पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६८२

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वनरामी-नारात ६९७ उहान उत्तर दिया--क्षय से पैदा हुई है। शिष्योंने फिर शायाफे लोगोंने वलरामफे मृत्युस्थान पर एक छोरा सा पूछा-'क्षय से किस तरह पैदा हुइ १ घे विशेषरूपस, घर वना रखा है। लोग सन्ध्या समय यहाँ पर दीप बहन लगा-मादिकालम कुछ भी नहीं था, मैंने अपना दिखाते हैं और प्रणाम करते हैं। द्वितीय शापाक लोग शरीर 'क्षय र अर्थात् अपने शरीरस इस पृथ्याका बलरामको ऐमो साझा न समझ कर उनक मृत्यु सृष्टि की । इसानिय इमश नाम क्षिति है। पय, शिति | स्थानका कोह गीरप नहीं करते। तथा क्षेत्र एक ही पदाथ है । लोग मुझे नीच हाडी जाति घलयत् (स०नि०) चल अस्पर्थे मतुप मस्य य । यल समझते हैं रितु तुम लोग जो हाडी जाति सान देवते युक्, परवान् । हो में यह हाडा नहा हूँ। मैं कृतदार गढनदार घलयत्ता (स० स्रो०) पलवतो भाव तल टाप । अतिशय हाडीह, अपात् जो व्यक्ति घर तैयार करते हैं, वे घरामी यल, शक्ति, सामथ्र्य । पहनाते हैं, उसी तरह में हारको सृष्टि करने के कारण घलयनूर-माद्वाज प्रेसिडेग्सोफे दक्षिण और साफ्ट हाडा पहलाता है। जिलेमें यिधपुरम् तालुकके अतर्गत एक ममृद्धिशाली एकदिन घलराम नदोर्म स्नान करने गये। चहा उहोने गण्डग्रास गएडप्राम। यह मना० ११५५ उ० तपा देशा० ७६ यह अ.. " देखा- एक माह्मण वहा पितृतर्पण कर रहे हैं। ये ४८ पू० पीचेरोसे दाद कोम दक्षिण पश्चिम भर भी उन लोगांशी तरह नदी किनारे जल उठालन लगे। स्थित है। यहा स्थानीय उपजका खरोद विमोके लिये उनकी अगम गा देख कर एक ब्राह्मणने उनस पूछा- एक बडी हाट लगनो है। यलराम ! तुम यह पया कर रहे हो ? इस पर वररामो पलपला ( म० पु०) उमग, मावेश । उत्तर दिया-मैं कक खेतमै नल परा रहा। इस पल रनम्न (स.पु.) यल भोर यतनाशक इन्द्र । पर ब्राह्मण देवता कहने लगे-यही शाक्का खेत कहा) यलयन्ननिस्वन ( स० पु.) लचौ निस्दयति सूद-न्यु। ११ बलरामने जबाव दिया--आप लोग जो पितरोंका घलयनहन्ता । तर्पण करते हैं, वे सब यहा कहा ? नव नदीका जल पलसूदन (स.पु०) घल सूदयति सूद न्यु । । नदाम ही निप करनेम पितृदेवको प्राप्त होता है, तव | वलस्न-वस्वह प्रेसिडेग्सोक महिकाम्या विभागातर्गत नदारितारे नल सिचन करनेसे शात्रके खेत में क्यों। पकक्ष सामन्तराज्य । यहाक सरदार ठाकुर मानसिहजी नहीं पहुचेगा? राठोरघशीय राजपूत हैं। अहे दत्तक लेनका मधिकार होलिशाफे समय बलराम म्बय होलिकामच पर जा नहा है, किन्तु राज नियमसे स्पेष्ट पुन ही रामतपतफ बैठते थे और शिष्यगण भोर तथा पुष्पादिसे उनका मधिकारोदात है। राजस्य ७२४०) २० है, जिसमें यापिक पूजा करते थे। इस सम्प्रदायके अनुयायियों में जातिविचार नहीं। २८०) रुपया कर स्वरूप पोदाफ गायघाडको दना होता है। है। इनक मधिकांश गृहस्थ है तथा कोई कार उदासी हैं। उदासांपाद महों परत मथच इन्द्रिय दोपर्म भी । परन्तु ( स.पु.) यल नाम भसुरको सहार करने लित नहा दात। गृहम लोग अपने अपने कुलाचारा पालेद्र। नुसार विवाद सरकार सम्पन करते हैं। यिलाका (स.पु०) बगला। । इनका कोई माम्प्रदायिक प्रथ नही है। ये लोग पलाट (स.पु० ) पलेन मटयत प्राप्यत इति भर घन । यिप्रदको मया भी नहो परन, गुरु नहो कद्दन पर भी मुद्ग, मूगा होता है। ग्रह मालोनी IIRE एक स्त्रीया। पहराम पलारानि (स.पु.) बलस्य मातिः। द्र। उस पार करते थे। इसलिये उसने पुउदित पलाइक (स.पु.) यलेन हायते इति घर हायकुन्, गुरुका कार्य किया । यद्वा पारोणा याहरः पादरादित्यान् साधुः। १ मेघ, पररामी सम्प्रदाय दो शाखाओं में यिमता है। एक बादल । २ मुस्ता, मोथा। ३ पर्यंत। ४ एक दैत्या 10 x 175