पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/५९४

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परपोत-वरयावा परांत (स० पु०) प्रेष्ठ माक। है। यह काम घरकी स्त्रिया दो परती हैं। घरके विघ्न परप्र- ( स० लि.) यर प्रदानीति दाक। एयरदाता, नागके लिये उसके चन्दनाडित ललाटम 'दुर्गा वा हरि' घरदेनेवाला। २प्रमन्ना आदि राम लिख देती हैं। यात्राकालमें एक दघि मधु घरमा ( स० स्रो०) गामुदा। लाडित सफलपटव पूर्णकुम्म घरके सामने रखा जाता घरमान ( स० को०) घरम्य प्रदान । परदान, मनोरय है। पर उसकी मोर देख पर 'दुर्गा गणेश माधर' आदि पूर्ण करना कोई फल या सिद्धि देना। भगवत् नाम लेता हुआ यात्रा करता है। इस समय परप्रभ ( स० वि०) १ अनि प्रमारिशिप यूर चमक गुरु पुरे दित अथवा कोई दूसरे शास्त्रश व ह्मण धेनुत्म दमक बाला। (पु.)२ वोधिमत्स्यभेद । प्रयुक्ता' मादि यात्रामङ्गल मन्त्र पाठ करते हैं। पर परप्रस्थान (१० जी०) घरयात्रा। पाना करके पहले देव. ब्राह्मण और पितामाता आदि वरफल म०पु० ) यर फ्लपम्य । १ नारिकेल घम, अयाप घेष्ठ व्यक्तियोंको प्रणाम करता है। ये मय मारियरका पेड । (का० ) २ नारिपेठ, नारियल। उस आशीर्वाद करते हैं। इस समय एड्सको शनि मी ३ श्रेष्ठल। होती है। कही कही दश पांव स्त्रिया मिल कर माङ्ग घरम (म० पु०) धर्म देखो। लिक सहीत गाता है। पूर्णकुम्मी दगल में एक वरण परमेल्ही (दि० पु०) एक प्रकारका गल चादन जो मलय | डाला रहता है। इस वरणहाले स्वस्तिक सिदूर, दोपसे आता है। धाप दर्श, प्रदीप आदि अनेक मालिक द्रव्य सजे परयात्रा (स. स्त्रो०) परस्य पावा। गिराह करनेके | रहते हैं। पर जब यात्रा करता है तब कोई स्त्री धसे लिये वरका याके घर जाना। पृथिवीके पा सम्म उसका हाथ धो देती है। पया धमम्य ममो सम्प्रदायकी ममो जाति के मध्य देशभेदको प्रथाके अनुसार घर वाथे होधर्म छुरी, घरयात्रा प्रचलित है। परतु विवाह पद्धति समो जाति कटारी, सरीता, दपणादि ले कर घरमे निकरता है। को समान नहीं है। याधुनिक शिक्षा और सभ्यता | इस समय वरके साथ उसके शाति कुटुम्ब भी चल्ने विप्तारके साथ मा प्राचीन उत्मय तथा हम लोगोंगे | हैं। अवस्थाभेदसे घर गाडी नाव, पालकी या घोहे रोति-नीतिम बहुत कुछ हेर फेर हो गया है। यह| पर चढ़ कर जाता है। जो यूष धनी हैं वह पथका सुगन परिवर्तन केवर उशमम्प्रदायके भीतर ही हुआ है सो| | और सुयोग होनेसे हाथो, चतुहाल या मूल्यवान् अश्य नहीं, उच्च म प्रदायका यथासम्म बादश लेकर घोरे यान पर यात्रा करते हैं। घोरे निम्न मप्रदायमें भी हो गया है। फिर किसो राजा जमी दारोंका तो पूछन हा क्या है, जो धनी जातिने इन सब कामों में अपन अपने धर्मोज्ज्वल फमको और शहरवासी हैं उनको वारात सचमुच दखने लायक छोग है ऐसा भी नही कह माते। होती है। जिसके धा है ये चाहे दुसरे कामों में भले ही यात्रा कररीक पहले स्थानुमार घरको सजाया व न करे, पर यरयाना घरकी गृहिणो या अन्यान्य जाता है। दोहकोइ घर तो शिरीर कुण्डल कादि सम्बचियो से वाध्य हो पर उहे सुले हाथमे सर्च मण्डित हो पाता करते हैं। फिर किमीको साधारण करना पडता है। नेत, पोत, नोल लोहित पा मिश्रपर्ण धोती और अगरगा पहन कर जाना पड़ता है। यह मद फे चद्रातपराजित रौप्य या पित्तल दण्डमण्डित अनेक मयको अरथा पर निर्भर करता है, पर धनीकी तो पादक वादित झालर मलमलाएत सुन्दर चतुदों की बाप्त हो नद्दा, गरोप परयातामें कुछ घूमधाम अवश्य | लोहित मखमल मण्डित घेदिको पर चढ़ कर गिरोट करता है, चाहे उसे ऋण मो पो न हो जाय। पुएडल-कञ्चुक पदन पर विसी राजपुत्र वा नयाय पुर घर उपचासी रहकर यथासमय पाना करता है। की तरह पर चलते हैं। दोनो बगल दो सीवेशधारी यात्रा करनेमे पहले घरफेरलाटम चन्दन लगाया जाता। चालक चामरसे उसे हया करते हैं। अन्य य परयात्रि Vol xx 152