पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१०१

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गङ्गा-गङ्गागोविन्दसिंह .' वावासो जिसको आजकल गङ्गा कहते हैं उमोका । ३ शान्तनुको स्त्रो और भीष्मको माता या धर्मको प्रशत नाम भागीरथी है। भौगोलिकके मतमें यह मूल स्त्रियोंमें से एक। ४ आकाशगा। ५ पाताल गङ्गा। गड़ा नहीं है वरन् गङ्गाको एक शाखामात्र है।। ६ नोलकण्ठको स्त्री और शकरको नानो । (हिं. पु.) गौड़नगरके दक्षिणमें गङ्गामे यह शाखा निकली ७ नारायणका पुत्र जो वृहदारण्यकोपनिषदको टीकाके हुई है। वर्तमानके मानचित्रमे देखा जाता है कि गौड़ रचयिता थे । के दक्षिण हो कर पूर्व मुख होती हुई जो नदी पहले गहाका ( मं० स्त्री० ) गङ्गा एव गङ्गा-स्वार्थ कन्टाप् प्रा. पना कहलाती और पीछे कोति नाशा कहला कर कारस्य विकल्प न स्वत्वम् भाषितपुस्कार पा ७।३।४८। गता। समुद्र में मिल गई है, वही नदी आजकल प्रक्कत गङ्गा नदी | गङ्गाकूट-विजयाई पवतक कूटी (म दिरों )ममे एक कूट । कहकर पुकारी जाती है। वर्ष पहले जिम स्थान हो गङ्गाक्षत्र (सं० ली. ) गङ्गायाः नत्र, ६-तत् पु० । गङ्गा कर गद्रा बहती थी, आजकल वहां जन्न नहीं है। कुछ तीरमे दोनों पावकी दो कोम तकको जमीन । दिन पहले ठीक वही स्थान सागरमझम था, आजकल तर द गव्य मिावन्त परितः विमुचाते।" (स्कन्दपु.) वह स्थान भूभाग है। | गडाखर-हैदरावादराज्यक परभनी जिल्लाको एक जागीर- २४ परगनामें इम तरहका परिवर्तन बहत जगह का मदर। यह अक्षा० १८५८ उ० और देशा० ७६ देखा जाता है। आजकल जिम कालीघाट हो कर क्षुद्रा- ४५ पू० में गोदावरीतीर पर अवस्थित है। लोकसंख्या कार आदिगङ्गा प्रवाहित होतो है, किसी समय वह स्थान लगभग ५००७ होगो । यहां दो विद्यालय, एक स्थानीय हो कर विस्तीर्णा भागीरथी बहती थी। आजकन्न काली- डाकघर और एक मरकारी डाकघर तथा पुस्लिम इन्स- घाटके थोड़ा दक्षिण जानेसे बोध होता है कि वहां ग कि पेकर और सव-रजिष्ट्रारका आफिम हैं। गम के अतिरिक्त और कोई दूसरा चिक्र नहीं रह गया | गङ्गागोविन्द सिंह-पाइकपाड़ा राजव शर्क प्रतिष्ठित और है। किन्तु दो मौ वष पहले उम स्थान हो कर स्रोत- सुप्रमिच वारेन हष्टिग मके दीवान । उनके पिताका नाम स्वती गड़ा बहती थी । ममद्रके माथ गका मंमग था। गौरा था । गङ्गागोविन्द उत्तरराढीय कायस्थ समाजके बड़ी बड़ी नावें वहां होकर जाती पाती थीं । कालीघाट माम्बगण्य कुलोन लक्ष्मोधरक वशीय थे। वे १७६८ ई० कुछ दूर दक्षिण यद्यपि आदि गङ्गा अदृश्य हो गई है के पहले अपने बड़े भाई राधागोविंदसिंहक स्थन्नाभि- तथापि आजकल उम स्थानके रहनेवाले अपनको गङ्गा षिक्त होने पर वनदेशक नायव सूवादार महम्मद रजा तोरवामी बतलाते हैं । गङ्गागभ कट जानमे जो सब खाँके अध न कानूनगोका काम करते थे। महम्मद रेजा तालाब बन गये हैं, उन्हींके जलको गङ्गा जल ममझ कर खॉर्क पदच्य त ह ने पर उनको भी नौकरी छुट गई थी। पूजादि मकल कार्य में व्यवहार करते हैं। उमक बाद वह कलकत्ता आकर कायलाभको आशामे आजकल आदिगङ्गा अर्थात् वन देशकी प्रकृत गङ्गा रहने लगे। क्रमशः लाट हष्टिगमको कृपादृष्टि उनपर समुद्रसे मिली नहीं है । इस आदिगङ्गाके इसतरह अपूर्व पड़ी। बहत थोड़े ही दिनोंमे कायदक्षता और चतुरता परिव तन देख कर प्रसिद्ध स्मात रघुनन्दनने लिखा है:- गुणके कारण वे हेष्टिग मकै दोवान हो गये कोई कोई "प्रवाहमध्ये विच्छ है तु पन:सलिलवाहित्वान्न दोषः । कहते हैं कि कान्त वाव के यत्नमे गङ्गागोविन्द हष्टिग म. चवथा इदानों गाया: सागरगामित्वान पत्न" । के दीवान हए थे माजकल जहां गङ्गाका प्रवाह नहीं है वहां गङ्गाको दोवान होनेके बाद गजस्व विभागके समस्त कायाँ पन्तःसलिला जैसा स्वीकार करने में कोई दोष नहीं | का भार उन्होंके ऊपर मौंपा गया । वे देशो मनुष्योंसे घूम है। नहीं तो वर्तमान समयमें गङ्गाका सागरमें जाना | लेने लगे। उन्हीं के हारा बड़े लाट हेष्टिगसको भो यथेष्ट यह पमिड बोध होगा। घूस मिलने लगा। १७७५ ई०के पहले मई मासमें २ हिमवत् और मैनाकी बड़ी लड़की ।। घूस लेनेके अपराधमे उनकी नोकरी छूट गई ।