधन तथा व्यवसाय विस्तारको विशेष सुविधा पर पांच ही वर्षको अवस्थासे जन्मभूमि म्य गोपीकान्त दीख न पड़ी जब इन्होंने सुना कि पुरानी राजधामो मर्शि चक्रवके निकट विद्याध्ययन करते थे और दश वर्ष तक दाबादमें दुर्दशाग्रस्त होने पर भी प्राचीन कालसे ही हु उन्होंने शिक्षा लाभ करते रहे। चक्रवर्ती महाशय उस | अध्यापकोंका वास है। संहतको चर्चा पोर आयुर्वेदोक्त छावको मेधा और स्वभाव-चरित्र देख कर विस्मित हो। चिकित्साका समादर प्रचुर है तो वे वहीं चले गये। गये और भवानीप्रसादसे बोले, "गङ्गाधर एक कविराज' उस समय उनकी अवस्था सिर्फ २१ वर्ष की थी।