पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/५४४

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वडवामुख-वएट २ स्टाके दक्षिण पृथ्वीके चतुर्भाप स्थविशेष पणिक क्रिया (स० स्रो०) पणिहा क्रिया, पणिों का काम (सिदान्तनि० ) ३ वरिवपिपिशेष । (रसेन्द्रसारस ) (हत्त्स० ६६२०) घडामुख (स.पु.) वडयायाः घोटषया मुखमाश्रयत्वे वणिक पथ (स० पु०) वणिजाप था: । पाणिज्य, तिनारत। नास्त्यस्य अशे आदित्यादच् । १ वहमान ।२ महादेर यणित ( स० क्ली०) यणिका काम, व्यरमाय । का मुख । ३ महादेवका एक नाम । (मारत १५११७५५) | वणिकसार्थ (स.पु.) वणिक्ममूह । ४ कूमकी दक्षिण कुक्षिा एक जनपद । ५ वरिकोपध | वणिगजन (स० पु०) वणिक जाति । शिप । (रसन्द्रसारस.) यणिग्यधु (स.पु.) नीलिवाय, नोलका पौधा । ययावत (म० की०) वडामुन बहमानल। पणिग वह ( स० पु०) रहतीति वह अच पणिजा यह । पडपात ( स० पु.) घडवाया घाटकरूपाया त्यष्ट-1 उष्ट, अट सुनाया सज्ञापा सुत । मश्विनीकुमार । इस अर्थम यह यणिग भाय (स.पु०) वणिजो भार , याणिज्य, निझारत । शद द्विवचनात है,दायश्विनीकुमार। पणिगवृत्ति (स ० ग्रो०) पणिजा वृति । चणिकोंकी यहवाहन (स.पू.)ववादाम्या हृत ।पद्रह प्रकार | वृत्ति वाणिज्य । क दासोमस एक । वहा शब्दस गृ दासीका वोध होता णिड मार्ग (सा० पु.) वणिना मार्ग। वाणिज्य, है। जो लोममें पड इस दासीसे विवाह करक उसके । विपणि । घर रहता है, वही यहवाहत कहलाता है । (सितारा) वणिज (स.पु.) पणते प्रयविक्रपाविना पपहर वधिन् (स.नि.) घडवाजात या तत्सम्मवीय। तीति पण (पराश्च य । उप २१३०) इति इजि वडा(स.ना.)घड ग राए । वटक, वडा । | पस्य च च । १ प्राविक्रपर्चा यह जो परोद विको बहिरा (मखी० ) वटिका, स्टी। | करता हो। पयाय-चैदइर सार्थवाह, नेगम, वणिज, वडिल(म को०) पलिनो मत्स्यान् श्यत्ति नाशयति । पण्यज्ञाय, आपणिक कविक्रयिक वैदह, विश्व, वाणिज, यो क, तस्य इत्य। १ व सा जिससे मछला फसाइ पाणिजक, भाषिक, विक्रयिक, पाणिज्यकार। २ वैश्य, जाती है फटिया। पर्याय-मत्सवेधन, पलिश, यदशी, धनिया। वाणिज्य हो इसकी वृत्ति है इसलिए इसे चडिशा, यालशी मत्स्यये धनी, बलिसी, पलिस, परिशा, ! यणिज करते हैं। ३ करणविराय यव वाला आदि धलिशि, मत्स्यभेदन । २ चिसिकाका एक अस्त्र जिस उसकाका एक अस्त्र जिस फरणोंमसे पष्ठ परण से च येते या नश्तर लगाते हैं। पणिज (स.पु०) वणिजेव वणित स्वार्थे गण , अमि पडौसक (स० को०) प्राचीन स्थानमेद। पर (स.नि.) पडते इति यह बहुलम यनापीति रक् धानात् न घधि । १ वणिर । २ नय बादि करणीमेंस पष्ठ करण । म करणम वाणिज्य शुरू करनेसे शुभ होता वृहत्, वडा घणिक (स.पु०) व्यवसाया पक्तिमान, वह जो वाणिज्य है। अ य शुभकर्ममें यह करण निषिद्ध माना गया है। फ द्वारा अपना जीविकाका निर्वाह करता हो। घगाल यणिज करणमें अगर किमी पालकमा जाम हो, तो यह मं गणिक, म्वर्णवणिक, कास्यवणिक् आदि श्रणी घुद्धिमान् कृतज्ञ गुणवान् एव पणिोंमे उसी गमि चिमाग है। उत्तर और पश्चिममारता शेठो और धनिया लाया पूरी होती है । ( काटामदीप ) यह दो श्रेणो है । इस अलावा अनरेज, फरासा, मुसल वणिजक (स० पु०) वणिर, व्यवसायो। मान आदि बहुनसे वैदशिक पणिक भारतमें दखे जाते | वणिज्य (स० को०) वणिजो भाय धर्म चा पाणिज हैं। भारतीय ध्यासापो चणिक जातिका विवरण पेश्य । (दूतपरिणग म्यां। पा ५१९१२१) इत्पत्र काशिकोचे । शब्दमे लिखा है। वैश्य तथा षणिक शब्द देखा। वाणिज्य, व्यवमाय। पणिक मन् (स० का०) वणिजा कर्म । यमिकोंका सरोद / वएट (स० पु०) वण्टयते इनि चण्ट घन । १ भाग, घाट । विक्रो आदि काम। | २दातमुएि, हंसिया आदिको मूठ या ये ट। (हम) ___Vol ax 139