पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४६६

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वरदेश उदा म था। महावीर वसुमित थोडे दिनके वाद हो । प्रतिनिधि छोर दाक्षिणात्य लौट गये। जो हो, उस पैतृक सिहासन पर बैठे। वैदिक धर्मप्रचार करनेको | | समय पूर्व भारतमें द्राविडोय आचार घहुन कुछ फैल इच्छास हो पसुमिन्नने दाक्षिणात्यसे घेदप रिम मगा कर | गया योपितु प्रतिनिधियोंके स्वाथतासे राज्य में मन उन्हे राजगृह प्रदान किया था। वसुमित्र और उनके | विप्लपकी सूचा होगा, जिसस अङ्ग, यड्ग गौर मगध परबत्ती मन्तक, पुलिन्दक, घोपवसु घनमिन, भागवत राज्य छोटे छोटे भागोंमे यर कर पा एक साधीन राजों और देवभूमि आदि शुह्न राजे ममो देवविधमक्त थे। इस फे हाथ पट गया। इस समय पश्चिम प्रदेशर्म नोंका वशने ११२ वर्ष अर्थात् ६४ ख० बाद पटात राज्यका | गोटी पूर्णरूपसे जमी हुई थी। शाकद्वीपी काय ब्राह्मणों मोग करते रहे। के धर्मोपदेशम शराजे भारतीय देविप्रपूजक और देवभूमि अति लम्पट और प्यमनामत थे। उहे | प्रतारचक हो गये। प्रताप भी उनसे विरक्त हो गई। यमपुर मेज उनके ब्राह्मणमो यसुदेग्ने सिंहासन अप इसठिये पूर्व को भोर आधिपत्य फैलानेमे अहे अधिक कष्ट न भोगना पडा। शकोंके शुभ दिन मा पहुचे। नाया। पसुदेवसे दो कण्य या काण्यायण ब्राह्मणवशी लो सदीमें शफाधिप कनिष्ठ भारत सम्राट् हुए । प्रतिष्ठा हु। घसुदेष भूमिमित्र, नारायण और सुशर्मा सारनाथके भूगमसे सम्पति महाराज कनिष्ककी जो कापणीय पे चार राने ४५ वर्ष तक (करीव २०१० स्तम्मलिपि माविष्टन हुइ है। उसका अनुसरण करनेसे पूनाम्द पर्वा रा) पाटलिपुत्रम अधिष्ठित थे। जान पड़ेगा, कि पूर्व मारत भी कनिका साम्राज्यभुक्त शुग और कार शाकद्वापी मालूम पड़ते हैं। उनके हुआ था। उनक उदारनैतिक होने पर भी उनकी शिला समयमें सिर्फ पूर्ण मारत ही नहीं, समूचे भारतय मि लिपिया उनके वौद्धधमानुरागका घोषणा करती है। सौरमत और प्रतिमापूजा प्रचलित हुई। सोर भागरत, उनके प्रयत्नसे वनारमको तरह अग वग आर फलिगर्म पाञ्चरान तथा पौराणिकोंका भी अभिनय अभ्युत्थान भो महायान बौद्धमत प्रचारित हुआ था। हुमा था। ____ महाराज कनिष्पकी राजधानो पुरुषपुर । पर्शमान शुद्ध और कप आधिपत्यकालमें हो उत्तर पश्चिम पेशावर) में थो। यहुत दूर पश्चिमी सीमा पर मधि मारत में शफनातिका अभ्युदय था। प्ठित रहने पर भी उहोंने कासघर, यारक'द, पोतम आदि मध्य एशियाक सुर उत्तर प्रदेशस दक्षिण में पसुमित सम्मानित रायगृहस्थित वैदिक विप्रगण | विध्याद्वि तथा पूर्ण अगच ग कलिग तक आधिपत्य परम, उपमन्यु, कौण्डिल्य, गर्ग हारित, गौतम, फैलाया था। 'धर्मपिटक-सम्प्रदायनिदान' नामक बौद्ध- शाण्डिल्य भरद्वाज, कौनि, काश्यप, पशिष्ठ, पास्य प्रायफे मतसे महाराज कनिष्क पारिपुत्र आये और सायणि और परागार १४ गोलों में विभक्त थे। परवत्तों यहाके राजाको जीत कर बौद्धस्थावर बौद्धघोपको ले कालमें ये सब दाक्षिणात्य विप्रसन्तान बहक गाना गये। सम्पति सारनाथसे यहाको समतल भूमिसे वश स्थानों में फैल गये थे। नितु ये मद मी अन पौर हाथ मिट्टीके नीचे सघ्राट कनिकी शिलालिपि और प्रभावमय बङ्गको आरहया लगनेसे कुछ समय बाद बहुत कीर्ति बाहर हुइ है। इस शिलालिपिसे पता चलता, पुछवैदिवाचारम्रए होगपे । तमोसे यहफे किसी क्सिी कि उस समय याराणसो प्रदेश महाराज कनिके पन्य प्रदेशमें मेद, कैयर्स आदि गातिका माधिपत्य देखा अधीन स्वरपल्लल नामक एक (7) क्षत्रपके शामनाधीन जाता है। था। पाटलिपुत्रका प्राचीन भूगर्भ रातिमत सोदा जाने ___ दाक्षिणात्यके पन्ध्र रानाओंसे राय छीना ज्ञाने पर । पर सारनाथरी तरह सुप्राचीन कनिष्क-कोत्ति निकल काशने उत्तर-पश्चिम भारतमें गशत्रपोंका आश्रय साती है। तब हम लोग जान सकेंगे, कि पूर्व मारतमें लिया। माधान पालिपुत्र मधिकार किया सदी, पर उनके सयौन कौन क्षार (Satrap) आधिपत्य 'यहाकी राजधानी उनके बसने लायक नहो। ये यदा | करते थे।