पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/५१४

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५१ चनमा साहित्य हिन्द कवियों को 7 पर अया मुसलमान समाज | ख्यान तथा धारावाहिकघटना समाश्रित पदा है फिर में मत्यपोरका सिरिदान फैलानेके उद्देशसे कुछ मुसल । उनक मालिक विषय विपुल हा प्रमाणशूय ६, ऐसा मान कवि भी सत्यनारायणका माहात्म्य गा गये हैं। भी यहां कह सकते। भापार्म रचित राजाण्यानसमूह, इन सब पुस्तकों में यरिफ करिके ला नमोहनको केच्छा महाराष्ट्र पुराण तथा त्रिपुराका राजमारा प्रभृति पथ विशेष उल्लेखनीय है। सुलतान हुसेन शाहने अपनी इम श्रेणा गण्य हो सकते है। इनके अलाये छोटो कन्या देशातर भेज दिया था, इममे भो रे मत्यपोर | छोटा घटनासमाश्रित वा स्थानकी माहात्म्यशापक के फ्रोधसे परित्राण 1 पा सके थे। जितनी कवित्वमयी कात्र्तिगाथा पाई जाती है, घे भी इस इतिहास तथा कुमजो-मात्य । श्रेणोमें गिनी जा सकती है। ___यगाभाषामं कुलपजो ग घशानुपरित लिनोका विविध शासाको अन्यमाना। प्रया गरि प्राचीन है। रामायण तथा प्राचीन पुराणादि चंगाली पपियोंने योग तथा धमतत्त्व सम्बधमें शालासे हमलोग जान सक्ने हैशि विवाहम-नाम पर कितने हो प्रयों की रचना की है। पन्याके पूर्व पुरुषोंकी यशायठी कात्तन करनेका नियम ब्रत कथा। था। यह सनाता आर्य प्रथा बहुत दिनोंसे हि दृ समाज पुराणों में कितने ही व्रताका उदय हे ये सब प्राय मचली पाती है। दूमरे सभी देशाको अपेक्षा यगाल | सस्त मापाम हो लिखे हुए है। उनमें से कोई कोई देशर्म ही मामाह्मणनडानादि सभा समाजों में चशानु प्रय पहले होमे घगला भाषाम गनूदित है। बगालके चरित रक्षा तथा कोत्तन प्रथा विशेषरूपमे फैली हुई थी। विभिन्न प्रदेशवासी गोगोमा सब प्रतों के सिवा और भी इसीसे इस देशम कुलनी या घानुचरित साहित्यको क्तिने हो लौवि का भी प्रबलन देखा जाता है। ये यथेष्ट पुष्टि दृष्टिगोचर होती है। यद्देशमें मिलने हो नत 'मेयेली प्रत' के नामसे साधारणत प्रसिद्ध है। विदेशी राजाओंके मामणसे एच अनेकों धमसाम्प्रदा इन मेयेरा प्रोसे पुछ तो भाषाम लिखे गये है और यिक विनसे प्रश्न राजनैतिक इतिहासा अधिकार कुठ आज भी यगीय पुल नार्माको कण्ठस्थ हैं। विलुम हो जाने पर भी कुल्पजी या यशावरित सु | भापा रचित रामायण महाभारतादि तथा कृष्ण रक्षित रहनेसे सामानिक तथा पारिवारिक निदास राराविषयक भागमतादि प्रथ गामे जानेव बाद विलुप्त नहीं हो सकता। अगरेजो प्रभायस यगालोको | पावालीके बदरेम उसक अश विशेधनीय विषय जातीयता रक्षाका कठोर शूटर शिपिल होनके साथ | लेकर पृथक् पृथा व्यक्यिोंक मुखम रहनेर लिये साग इन सब अमूल्य सामाजिक इतिहासोंका बहुत कम पयारादि छन्दर्म घोपाकयादि सयुन प्रथको रचना प्रचार हो गया है। उपयुक्त यक्ष अमावसे सैर कुल होने लगी। धोरे धारे घे जय मभिनयके योग्य हुप, तव प्रय नष्ट हो गपे है फितु सामान्य अनुसन्धासही | स वे सब प्रथ मालित मायापन्न हो पर 'याला पाला' हमलोगां जो कुछ सप्रइ क्यिा है, ये कुछ कम नहीं है।। रूपमें परिणत हो गये। उनकी सरुपा पाच सौस अधिक होगा। __यात्रा शब्दमें अनेक नाटकोंका परिचय दिया गया ? ____ यगलाके सामानिक इतिहास अथवा फुल नय| वितु उस स्थानमें उसी पालाममूहके साहित्य विषय प्यतीत घगामापामें और भी कह छोटी और बडी ऐति का आलोचना नहीं की गई है, परल दो पर गानोंका दामिक कयिता तथा काप्य रचायें देखो जाती है। इन नमूनामात्र दिया गया है। घगाल में अष्ट्रेजसमागमके सव पुस्तके मध्य सिा क्सिी पुम्नकर्म भौगोलिक पहले या प्रथम पात्रा विषयमै मिस तरहक गद्य तथा विवरण इस प्रकार है कि यदि उन्हे एकमात भूगाल पधर्म वापयविन्याशकी प्रथा प्रचलित था, उसादा पथ कहा जाय तो भी अत्युक्ति 1 होगी। ऐतिहासिक चित मामास ले कर परतिकालम जो सब प्रथ रचित सभा कविताओं मधया कायों में सम्पूर्ण भावसे यशा | हुप, डाफे भार, भाषा तथा यणनाप्रणालो घर्तमान प्रथा Vol AT 131