पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/७२७

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७५२ वसवास-बसा काल स्वयं भगवान शिव भूमिष्ठ हुए, उनका नाप्त पडा । जाता, उसे एक प्रकारका म्यादहीन पदार्थ भी कद छन्नवसव । वसव और उनके मतानुवती जमीन पहले सकते हैं। वाणिज्य के लिये देशदेशान्तरमै जो वसा हीसे गस्ता माफ कर रखा था। अब भगवान्ने अव. भेजी जाती है, चद्द याहुन कुछ अपरिष्कार और कुछ तीर्ण हो कर अपने मतको प्रतिष्ठा की। वसव और लिंगायत दिल्टी रंगकी होती है । प्राणियों मेदानुसार एवं पदार्थ शब्दोंमें अपरापर विवरण देसी। के तारतम्यानुसार यह साधारणतः यहुत प्रकारकी होती है। इनमेस जो बसा अच्छी होती है, यह श्रीपध (मल. वसवास ( १० पु. १भ्रम, दुविधा, सदेह । २ भुलावा, | बहकावा, अलोभन या मोह । दम ointment आदि ) और धनी ( Candles ) बनाने काममे आती है। धमाका मलदम या प्रलेप बना कर वसवासा (४० वि० ) १ विश्वास न करनेवाला, संश- फोर्ड पर लगानेसे फोदा जल्द ही आराम हो जाता है। यात्मा, नको । २ भुलाने में डालनेवाला, बहकानेवाला। Jallon laindlee या नरयोकी बत्ती जो माद फनोस, घसथ्य (सं० क्ली०) धन, अर्थ मम्पत्ति । सेज, ममादान आदिम जलाई जाती है, वह भी उत्तम सा ( स० स्त्री०) वसते वन्ते वा वम निवास नस- श्रेणी की बमारे बननी ।। प्राय यसात साबुन (Soap) आच्छादने वा वम अच् । त्रियामाप । १ मामरोहिणी नयार होता है। नाडेको पालि (Letthi dressing) २ मेदो धातु । ( राजनि० ) ३ शुद्ध मांसभव स्नेह, चरयी।। और नरम पनि चरयोकी बड़ी ही आवश्यकता होती वसा और स्नेहकी पृथकना बतलाते हुए महीधरने ।ल-पन्जेगे (Machiners) और गाडी आदिकेनके लिसा ई- में चरबी न लगाने में काममे यडापायात पहुचता है। "ताप्यमानस्य वा स्नेहा मेदसः सा वसा मता ॥" गलैण्ड, फ्रान्स, जर्मना, कान्दिनेबिया, इटली, (शुकानयजु० २५।६ भाग्य ) । मन आदि अंगरेजी राज्यों में मावुन और बत्ती बनाने के वैद्यक शास्त्रम वसाके बहुत-से गुणोंका उल्लेन है। लिये चवी प्रचुर परिमाणम गलाई जाती है। अभी वहन प्राचीन कालसे ही वसाका प्रचलन है। तैत्ति- । अमेरिका, जापान और भारतके नाना म्यानौम जीव रीय सहिताम 'वसा होम' (६।३।११।१ ) को ध्यवस्था देवकी चरयोस वमा गला कर साबुन, बत्ती आदि बनाने- देग्यो जाती है। मुश्रुतमें बराहक्साको उपकारिता दिख- के यात से कारखाने हो गये है। सय जगहोम हिस लाई गई है। धवलरोगर्म शूकर-वमानिर्मित प्रलेप शरीर- तरद वसा गलाई जाती है वह नीचे लिया जाता है- के चमड़े का विशेष उपकारी होता है । वातरोगमें शूकर कसाई लोग जानवरोका मास येच कर चरयोसमष्टि को बसाकी मालिश करनेसे बड़ा उपकार होता है। (tast and sult) कारखानेमे येचने आते हैं। विमाकारी इस वरावसा वा करकी चरचोकी ऐतिहासिकताके ( Rendcret ) इन यमायो दुरीने काट कर गरम जलमे सम्बन्ध हम मारतके सुविन्यात सिपाही विद्रोहका | फेंक देने और उसे आगस फुटाने है। इस तरीकेसे चरवी उल्लेख कर सकते हैं । जिस टोटाको ले कर १८५७ ई० में धीरे धीरे गल कर झिल्लोसे अलग हो जाती है और क्रमशः हिन्द नया मुसलमान सिपाहो-दल अंग्रेज कम्पनीके | जलके ऊपर भंसने लगती है। पीछे धीरे धीरे वह वसा विपक्षमें अभ्युत्थित हुआ था, वह टोटा उक्त दोनों जाति हाथसे उठा कर पत्ते में रखी जाती है। जो चरवी तद तक याँको निषिद्ध गो तथा शूकरकी धमाके योगसे तैयार भी झिल्लोसे मिली रहती है, उसे उपयुक्त 'माइनयन्त्र'की किया गया था, ऐसा उनका विश्वास था। सहायतासे अच्छी तरह पीस कर निकाल लेना होता प्राणियों के शरीरके मेद वा चरवी अग्निके योगसे गला | है। यह झिल्लीपिंद्र या सांखर (Graree या Crackings) कर उसके झिल्टिज पदार्थ (1embranous matters) कहलाता है। फिर यह सांखरी जलमे सिद्ध करने पर अलग कर लेनेसे वीके समान तथा दानेदार वमा पाई, नग्म हो जाता है। तब वह पालतू कुत्ते, चिडिए और जाती है । इस क्लेमें किसी तरहका स्वाद नहीं पाया। दूसरे दूसरे पशुओंको जिलाया जाता है।