पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४४२

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वदिमदास करिराज-वन ४४३ धमानुशालनका मुख्य साधा था। भारत भावो । वड्ण (सं० पु०) पयति सहतो भरतीति यदक्षरयुः माशासे उत्फुल हो उदोंने जो "वन्दे मातरम्" गाया था। पृपोदरादित्वात् नुम् । मूत्राशय और अधास्थलका सधि उन तिरोभायफ चारह वर्ण घाद आज यह मारतवासो स्थान, यह स्थान जो पेड़ और जायके योचमें है और थे जातीय संगीतरूपमें कोटि कोटिकण्ठसे पुकाराजाता जहा 'वर्म' नामक रोगको गाठ निकला परती है। घटा (सरसो०) पहतीति वह याहुल कास् कुन्, नुम् च । ___ पगमाताका मूति दिमक दृदय-पर पर सदा । आफ्सस नदी। यह हि दुयुश पर्वतसे निार र मध्य विराजमान रहती थी, इसश भाभास 'कमलामा तेर। एशियामें बहती हुई मारल समुद्रम गिरती है। इस नदी एफ्तर" "मार दुर्गोत्सव" प्रय घसे सूचित होता है। का नाम घेदों में कई जगह आया है। पुराणों यह फैतु पङ्किम वायू व गार को दोन हीन नहीं समझने थे,- मार वर्षको एक नदी दी गई है। उनके "वन्दे मातरम्" नातीय होनतासूच कातरोकि महामारतोय युगमें इस पुण्यतीया नदाको गणना नहीं है, उसमें सुदूर जाताय गौरवको स्मृतिसे शक्तिहीन पवित्र दियान को गह थी। निश्चेष्ट स्पद्धा नहीं-उसमें पङ्किम वाचून पक्षमात को 'गोदारी च वैपवा च कृपया तया द्विमा। भगवतीको तरदमदायसी शक्तिशालिनी स्वरूप में कल्पना पद्धतो च कावेरी यह दुमन्दाविना तया ॥" की है,-इम हिमावसे 'चन्द मातरम् गाा ज्ञापीय (महाभारत १३१६५।२२) सद्गातोंके मध्य स्थतत प्रतिष्ठा पाने योग्य है। बङ्गालो रघुवंशवी प्राचीन प्रतियों में भी रघुक दिग्विजयये पातिक सम्यतर नो महाशति छिपी पी पदे मातरम्', सन्तगत इस नदोश उल्लेख है और इसके किनारे हो गानसे घटिम याने दो उसका आविचार किया। को यस्तो कही गई है। घटिम याधू म्यय अपना एक 'यात्मवरित लिप गये बल (सक्का) यदीति पगि-गती र ।धातु है। उनकी मृत्युके दारह वर्षके भीतर उनको जीवनी विशप, रागा नामयी धातु पर्याप-- मानसी पर्ण, नाग प्रकाशित न हो, अपने भारमीय स्वजन तथा बङ्गाली मात्रा जायन, मृदङ, रस, गुरुपत्र, पिघट, चक्रस, नागन, से प्रार्थना कर गये थे। 'यदे मातरम्' गाने भारत । | समर स्तार मारीनक सि हल, स्वयेत, पाग। यपक कोरिण्टस परवल सअप पर यडिम दायूके भावप्रकाश लिखा है, कि पुरक और मित्रा भेदस पातीय अनुरागको समुन्यल कर दिखापा । यदि उनका यह दो प्रकारया है। मिश्रकम सरक या उत्तम होता जीवनचरित प्रकाशित हुआ होता, तो उनका एक सगुण रघु धीर सारक तथा प्रमेह, फफ, मि, प्रधान कोर्सिाहाल प्रकाशित रह पाता। पाण्ट और ध्यासरोगनाक माना गया है। पह यदिमदास कविरान-वैरम्योरण नाम किरात रोका सुखदायक, इन्द्रियों के प्रपरता सम्पादा और नीयवाप्यो काके रचयिता। मानय देक्षा पुष्टिमान है। यङ्किर (स० पु०) यति इति बटु-इल्च् । एटा, कारा। ___ रसे हमारसप्रधम पद ( रागा) की पिमि शोधन घडू (सं० वि०) १ घरगामी। २ पगमाशीर । | प्रणालो त्रिी है। चूने के पानी चार एड त स्पद पा-माघीन पर नहा । (भारत समार्य) व देखा। देनेसे पङ्ग विशुद्ध होता है। पारे हरनारको आवक घ चहा (सं० वि०) पचण्यम् । (पत्र्यग नौ। पा९३) में पून मल पर यह ले पदार्थ घर पचरम ऐप ये इति अगत्पर्य पुरसम् च । यम, टेहा। पर पोपलको छार भागमे सात बार पुट दे सया यष्टमि (स. पु. का.) यत इति । यहि कोरिये (बकायम । उप ४६६) इति मिन् प्रत्यपेन निपात्यते।। पिशुद्ध पह्नमें पहले हरिताचूण, दुमरे यापा, तीप्तरे १ याशिल प्राचीन कारा पारका पाना।। में नोरा, चौपेमें इमरीश छान को वृण धीर पांच २कसी कहा। ३ पार्मास्थि पशुमोको पसली । पीपलको छालका चूणा देकर यपापिधा पार करनेस घनका भस्म तपार होता है। (रसन्द्रमारसम)