पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६१५

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६२६ वरुण वाद उन्हे राहित नामक एक पुत्र उत्पन्न हुया । यथा- हुआ। विश्वामित्र होता, जमदग्नि अध्ययु, वशिष्ट ब्रह्मा समय वरुणने आ कर रानासे पुन मागा। राजा अनुरोध, और अयास्य उद्गाता हुए। शुनःशेफने जय देवा, कि वे विनय तथा नाना आपत्ति दिखलाने. हुप पुत्रकी प्राण-1 पशुरुपमे यन्त्रमें निहत होंगे, तब उन्होंने यथाक्रम प्रजापति रक्षाका उपाय दृढ़ने लगे। इस प्रकार टालमटोल करते | (ऋक् १।२४।१ ), अग्नि ( ऋक् ॥२४।२). सविता (ऋक् करते जब रोहितने दश वर्षमें कदम बढ़ाया, तव वरुण १॥२४॥३५) और इसके बाद वरुण (क्श २४।६-१५, देवने आ कर कहा, 'आपका पुत्र यशीय पशु होनेके योग्य | १।२५।१-२१) की स्तुति को यो। हा गया, अपना वचन पूरा काजिये।' राजाने उन्हें समा ___ देवीभागवतके म स्कन्धक २४-१७ अध्याय, इस वर्तनके वाद नरमेधयणको कामना जताते हुए विदा। घटनाका विस्तृत उल्लेत्र है। किया और पुत्रको युला कर कहा, 'हे प्रिय ! जिनने तुमको शुनःशेफ भौर विश्वामित्र मन्दमे दम्वा । मुझे दिया है, मैं यहीय पशरुपमे तुम्हें मार कर उनके नैत्तिरीय प्रहमणके १२११४१८, १।४।१०।६ और शतपथ हाथ समर्पण करू गा। पिताका ऐसा वचन सुन फर पुत्र ब्राह्मणके १२१८।३।१० और १३०४५ स्थलमें वरुणदेव- नही नहीं कहता हुआ तोर धनुप ले जंगलको भाग गया। की पूजा लिम्मी है। यथासमय वरुणदेव राजाले निकट भाये और 'महाराज! इम उपाण्यानसे वरुण प्रजाप्रद, प्रजापालक और यज्ञ लीजिये वह कर खडे हो गये । राजाने पुनके जगल प्रज्ञानंहारक देवता ही समझे जाने है। अतएव वे सृष्टि, चले जानेका सारा हाल कह सुनाया। वरुणके शापसे | स्थिति और लयक के परम पुरुप हे। वे गजाओके राजा जलोटरी रोगसे आक्रान्त हो वडे चिन्तित हो गये। राज्यमे वास करते है। पिताके इस रोगका हाल जब रोहितको मालूम हुआ, ____ तदेय राजा वरुणस्तथाह स त्वायमस्वत् स उपेदमेहि ", तब वह जट्सलको छोड कर घर आये। यहा ब्राह्मणरुपमै (भय० ३।४१५) इन्द्रने अपना दशन दे कर उनसे कहा, 'तुम भारी मूर्ख हो, | फिर मनुसंहितामे इन्हे राजाओंका दण्डदाता कहा राजससारकी दुःखपराकाष्टाका भोग क्यों करना चाहते | है। (मनु० ६५) हो। मै सलाह देता है, कि तुम हमेशा चाहरमे घुमो वेदमे वरुणको देवताओंमें श्रेष्ठ बतलाया है। वे जल- करो, भविष्यमे तुम्हारा क्ल्याण होगा।' देवता है। जब सभी अन्धकारमे ढके और प्रलुप्तको ___इस प्रकार इन्द्र ब्राह्मणके रूपमें लगातार छः वर्ष तरह धे, तब भगवानको इच्छाले महाभूनादिका विकाश आये और रोहितको युनियुक्त वचनोंसे निषेध पर गये। हुआ । आदिमें अपकी सृष्टि हुई अर्थात् जल ही ईश्वरत्व- छठे वर्गके अन्तमें गजपुनने सुखवमके पुत्र अजीगरी का आदि विकाश है, अतएव जलाधिपतिको ईश्वर और ऋषिके आश्रममे आ कर कहा, 'हे,अपिष्ठ ! मैं आपको देवताओंमें श्रेष्ठ मानना कोई अत्युक्ति न होगी। {: सौ गाय प्रदान करगा। आप अपने तीन पुलोमसे एक | महाभारतके उद्योग और शल्यपर्वमे वे उदरुपनिरूप- पुत्र दीजिये जो मुझे पशुरूपमें यामें बलि होनेसे यचावे।' में वर्णित हुए हैं। उन्होंने इस आधिपत्यको नर्वलोक ऋपिने अपने मध्यम पुत्र शुनःशेफको दे दिया। राज | पितामहसे पाया था। "अपां राज्ये सुराणाञ्च विदधे कुमार ऋषिको सौ गाय दे कर ब्राह्मणकुमार शुनःशेफको वरुणं प्रभुम् ।" (भारत स्त्रीपर्व ) साथ ले पिताले निकट आरे और बोले, 'इस बालकको भागवतमें वरुणदेव काश्यपपत्नी अदिति के पुत्ररूपमे ले कर मुझे छुटकारा दीजिये। इसके बाद राजाने जय कोर्शित हुए हैं। यज्ञ ठाना, तब वरुणने स्वयं राजसूययज्ञका अभिषेचनीय हरिवंशके ३य अध्यायमें वरुणादि देवताओंकी फर दिया था। उत्पत्तिके सम्बन्धमें एक एक कर लिखा है। फिर ऋक्- वरुणने कहा-क्षविय पशु होनेकी अपेक्षा ब्राह्मणका' संहिताके १०७२।८ मन्त्रमें अदितिके आठ पुत्रोंको जन्म. हो युझमें पशु होना अच्छा है । इतना कह कर यन आरम्भ कथा है । मदिति अपने माठ पुत्रोंमेसे मार्तण्डको फेक