पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/५४६

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वरसकामा-वत्समतक यत्सामा (स. स्त्री०) वत्स कामयते इति पम् भव। इसके निकट कोई भी पक्ष वढा नहीं पाता । यह वृक्ष राप। १ सामिलापिणी गाय । पर्याप-यत्सला।। शोघ कर औपर्धाम दिया जाता है। २ पुत्रादिकामा स्त्री यह नी जिम पुत्रको कामना हो । शोधनप्रणागे-पडक छोटे छोटे टुकड़े काट कर पत्सगुरू (स.पु.) पुत्रका भाचार्य। तीन दिन तर गोमुत्रम भिगोते हैं । पीछे छालको अलग पत्मघोष (स० पु. ) पक देशका नाम जो नक्षत्रोंके प्रथम परफे लाल सरसोंके तेलमें भिगोए हुए कपडे में पोटली वर्गमें। बांध कर रखते है। घस्सत त्री (स० स्त्री०) यत्सम्य तत्रो। वत्सय घन गुण-यह विष प्राणनाक, व्यवाया और विकाशि रज. यह रस्सी पिसे वछहा वाया जाता है। गुणयुत, अग्निगुणवहुल, घायु और कफ्नार, योग यत्मतर (स० पु० ) प्राप्तदमनकाल गोशिशु जयान पड़ता चाहो तथा मत्तताजन होता है। किन्तु उपयुक्त मावा जो जोता न गया हो, दोहान । पयाय-दम्य, दुर्दात, और युक्ति के साथ सेवन करनेसे यह प्राणरक्षाका कारण, गहि । रमायन, योगवाहो, वातघ्न, फापहारप और त्रिदोष ना होता है। इसके योगसे मृत्युञ्जयरस, आनन्द परसतरी (स. स्त्री०) यत्सतर औप। यह वडिपा को तीन पकी हो, क्लोर। गृपोरमगमें चार परमतरीके भैरयरस, पचवपररस आदि का प्रसिद्ध अपधे बनती है। साथ एक य प उत्सग करनेका विधान है। इस यत्स तरीको उत्तम रूपसे मल कारादि द्वारा मजा दना होता । २ सलाहियर्णित राजभेद । (सह्या० २०५७) है। तीन वयम कमका यत्मतरी नहीं होती। यसप (म0पु0) १ यत्सपालक । २ धीहत्या । ३ वानय भेद । ( अ ६११) परसदन्त (स० पु. ) बछडे के दातके समाा तीरभेद ।। पत्मपति ( स० पु. ) राजभेद, यत्सरान । (पासवदत्ता) परसदामन-भरसेनपशीय एक राजा। इनफे पिताका वत्सपत्तन (स.पी.) घत्मराजस्य पत्तन| भारतवयक नाम देनराज और माताका याशिका देवी था। उत्तरकादेश, कानाम्यो। पत्सनपात् (स.पु.) पम् का यशधर । पत्सपाल (स० पु०) वत्सान् पाल यतोति घरस पालि (शतपपत्रा० १४१५।५।२२) | अण। भाज्या और वरदय । गृन्दायनमे उन्होन गो यत्मनाम (स० पु.) यस्मान् नभ्यति दिनस्तीति नभ यत्स पारन पिया था इसलिये पे वत्सपाट कहलाये। दिमाया (कमायण ।पा शरा) त्यण । विपक्ष (वि.)२ घत्सपारक, वथा पालनवाला। विशेष मोडा जहर ( Aconitum terox)। इसे दम्बा (सरय ६५२४) बछनाग मोर तामिमें सनया कहते हैं। सस्रत | यत्समवेतम् (स० वि०) पूजा पाठ प्रश्नमना । पर्याय-अमृत विथ उन मौरख गरल, मारण, नाग, यत्समा( स. पु०) राजभेद, भलन्दन पुन। इनश स्तोकक, नाणारक, स्थायरादि । गुण-- मतिमधुर, उण,) दुमरा नाम यत्समीति था । पेऋग्वेदक ६८ और यात क्फ, कण्ठपोटा बौर मनिपातनातक, पित्त तथा १०४५ ४६ सूतक मात्रा ऋषि है। सतापपद्धक। यसपाति ( स० पु.) १ यत्मप्रात, रानभेद । (स्त्री०) मापीघा हिमार यफ कम टप्दे मागम होता है। यासस्य प्रोति।।२ वरसफ पनि प्राति । रमी र विशेषत नेपालमे भाता है। इस पत्ते यत्माया (स. खो०) पद्धयरमा। यस्मासी हामी। ममाटूके पत्तों समा होते हैं। विप गहमें होता है। वरमालक (स.पु.) यमुश्यक मा। मायप्रकाश मिसा है, कि यत्सनामाण्य विधामापति यत्ममन्ना (स.पु०) यत्सम्य मम । हामृग । पद गोपसको तरक्षा और इस पते समाल्य पत्तो । गायका उहा गाता है इसीम इमो पासमा इन क ममाम होते हैं। जहा यत्माम विषाा पक्ष रहना है ।