पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/५२१

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५२८ पल्ला साहित्य हिक पत्र तथा मासिक पल छपने लगे। इन सब साम-। क्रमशः भावगौरव, विषयगुरुत्व एका रचनाक उत्कर्षकी यिक पत्रों द्वारा बंगलाभापाकी यथेष्ट उन्नति हुई। गद्य भावो महिमा प्रकट करनेको समुज्ज्वल पताका पारा में तथा पद्यमें सवादपन प्रचारित होते थे। केरी प्रभृति कर ठगीय सादित्य-सेवकोंको अपनी ओर आकृष्ट कर मिशनरीगण यूरोपीय विज्ञान, इतिहास, भूगोल, गोल रहा था। इसके बाद मुद्रायन्त्रक प्रभावसे देश नवा. प्रभृति पुस्तकोंका बंगलानुवाद करके प्रबन्ध लिखते थे गत शासनकर्त्तानो प्रयत्नसे, मिशनरियो साप्रइने एवं एवं अङ्करेजी अनमिन चंगालियोंके मव्य इन सब प्रयो देशीय प्रतिभाकी पूर्णस्पुर्ति गंगीय गद्यसाहित्यकी हा प्रचार करनेकी यथेष्ट चेष्टा करते थे। केरी सादवका वही क्षद्र भरणा क्रमशः संपुष्ट तथा परिवाईत हो कर "समाचारदर्पण" तथा राममोहन रायका "संवाद । एन समय ननुलो गगाप्रवाहको नरह तरंग-रंगम कौमुदी" किसी समय शिक्षित लोग बड़े चावले पढने प्रवाहित हो रहा है। पर्वतदुहिता नदी गिरिनिर्भरोके थे । भरेण्ड कृष्णमोहन वन्द्योपाध्याय महानयका जलसे शक्तिसंग्रह सरके तरग रंगमें उछन्न उठल कर "विद्याकल्पम" पढ कर भी लोग यथेष्ट जान प्राप्त | प्रवाहित होने पर भी जिस तरह कृस्थित जलप्रवाहा. भरने थे, किन्तु "कल्प म"के बहुत पहले ही,"चन्द्रिका" से संपुष्ट होती है, नंगलामाया मी उसी तरह सास्कृत का अभ्युदय हुआ था । "चन्द्रिका" हिन्दुसमाजको मुख्य भाषाके अमृतप्रवाहसे जीवित नथा शनिसपन्न पतिका थी, इसके द्वारा भी वंगला साहित्यकी यथेष्ट होने पर मी अन्यान्य मापाओं के शब्द भय तथा भाव- उन्नति हुई। ईश्वर गुप्त महाशयके कवितापूर्ण साप्ता- गौरवसे इस समय महाप्रबाहको महीयसी विशालता हिदा नधा मासिक पत्रोंके द्वारा लोगोंकी साहित्य पाठ कर संसारके सामने अपना गौरव प्रक्ट कर रही है। तृष्णा प्रबल हो उठी थो। ____ हम लोग यह धात उन्मुक्त कर सकते हैं, कि १८०० मे ले कर विद्यासागरके पूर्णकाल पर्यन्त पंगला मापा इस समय महाशक्तिशालिनी हो रही है। गद्य साहित्यकी प्रकृति । विभिन्न भाषाओके मिश्रणसे, विभिन्न भाषाओं के इस समयके गद्यसाहित्य प्रधानतः अनुवादमूलक सौन्दर्यले एवं विभिन्न भाषाओंको भावराशिके समागमसे थे। इनमें कुछ तो संस्कृत प्रयोंके अनुवाद थे, और कुछ वंगीय साहित्यने इस समय मावपूर्ण, सौन्दर्यसम्पन्न अंगरेजी नथोंके । पारसी प्रभृति अन्यान्य थोकी तथा सर्वप्रकार शब्दसम्पत्तिशाली हो कर संसारकै सबों- अनुवाद संख्या बहुत कम थी। पारसोसे गनूदित प्रथों- त्कृष्ट साहित्य समान आसन ग्रहण कर लिया है। जो में तोतामा इतिहास प्रथ ही सविशेष उल्लेखनीय है ।। रचना एक समय उत्कट, दुधि, विटसल तथा पूर्वा- सूलनथ भो दो चार प्रकाशित हुए थे, उनमे रामराम | पर सम्बन्धवर्जित थी, विद्यासागरके संस्पर्शसे वही वस्तुका लिखा हुआ "प्रतापादित्यचरित्र" नथ ही सर्व सुललित, सुग्वपाटन तथा सुसंस्कृत हो चली है एवं प्रधान था। जगत्के समक्ष अपना अनन्त गुणगौरव तथा महिमाका आधुनिक नगलासाहित्य वा विद्यासागरीय युग। परिचय दे रही है। ___ रमाई पण्डितके शून्यपुराणमे, चण्डिदासके "चैत्य ईश्वर गुप्तकी रचना वहुन सरस थी । वंगला रूप प्राप्ति" नामक प्रथमें एवं सहजिया-सम्प्रदायके | गद्य विद्यासागर-संगमकं महातीर्थरपर्श से एक ओर जिस छोटे छोटे धर्मयों में बनीय गद्यसाहित्यके स्फुरण, तरह सरल कोमल तथा सरस हो उठा है, दूसरी ओर उत्पत्ति तथा क्रमविकाश परिलक्षित होते थे। दुधमुंहे। उसका प्रसन्न गाम्भीर्य अनन्त भाव एवं शन्दवैभव, बच्चेत्ते तुनलो वोलीकी तरह गद्यसाहित्य टूटे फूटे | साहित्यकगणोंके हृदयकी श्रद्धा तथा भक्ति आऋण करता गन्दो में अपने शब्दवैभवका परिचय दे रहा था। १८वीं| है। प्राजलनाके कुसुमित प्राङ्गणमें सौन्दर्य, गाम्भीर्य सटीके प्रारंभमें ही उपनिषद्, न्यायदर्शन, वेदान्तदर्शन, तथ माधुर्यका अच्छी तरह समावेश करके विद्या- स्पेनिशास्त्र प्रभृतिके बङ्गलानुवाद में नंगीय गद्यसाहित्य | सागर महाशयने ही सबसे पहले वंगला गद्यसाहित्यको