पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६६५

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वर्ण है। भवानीकी सेविका यक्षागनागण इस रमका सेवन नाभि हा वर्षके अधिपति थे नधापि उनके गांव नगन छाती है, इसीलिये उनम गरीर अत्यन्त सुगन्यमय होते नाम रहा यह वर्ष प्रसिद्ध है। नाभिक पुत्र नपस थे। है। उनके अदाका अगगग लगा कर वायु चारो और ऋपमके द्वारा दी प्रसिद्ध सरतमा जन्म Tari दश योजन नक जीव जन्तुओं को आमोदित भरतक. नागनुसार ही इस वर्ष का नाम भारतवर्ष हुशा। करना है। भरतमपिता पमने सजनाम नामक एक विशिष्ट प्रदेश ___ जम्वृसके फल हाथो वरावर रथल होने हैं। उनके पर अधिकार कर लिया था, इसीलिये उनके अधिन घोज बहुत ही छोटे होने है। ये म्ब फल बहुत ही ऊचे ममी वर्ष बजनाम नामसे विनयात थे। पाछे उगवं. पुत्र ने गिरने के सारण फट जाति है, उस समय उनके रममे भरत गमा हुए, उन्ही के नामसे यह वर्ष विशन है। अम्वृ नदी नामक एज नदी निकलनी है। वहा नदो मेरु इस भारतवर्ष में यातसो नदियां तथा पर्वत श्रेणी मन्दर पर्वतकी शिवरसे होती हुई अयुत योजन चल है। पर्वतोंक मध्य मलय, मगलप्रस्थ, मैना, विकट, कर भूमण्डल पर आता है। यह जिम स्थान पर गिग्नी ऋषम, कृटक, कोण्व, मध, देवगिरि, ऋष्यमूर, श्रीगेट, है, उग्म शानमे अपना दक्षिण ओर मारे इन्टात चर्य मे कट, महेन्द्र, वाग्विार, विन्ध्य, शुक्तिमान, गिरि, प्रवाहित होती है। इस नदानी मिट्टी उसके नलले अनु- परिपान, कोण, चिलट, गोवईन, रैवतक, कान, गर विड हो कर वायु तथा सर्वाक सयोगले विशेष पक्यता मोकामुम नया इन्द्रनील तथा कामगिरि ये स्तिने ही पा कर जान्नद अर्याल, सुवर्ण परिणत हो जाती है। पर्वत अत्यन्त प्रमिल है। इन भदावे और मोनी यह मुवर्ण हा अमर तथा अमरकामिनियोके अल पर्वत हैं, जिनकी गिनतो नहीं हो पाती। बार हैं। ____उक्त पर्वताग्ने कितनो हो नदियां निकल कर भारत- सुपार्श्व पर्वतके पास महा कदम्ब नामक एक वृक्ष वर्षकी भूमिको सोच रही है, उन सदोंकी लंग्या करना है। उसले मोडरेमे पच व्याम परिमित पांच मधु धाराए भी असम्भव है। इन सत्र नदनदियोंके जलने भारतको निकलती हैं एवं पत शिवर पर गिर कर पश्विमस्य सन्तान पानावगाहन समाधान करती है। उनमें चन्द्र- इलायतवर्णको अपनी सुगन्ध आमोदिन करती है। वगा, ताम्रपर्णी, अबटोदा, कृतमाला, बैहायनी, कावेरी, जो लोग इस पर्वतकी मधुधाराका सेवन करते है, उनके वेण्या, पयस्विनी, शर्करावर्त्ता, दुहभद्रा, कणया, मोन- मुनक हवामे चारों ओरका त योजनण्यापी भूभाग रथी, गोदावरी, निविन्ध्या, पयोणी, तापी, यश. मुरमा, सुवासित होता है। नर्मदा, चर्मण्वनी, अन्यगद (ब्रह्मपुत्र), माननद. मा. कुमुद पर्वत पर शतवला नामक एक स्टवृक्ष है। । नदी, वेदम्मृति, लिसोमा, फौजियो, मन्दाकिनी, यमुना, उसके मकन्यभागले दधि, दुग्ध, घृत, गुड, अन्न प्रभृनि सरस्वता, दृढतो, गोमती, सरय, बोधरती, पष्टवती, तथा वसन, भूपण, शयन, आसनादि अभीप्मित वस्तु सप्तवती, नुपमा, शतद्र, चन्द्रभागा, मल्धा , वितस्ता, दोहनकारी नद इम पर्वतके अग्रभागमे होता हुभा उत्तर- असिनो तया रिपाश आदि महानदियां हैं। उक्त महा. की ओर चल कर इलावृतवासियोका बहुत ही उपकार नदियोंकि नाम उच्चारण करनेसे ही लोग पवित हो जाते करता है। वहां के अधिवासी इन सब सामग्रियोका है। परन्तु भारतवपीय प्रजागण इनके जलमे स्नान देवन करने के कारण कमी भी अङ्गवैफ्टव्य, फलान्ति, करते है। मनुष्य इस वर्ण (देन में जन्म ले कर अपने घम, जरा, रोग, अपमृत्यु, गीत आदि कुछ भी उपसर्ग ' सात्विक रानसिक तथा तामसिक झर्ग द्वारा अपने दिथ्य, मोग नहीं करते। इसलिये इस वर्णके अधिवासी मा- . मानुषो तथा नारकी गतिका निर्माण कर लेते हैं। जिन जन्म देवल सुखका ही उपभोग करते हैं। वोंकी जिस तरह मोक्ष प्राप्त करने की विधि निर्दिए है अग्नीध्रक जिन : पुत्रों नामसे : वर्षों का नाम । उसी विधिका अनुकरण करनेने इस वर्ष के लोग मोक्षको करण हुआ है, उन पुतोंम नाभि मवसे दडे थे। यद्यपि । प्राप्त होते हैं। यावतीय वर्षों के मध्य भारतवर्ष को हो