पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४६४

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परदेश इना प्रधामनी राकटाल था। इमो शाटारका पुरा हो गया, पर और शली भारत शेष नही रह 178 स्थूलभद्र था। गुप्त ब्राह्मण विरोधी तथा चैन मतालम्यो पद र ब्राह्मणों 'म्यूलभद्रे पुल पदले अनियो मतिम शुत । के द्वारा 'कृपल' नामसे लाठित दिये गये । इमाके जम फेवली भद्रवालुका अभ्युदय हु। उनके शियसे सारा | से ३१६ वर्ष पाले चन्द्रगुप्त के पुत्र पिदुसारके राज्यका भारतया परियात हो गया था। उनके पाश्यप गोलाय अत एव अशोरया अभ्युदय हुआ। अशोक प्रियदर्शी चार प्रधान शिष्य थे। आममे प्रधान शिष्यका नाम | चद्रगुप्तके अपत्य कहकरन इगुप्त (Sindrt optas) गोदास था। इस गोदाससे हो चार शामामी को सपि । सामसे भी पाश्चात्य ऐतिहासिकोंक किट परिचित हैं। हुह,-इन चारो शापामो के नाम ताम्रलिप्तिका, केटि मारताप शन्द देखा । चपीया. पुपरीया तथा दासी काटिया थे। इन प्रमाण-रचित प्रयो अशोर शूटर पर चिहित होने चारों शाखाओंके से सहज ही मालूम होगा, नि ताम्र पर मो बौद्धप्रयो म घ क्षत्रिय पर विशुद्ध क्षतिगरी रिप्त (वमान तमा) कोटि (पमा दिनानपुर यह घर परिचित हैं। राज्याभिषेके पहले चे पुछ जिला तगत देवकोट परगना) पुण्डपा (मालदह था ब्राह्मण भत्त थे। उस भोननागारमें सी सी पशुबध पगुदा जिलातर्गत ) पर ट ( सम्भवत मानभूम होना था। राज्याभिषेकके साथ ही ये पदरे पैन, फिर जिलातर्गत ) इत्यादि स्थानों अर्थात् रोनार वर्ण | यौद्धधर्मानुरागी हुए । हिमालयमे ले परदुमारिका एप पहले भी वर्तमान घगदेके नागा स्थानौन मेतियाँको । चहनामसे ले कर अफगानिस्तान की सीमा पर्य त उारा प्रतिपत्ति तयाणोविभागोले थे। माम्राज्य फैल गया था। यूगेप तथा गामिका आदि दूर इसके बाद न द्रगुमका अधिकार हुमा। बाणस्यके ) दूर देशो म भी बौद्धधर्म प्रचाराचा उहीने उपयुक्त परि कौशलसे नन्दयशा नागरके चहगुप्त भारतीय | बाजक नियुक्त किया था। उस समयके श्रेष्ठ यवनराजे पकच्छवा मधिपति हुए थे।, हेमचके परिशिष्ट में उनके साथ आत्मीयता तथा मित्रतापाशमें आवद्ध हो योग्मोक्षके १५५ वा याद अर्थात् इमाके जामसे ३७२/ गये थे। प्रियदर्शी दखो। वर्ष पहले चन्द्रगुप्तका राज्याभिषेक हुमो या अशोकके समय उारे अधीनस्थ बड़ देन कई प्रदेश इस समय धगदे में ग्रामणाचार एक प्रकारसे विद्या विभक्त हो गया था एव पर एक प्रदेश एक एक परा । हो चुराई। मर्यन ही शागरप्रपल हो उठा है। प्रान्त सामग्तराजके शासनाधीन था। भारतके अन्यान्य स्वय चद्रगुतो भगवाएका शियत्व प्रहण किया है। प्रदेशीको तरह हो पदके पद रथानोम अशोका धर्मानु इसो चरगुप्तो राज्यकालमें पाटलिपुवमें जैनियों शासन तथा धार्मरारिका प्रतिपित हो गई थी। श्रासघमारत तथा अन या गात्रादि सगृहीता । 1 अशोषके समय घरभमिमें फौरनन्य राजे राज्य - चन्द्रगुप्त एक प्रकारसे भारत मम्राट ही हुए थे। रते थे, उनक नाम पापे नहीं जाने। मनुलफार उनके परिननग उन्हीं अधोम भारत के विभिन्न यहाा प्राचीन इतिवृत्त माह करके जो सक्षिप्त विवरण प्रदेशी नासा करते थे। सुनरा पाटलिपुरका और प्रकाश पर गये हैं उसके पढनेसे जाना जाता है, कि अनुष्ठान मामानीसे चन्द्रगुप्त के अधात सामन्तों की चेणसे| वनभूमिमें २४१८ वर्ष क्षत्रियोका, २०३८ वर्ष कायस्थों सारे भारतमें परिगृहांत हो गया था। का अधिकार रहा, इसके बाद मुसलमागोवा अधिकार जैन प्रभारके फैलने के साथ साथ सारे भारता ब्राह्मण | हुआ। पहले हो रिख आया हु, वितिके पुत्र अग प्रभाव अत्यन्त क्षीण हो गया। क्षत्रिय रापामओंकी चेष्टास पड़ादिके द्वारा होम म्यानम शत्रियाधिकारका सूनागत - हा ऐमा परिनन हुमा है, ऐसा कद कर ब्राह्मण लोग हुआ। यह महावीर के पन्द्रह पूर्व पुरुषोंक समय क्षलियोंसे अत्यन्त फ धित हो गये अनः ३ होने पुराणांक को या यों दिये रिपाच हजार वषस भी पहलेवी यान अदर लिख दिया, कि क्षत्रिपाके प्रशका बिल ना है। अथात् वर्तमान कलियुग प्रवति होमके पहले ही Vol 3x 118