पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६३२

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वर्णले खका-वणसङ्कर रणलेविका ( सत्रा०) यणलेखा म्वाथै कन्, रापि अत यणस हार (म० पु.) प्रतिमुख सन्धिके तेरह अगोमेस इत्य। वही। एक, ग्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चारों वर्णों यणम् ( म०नि०) वर्णोऽस्-यस्य वण ( रसादिभ्यश्च ।। के लोगांका एक स्थान पर सम्मेलन। अभिनय पा ५२।१५) इति मतुप मम्म व । वधिशिए। गुप्ताचार्यका मत है, नाटकके भिन्न भिन्न पात्रोंके पर पणवती (१० वी०) हरिदा हला। स्थान पर सम्मेलनको घर्णसंहार रहना चाहिए । वणवर्ति (म० स्त्री०) रेजनो, कलम । वर्णस (स.त्रि०) वर्णयुल। पणपत्ति का (१० सी) वर्णवर्सि देखो। वणसङ्कर ( स० पु. ) वर्णतो ब्राह्मणादिभ्य वर्णाना या यावादी ( स० पु०) प्रशसाहारो बडाइ करनेवाला1 सङ्घरो मिश्रण यत्र । मिश्रित जाति, घ्राह्मणादि वणके वर्णविरार (सा.पु.) निकता अनुसार शब्दोम एकअनुलोम या मतियोमसे उत्पन जाति । वाका विगह कर दुसरा वण हा जाना । जैसे-हल्दो ____गाताम लिखा है, कि जब अगका अत्य त प्रादु शादम हरिद्रा' क 'र' का ठ' हो गया है । 'द्वादशक | भार होता है, तब कुठ लनाये दूपित होतो हैं । जब द का वारह' में शे गया है। घे दूपित होती है, तव अहीसे वर्णसङ्कर जातिश उत्पत्ति वर्णविवार (स० पु०) आधुनिक प्यारणा यह अश | होती है । वर्णसङ्कर होनेसे दय और पितृकाय लोप निसम यणाक भाकार, उचारण और सन्धि मादिक / सथा कुलधर्म और जातिधमका नाश होता है। उस नियमोंका वणनगे। प्राचीन वेदाङ्गमं यह विषय देशर्म सर्वोको नरक नाना पगता है। frक्षा पहाता था और व्याकरणसे बिल्कुल म्यतन (भगवद्गीता १ ० ) माना जाता था। ब्राह्मण, क्षत्रिय वैश्य और शुद्र यदा चार वर्ण है। विषय (T• पु०) निरुत्त के अनुसार पदों में यों | इनके अतिरिक्त और शेइ वर्ण नही है। उक्त चार को उट फेर हो जाना । जैसे-हिस' शब्दसे बने। यों के अतिरिक जो सव मातिया दखनेमें माती हैं. २ 'सिहदमें हुआ है। ही सङ्कर जाति हैं। इन चार वणा ही से सङ्कर जाति यणविलाशिनी ( स० स्त्री० ) हरिद्रा, हल्दी । की उत्पत्ति हुई है। शास्त्रम लिखा है कि रियोंकी वर्णयिनोडा ( स० पु० ) वणान् पिलायतीति विगेडि, मति सामान्य पुसगसे यत्नपूर्वक बचाना चाहिये , ण्युल । १श्लोस्तन, यह जो दूमरेका लिखा विषय नही तो यह स्त्री पिता और स्वामी दोनोंक फुलमं काली चारा करके उने अपना बताता है । २ मपिचौर, लगाती है। पत्नाको सातोभाचर्म रक्षा करना समो धिया चोर। घोस श्रेष्ठ है। क्या दुर्घल, फ्या सयर, फ्या अध, वणन (म० हो०) वह पद्य मिसय चरणोंमें वर्णोका। क्या खञ्ज ममीको अपनी गपनी भार्याको रक्षा करना रख्या और लघु गुरुक क्रमों में समानता दो। चाहिये । एक भार्याको रक्षा करने हीसे कुल और धर्म घणयस्थिति (स० स्रो०) वर्णस्य व्यवस्थितिः। चातु, पवित्र होता है। परिभाग। ___ भार्याफे सुरक्षिता नहा होनेस उनम व्यभिचार फैल पशिक्षा (स. स्त्री० ) वर्णाम्याम । जाता है। उसीसे जो सतान पैदा होती है । यह वर्ण वर्णभ्रष्ठ ( स० पु०) वर्णेपु श्रेष्ठः। चार वर्णो मेंसे श्रेष्ठ सङ्कर कहलाता है। घणसङ्कर होनेसे धर्म सौर पुर ब्राह्मण नए हो जाता है। धर्म और कुठफे नए होस ऐहिक वर्णसघाट (स.पु.), गणमाला। और पारत्रिक क्सिी मा प्रकारक महलको मम्मारना यणसंघात (म.पु.) वर्ण ममूह । मद्दों रहती । अतः जिससे वर्णसङ्करत्व न हो सय यणसयोग ( स० पु०) सपणे वियाह । तथा वर्णसङ्करका मूल कारण जो खो जाति है, उसकी यससग (स.पु०) मसवण पियाह । यत्नपूर्वक रक्षा करनी होगी। यही माखका उपदेश है।