पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६३४

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वणसङ्करिक-वर्णस्वरोदय ६४६ पाण्डमोपाक निपात घेदहासे आदिण्डिा गौर चण्डाल इस स्वरोदयसे लाभालाभ, सुम्ब दुच, जीरा मरण, पत्तक पुसी स्त्राके गममे सोपाय नाति उत्पन्न | जय पराजय और सरिध ये सब विषय जाने जात है। होता है। यह मोपा जाति जल्लादश काम करक जोरका मातृका वर्णन हो धरावर परिणाम है रितु मातृका चलाती है। चण्डालसे निपादागमसम्मत सताना वर्ण विना स्वरफ उच्चारण करना असम्भव है । सुतरा माम अत्यावमायी (गड्डा पुत्र) है । मानब इन | यह चराचर निखिल जगत् स्वरस उत्पन हुआ, इस पी उपजाविका है। यह सब वणमडूर जाति निन्दनीय | कारण स्वरोदय द्वारा ही सभा जाना जा सकता है। और नियमकारा । (मनु १० 4 और कुल्लुकभट्ट) अकारादि पाच स्पर ब्रह्मादि पाव देवता माने गये घणसरेक (० त्रि०) वणमडुर सम्बन्धीय। है। जैसे-अकारमें ब्रह्मा इकार विष्णु उकारमें रुद, घासमारताय ( स० पु०) वर्णमाला। एकारमें पवन, ओंकारमें मदाशिव हैं। इस प्रकार उन पणमि (१० पु०) वृणोति म्यमिति रम्भापरणे ( सान अकारादि पाव स्थराम नित्त प्रतिष्ठा विद्या, शान्ति सिग्न से पयासानि । उण ४११०७) इति असि धातोर्नुक और शाक्यतोता पे पार कला तथा इच्छा प्रशा, प्रभा, च। नल। श्रद्धा और मया पे पाच शक्ति निर्दिए हैं। यसूचा (स. स्त्री०) छन्दशास्त्र या पिगल में एक क्रिया। इन पक्ष स्थरक अकारादि प्रमस चतुरस्र, अद्ध इसक द्वारा वर्णरत्तोंका संस्थाकी शुद्धता, उनके भेदोम | चद्र विगोण, पड विद्युन, गोलाकार और शुद्ध गोला आदि अति लघु और आदि मत गुरुको माया जानी कार घे पान चक : पृथियो, जल तेज, वायु आकाश पे जाता है। जितने वर्षों को सुगा देखना हो उतने | पञ्चभूत गध रस रूप श द पे विषयपञ्चक घों की सण्या तक फ्रमसे २, ४ ८ इत्यादि भर्थात् उत्त Tथा सम्मान ३ मादन शोषण तापा और स्तम्भन पे रोत्तर दून अडठिखे। इस क्रिया अ तम जो सपा | पाच पञ्चाणक घाणरूपम निणीत है। मारेगा वह नभेदको साण्या होगी। तक अङ्कम । कागद पञ्चपर आठ भागामें विभक है। यश या मोर जो अट होगा, उनो आदि घु और अरघु | मात्रा पर्ण प्र. जाय राशि नक्ष पण्ड और पोग तथा भागुिरु और गुरु होंगे । फिर उस भा। स्यर। पाइ आर अ अनम तोमरे गाठन जो अङ्क होगा जय नावार वय न् ह ना मात्रमाा यन्त्र उता हा आ द अमरघु अर आदि अन गुरुदत्त हागे।। माधन और अन्य न्य अधे मुवक पकान हये। यर्णम्मान (१००) वर्ण शम आदिका उच्च रण यणपरक प्रल रहनसे शुभ शुभ कम करे। पर्ण स्थान। स्थर ममा ममय विशषत युवालम स दाद है। पर्ण घरोदग (स० पु०) न्योतिपोत शुभाशुभ UTT प्रठस्वरक चान रहनम मरण मेहन, स्तम्मन, प्रकार या निययिशेर। नरपतिजयवर्या स्वरोद घृत ब्रह्मशमला स्थरकी विद्ध पण 3 रन की रण विवाद युद्ध, प्रदद भोर सण्या सोलह पताइ । इन मोलह स्यशेम अस्थर सहार प सब कार्य कराध्य हैं। दो है-7, म पर दो स्वर छाड करना होगा। जीवम्बरफे वग्यान रहने पर अलङ्कर, भूषण, सोलह स्वरोसे चार घरलाय हैं जैसे-रल विद्यारम विवाह यात्रा और पानादि कार्य करे। ल अनएर चार स्थर भो स्थाज्य हैं। राशिस्वरय रलवान् गहनमे प्रामाद पळ उद्यान, ___ अपशिष्ट दश ग्घरों में दो दो करके पाच युग्म होंगे। यतालापन राजसिहामन पर अभिषेक मोर दाक्षा पाव युग्मोक आदि पारस्थर है--म, उ, ५, भो। कार्य करे। पेमप हुम्य स्वगर्म गिन जात है। अतः पे पाची स्पर नपनम्बरके पलान हो से शास्तिक, पौष्टिक, गृादि ही स्वरोदयमें अपलम्बनाय है। | यश, चोजयपन वियाह और यात्रा काय विधेष है। Vol 1 163