पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१०३

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गङ्गादास-गङ्गाधर गङ्गादास -१ छन्दोगोविन्द नामक संस्कृत ग्रन्यप्रणेता ।। ६ एक उणादिवृत्तिकार । ७ प्राचारतिनक नामक २ उक्त छन्दोगोविन्द नामक ग्रन्थप्रेणताका शिष्य गोपाल स्मतिसंग्रहकार । ८ चन्द्रमानतन्त्र नामक ज्योतिशास्त्र दामका लड़का, अच्यु तचरित काव्य और छन्दोमञ्जरी कार । ८ तकदीपिकाका एक टीकाकार । १० कायम्यो- नामक ग्रन्थ बनानवाला । ३ वेदान्तदीपिकाकं प्रणता । त्पत्ति और चातुवर्ण्य विवरण नामका संस्कृत ग्रन्थकार। ४ वाक्यपदो नामक व्याकरण-रचयिता । ५ पोविरका | ११ तिथिनिर्णय और सर्वनिगः। मन्यामनिर्णयप्रणता पुत्र टूमरा माम ज्ञानानन्द। इन्होंने मंस्कृत भाषाको और दायभागका एक टीकाकार। १२ न्यायकुतूहल सिलकखगडप्रशस्तिको रचना की है। ६ हिन्दीक | और न्यायचन्द्रिकाप्रणता। १३ निर्णयमञ्जरी नामक एक कवि इनको भक्तिरमविषयक कविता मिलती है।। ग्रन्थकार। १४ एक विख्यात वैयाकरण, इन्होंने संस्कृत "भजन बनत नाही मन सालाना . भाषामें व्याकरण-परिभाषा, वृत्तदर्पण नामक छन्दो- खनाना पकान और ठडा पानी। ग्रन्थ और शब्दपाठको रचना की है। १५. प्रतिष्ठा- पामको गिलौरी चहिये पोर पोखदानो। चिन्तामणि और प्रतिष्ठानिय नामक ग्रन्यकार। जायौ चौका रथ चहिये पौर तम्ब, पाममामी। १६ वरिकामाहात्मा-संग्रहरचयिता। १० योगरत्नावली सेता पम तो चर्तिये .तो गनो । प्रणता। १८ भास्वतोका टोकाकार । किला सा टट चान्ये चौर मालामा पूस ती मत पहिये कुनको भिगानो। १८ रमपदमाकर नामक अन्लङ्गारशास्त्ररचयिता। है मादाम दाम मायाम भुषना॥" २० वसुमतीचित्रामन नामक संस्कृत काव्यकार। ७ दिगम्बर जैन ग्रन्थकर्ता । इनको रचा । ई पुस्तकांमसे २१ विधिरत्न नामक धर्म शास्त्रकार । पञ्चक्षेत्रपाल-पूजा, सुगन्धिदशम्य द्यापन, मम्म दशिखर २२ विश्व श्वरस्तुतिपारिजात नामक ग्रन्यकार । पूजा, मम्म दविलाम ये पुस्तके मिलती हैं। २३ वेदान्तशु तिमारम ग्रह नामक दर्शनशास्त्र- गङ्गादित्य ( म० पु. ) काशीम विवं श्वरके दक्षिणस्थित रचयिता। आदित्यविशेष। इनके दर्शन करनसे समस्त पाप विनष्ट ___ २४ चिहपाथमरचित व्याकरणदीपका "व्याकरणप्रभा" होते हैं। नामको टीका बनानवाला । " यास नवाब: विश्व माइतिणे स्थितः" ( कागख ५१५०) २५ 'भाकुनीप्रश्न' नामका एक शकुनशास्त्र प्रणता। गङ्गाहार ( सं० लो०) गाया भूम्यवतरमहार, ६-तत् । २६ षोड़शकम पद्धति और संस्कारभास्कर नामका इसका दूसरा नाम मायापुरी ओर हरिद्वार नामसे मग्रहकार। प्रमिह है। इसी स्थानसे गङ्गा भारतवषमं प्रविष्ट हुई २७ मङ्गीतरत्नाकरका ‘सङ्गीतमेतु' नामका टीका- है। किसोक मतसे इम स्थान पर दक्षयज्ञ होता था। कार। ऋषिगण सर्वदा इस स्थान पर वाम करते थे। २८ किसी नैयायिक पण्डित, इन्होंने मामग्रीवाद गङ्गाधर ( सं० पु० ) गङ्गां धरति, ध, अच । १ शिव | नामसे न्यायग्रन्थ प्रणयन किया है। सूर्य वंशीय भगीरथ प्रार्थना करने पर शिवजीने २८ सूय शतकका एक टीकाकार । गङ्गाको मस्तक पर धारण किया था, इम लिये ३० स्मात्त पदार्थसंग्रह और सातिचिन्तामपि. इनका नाम गङ्गाधर पड़ा। २ एक प्राचीन कोषकार । रचयिता। ३गक प्राचीन माध्यन्दिनोय शाखाध्यायी स्मात पगिड़त, ३१ डाहलराज कर्णको सभाकं एक कवि, विन- रामाग्निहोत्रका पत्र। उन्हनि अनक संस्कृत ग्रन्थ प्रण | ने इनको कवित्वमें पराजय किया था। यन किये हैं। ४ काठकानिक नामक ग्धसंग्रहकार। ३२ भैरव देवनका पुत्र, इन्होंने प्रश्नभैरव और ५ रन्दुप्रकाश नामक शब्द न्दुशेखरका टोकाकार ।। मुहर्त-भैरव नामका ज्योति:शास्त्रकी रचना की है। Vol. VI. 26.