पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/५३३

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वज्रदक्षिय--वज्रपाणि वज्रदक्षिण (सं० लि.) व दक्षिणे दक्षिणहस्ते यस्य ।। किसी किसी बौद्धतन्त्रके मतने यजधर और वज- दक्षिण हस्त द्वारा बज्रयुक्त। सत्व दोनों मिन्न है। वज धर ही आदिदेव है। ये वज्रदग्ध (सं० त्रि०) वनाग्नि द्वारा दग्ध, जो वज्रकी आग सर्वदा समाधिमे मग्न रहने है। बज सत्स द्वारा ही चे से जल गया हो। मनुयश इल्याण शिया मरते हैं। ध्यानी युद्ध के वज्रदण्ड (सं० पु०) एक अस्त्रका नाम जिसे इन्द्रने गर्जुन लाथ मानुपी बुद्ध का जो सम्पर्क है बज घरके माथ को प्रदान किया था। वज्रमत्वका भी वैमा हो सम्पर्क है। वज्रदण्डक (सं० क्ली० , गुल्मभेद । | वज्रधाली (सं० बी० ) विरोचनकी पत्नीभेद । वज्रदत्त (सं० पु.) १ भगदत्तके एक पुतका नाम। बननग्य (सं०नि० ) नसि। २ एक बौद्धग्रन्यकारका नाम । वज्रनगर (सं० लो०) दानवश्रेष्ट वजनाभ प्रतिष्ठित वज्रदन्त (सं० पु०) वज्रमिव कठिना दला यस्य । १ शूकर, नारभेट । सूअर । २ मृपिक, चूहा। वज्रनाम (सं० वि०) १ स्कन्दानुन र मातृभेद । २. दानवराज वज्रदन्ता-एक नटीका नाम । (दिग्विजयप्र० ४६३१) भेद । ३ राजा उपथ के पुन । उन्नामले पुव ५ स्थल के वज्रदन्ती (हिं० स्त्रो०) एक प्रकारका पेड वा पौधा। पुत्र। ६ ऋण की ज्योति । इसको दतुवन अच्छी होती है और वैद्यकमे इसकी जड वज्रनाभीय (सं०वि०) बज नाम नाम दानवसम्बन्धोय । वमनकारक कही गई है। वनाराव (सं० क्लो०) अन्नविशेष। वजनशन (सं० पु०) घनमिव कठिनं दशनमस्य । १ मृपि. वज्रनिघॉप ( सं० पु०) चाय निघोपः । वनजनित चूहा । २ बज्रदन्त, कठिन दांत | द। वज्रदाम-कच्छपघातवंशीय एक राजा, लक्ष्मणके पुन । वनि पेय (सं० पु. ) चत्राणां निप्पेपः संघर्गध्वनिः । इन्होंने गाधिनगरपतिको परास्त कर गोपाद्रि पर दखल । बनिघोंप, विजलोको कडक। पर्याय-फुर्जथु । जमाया था। वनपक्षर (सं० पु० ) १ दुर्गास्तोत्रभेद । २ सहादि- वनदृढ़नेन ( स० पु० ) यक्षराजभेट । वर्णित एक राना। वनदेश (मं० पु०) एक देशका नाम । चनपलिका (सं० सी०) वृक्षभेद (Asperegus Racemosa) वनदेह (सं० त्रि०) १ वज्रके सदृश पठिन नगर। वज्रणणि (सं० पु०) वळपाणी यम्य । १ इन्द्र । २ ब्राह्मण । २ वलराम। ३ वीद्धमतानुसार देवयोनिभेद। ४ ध्यानी बौद्धसत्व- बजट, (सं० पु०) वज्रवारको दुः। स्तुही वृक्ष, थूहर । भेद । नेपाल, सिस्मि और भूटानमें अभी भी बज पाणि- चजद म (सं० पु०) वजधारको दमः । स्नुही वृक्ष, थूहर ।। की द्विभुज मीपण मूत्ति का पूजा होता है। हर की द्विभुज भीपण मूर्ति की पूजा होती हैं। छिमेद वेल्- बजट मकेसरध्वज ( स० पु० ) गन्धर्व राजभेद । का नामक भोट-ग्रन्थमें लिखा है, कि एक समय सभी बज धर ( सं० पु० ) धरतीति धृ-अच् । वज,म्य धरः । बुद्ध मेरु पर्वत पर इकट्ठे हुए। किस तरह समुद्रमेसे १ इन्द्र। २ बौद्धयतिविशेष । ३ वल्लालपुराधिपति ।। अमृत निकाला जायगा इसका उपाय ढूढनेके लिये राजविशेष । ( राजतरशिणी ८५४० ) ४ वौद्धोकी महा- मभी सम्मिलित हुए थे। उस समय अनुर लोग यान शाखाके अनुसार यादि बुद्ध । तिब्बतके तान्तिक | हलाहट प्रयोग करके मानव जातिका मर्वनाश करनेकी चौद्ध-मतानुसारसे ये प्रधान बुद्ध, प्रधान जिन गुह्य. चेष्टा कर रहे थे। अभी यमृत वाट कर मानव समाज पति नथा संव तथागतोंके प्रधान मन्त्री आदि, अनन्त | अपनी रक्षाके लिये बडे ही उत्कण्ठिन धे। बुद्धोंने और वज्रसत्व हैं । अपदेवताओंने उनसे हार मान मेरु द्वारा समुद्रको मथ डाला। उसने अमृतका बड़ा कर प्रतिज्ञा की थी, कि वौद्ध-धर्मके विरुद्ध कभी प्रयत्न निकल कर जलके ऊपर तैरने लगा। वज पाणिके हाथ न करेंगे। उस अमृतका भार सौंपा गया। अचानक राहुको